पुष्यमित्र
बिहार डॉयलॉग का तीसरा सत्र फाइनल हो गया है। विषय है, माहवारी, पीरियड्स, मासिक धर्म। मुद्दा है, इस मसले पर बातें हों. खूब सारी बातें हों. इसलिए हमने रविवार आठ जुलाई का दिन तय किया है, उस रोज हम पटना संग्रहालय के कर्पूरी ठाकुर सभागार में इस मसले पर बातें करेंगे और खूब सारी बातें करेंगी. लगभग पूरे दिन. साढ़े दस बजे से यह डॉयलॉग शुरू हो जायेगा और यह आपके सवालों के खत्म होने तक चलेगा.
इस मसले पर बातचीत करने के लिए हमारे बीच होंगे. मैग्सेसे अवार्ड विजेता अंशु गुप्ता जिनकी संस्था गूंज देश की संभवतः इकलौती ऐसी संस्था है, जो देश के गरीब, वंचित, आपदाग्रस्त लोगों के कपड़ों से जुड़ी समस्या का समाधान तलाशने की बात करती है। वे अक्सर कहते हैं कि रोटी और छप्पर का इंतजाम तो हो जाता है, मगर कपड़ों के बारे में कोई फिक्र नहीं करता. वही साफ और नरम कपड़े का एक टुकड़ा देश की हर औरत की जरूरत है माहवारी के दिनों में जो दुर्भाग्यवश ज्यादातर स्त्रियों को नहीं मिल पाता. तो गूंज औरतों की इस जरूरत के बारे में भी सोचती है और अपना अभियान चलाती है.
इसके साथ ही अपनी सुधा वर्गीज होंगी, जिन्हें किशोरियों के उनके काम की वजह से हम सब जानते हैं. यूनिसेफ से मोना सिंहा होंगी जिनका इसी विषय पर बहुत सघन काम और अध्ययन है. डॉ. मनीषा सिंह होंगी जो महिलाओं की इन समस्याओं के समाधान में लगातार सक्रिय रहती हैं. क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. बिंदा सिंह होंगी, जो मन की उलझनें सुलझाती हैं और भारतीय सूचना सेवा के पदाधिकारी श्री दिनेश सिंह होंगे. इन तमाम विशेषज्ञों से हम सुनेंगे, जानेंगे और समझेंगे कि माहवारी जैसा सहज और प्राकृतिक मसला क्यों इतना जटिल हो गया है कि इस पर खुल कर बात करना मुश्किल है.
यूनिसेफ द्वारा कराये गये एक सर्वे के मुताबिक बिहार की 17 फीसदी किशोरियों ने ही कभी न कभी सेनेटरी नेपकिन का इस्तेमाल किया है. शेष लड़कियां कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं. इनमें से 96 फीसदी लड़कियां पुराने कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, 28 फीसदी लड़कियां इस्तेमाल से पहले इन कपड़ों को साफ नहीं करती हैं. 75 फीसदी लड़कियों को नहीं मालूम माहवारी के दौरान इस्तेमाल होने वाले कपड़े को अच्छी तरह धोकर सुखाना चाहिये, तभी दुबारा इस्तेमाल करना चाहिये.
वहीं एक अन्य संस्था सेवा द्वारा कराये गये सर्वे के मुताबिक 83 फीसदी महिलाएं माहवारी के एक चक्र में एक ही कपड़े को तीन बार इस्तेमाल करती हैं. 38 फीसदी महिलाओं के पास इस दौरान कपड़े बदलने के लिए निजी स्थान नहीं है. और 20 फीसदी महिलाएं दिन में दो बार कपड़े को नहीं बदलतीं.
देश और दुनिया के अलग इलाकों की तरह बिहार में भी माहवारी को लेकर सोशल टैबू है. महिलाएं मानती हैं कि माहवारी वाला कपड़ा धूप में सुखाने से बचना चाहिये, अगर पुरुष इस कपड़े को देख ले तो महिला बांझ हो जाती है. माना जाता है कि इस कपड़े को बहते पानी में नहीं धोना चाहिये. इससे ब्लीडिंग बढ़ जाता है और माहवारी के दौरान तेज दर्द होता है. इस दौरान नेल पालिस और अचार को नहीं छूना चाहिये, नेल पालिस सूख जाता है और अचार में फफूंद लग जाता है. पौधों को पानी नहीं देना चाहिये, पौधा मुरझा जाता है. पूजा पाठ और खाना पकाने पर तो पहले से ही रोक रहती है, बाल धोने, बांधने और कई समाज में कंघी करने की भी मनाही रहती है.
इन हालातों में इस मसले पर बात करना सबसे जरूरी है. और यह मौका इसलिए हमलोगों ने निकाला है. तो अगर आपकी रुचि भी इस विषय में है और पटना या आसपास के इलाके में रहते हैं तो आठ जुलाई को आपका स्वागत है, पटना संग्रहालय के कर्पूरी ठाकुर सभागार में. यह आयोजन एक्शन मीडिया और नव अस्तित्व फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हो रहा है.
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।