पशुपति शर्मा
भारत रंग महोत्सव धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगा है। पहले हफ़्ते में कुछ प्रस्तुतियों ने दर्शकों का दिल जीता लेकिन कुछ प्रस्तुतियों ने बेहद निराश भी किया। ऐसे में रविवार 12 जनवरी की प्रस्तुति ‘तमाशा-ए-नौटंकी’ आपके मनोरंजन की सौ फ़ीसदी गारंटी है। नौटंकी का रस लिए ये नाटक अभिनेताओं के जानदार और शानदार अभिनय की वजह से दर्शकों के जेहन में बसा हुआ है। अगस्त की कामयाब प्रस्तुति के बाद दर्शक इसे एक बार फिर भारत रंग महोत्सव में देखने को बेकरार हैं।
तमाशा-ए-नौटंकी का निर्देशन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की ग्रेजुएट साजिदा ने किया है। साजिदा ने नौटंकी को नए आलेख और नए अंदाज में दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया है। साजिदा की माने तो हर आर्ट फॉर्म को वक्त के साथ कुछ बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए। वो मानती हैं कि नौटंकी को भी उसकी मूल आत्मा को जिंदा रखते हुए आधुनिक वक्त की कसौटी के लिहाज से खुद में कुछ परिवर्तन के लिए तैयार रहना होगा। वो नौटंकी के नए आलेखों की जरूरत को भी रेखांकित करती हैं। पंडित रामदयाल शर्मा ने इस नाटक का संगीत दिया है और उनके साथ पूरी संगीत मंडली नौटंकी के जो रंग बिखेरती है, वो तमाशा-ए-नौटंकी की जान है।
नाटक ‘तमाशा -ए- नौटंकी’ का आलेख मोहन जोशी का है, जिसमें उन्होंने कलाकारों की निजी जिंदगी के कुछ रंग समेटते हुए नाटक का ताना-बाना बुना है। नौटंकी के कलाकारों की निष्ठा कैसे वक्त के साथ बदलती है, ये इस नाटक में दिखलाया गया है। दरअसल, जैसे-जैसे मनोरंजन के आधुनिक साधन बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे नौटंकी जैसी कलाओं के लिए अपना वजूद कायम रख पाना मुश्किल हो जाता है। आर्थिक तंगी की वजह से कलाकारों में भी भटकाव आता है और नौटंकी का स्तर भी गिरता जाता है। व्यवसायिकता के दबाव में नौटंकी का मनोरंजन भौंडी शक्ल अख़्तियार कर लेता है। एक तरफ नौटंकी की मूल परंपरा है और दूसरी ओर नौटंकी के नाम पर ‘तमाशा’। नाटक का अंत एक सकारात्मक नोट पर होता है, जहां कला के भूखे कलाकार वापस बाईजी के पास लौट आते हैं लेकिन तब तक नौटंकी का काफी नुकसान हो चुका होता है।
ट्रेजर आर्ट ग्रुप, एक्टर्स की नई ट्रेनिंग प्रक्रिया पर काम करने वाला एक संजीदा नाट्य समूह है। पारंपरिक नृत्य-संगीत शैलियों, मार्शल आर्ट्स और कला रूपों को आधुनिक रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिहाज से इस नाट्य समूह की गतिविधियां बेहद अहम हो जाती हैं। तमाशा-ए-नौटंकी के कलाकारों में जुग्गन और सोनकली के रूप में शिव प्रसाद गौड़ और स्नेहा की जोड़ी नौटंकी के दृश्यों में दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करती है। इसके अलावा संगीता टिप्ले और अनिरुद्ध भी इस नाटक में प्रभावी भूमिका में हैं। नाटक के कोरस के तमाम किरदार भी पूरा समां बांधे रखते हैं।
पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।
इस साल दुर्गा पूजा के अवसर पर हमारे पडोस के गांव में दुर्गापूजा मेला में एक नौटंकी पार्टी आयी थी। यह पहला मौका था जब गांव में कोई नौटंकी वाला आया।पहले बडे बडे मेला में जाता था ।खैर ।जब आ ही गया तो मेरा भी देखने का मन हुआ ।पता लगाया ।वहां के स्थानीत्र लोगों से पूछा कि क्या सब दिखा रहा है? लोगों ने जो बताया उसे जान कर सच कहूं तो नौटंकी से मेरी उम्मीद खत्म हो गयी। मुझे बताया गया कि केवल लडकियों से नाच गान कराता है ःटिकट था 100रूफये और150रूपये। उसी के बगल में चौकीतोड नाच 15 दिन चला ।भीड भी जुटी थी।
Neetu Singh- Going to watch… Tickets booked..