ब्रह्मानंद ठाकुर/ कलम के जादुगर रामवृक्ष बेनीपुरी । यह नाम जेहन में आते ही एक ऐसे व्यक्ति का चित्र उभरता है, जिसका व्यक्तित्व बहुआयामी है। देशभक्त बेनीपुरी, पत्रकार बेनीपुरी, साहित्यकार बेनीपुरी, कलाकार बेनीपुरी, समाजवादी बेनीपुरी और क्रांतिकारी बेनीपुरी । वे भारतीय राजनीति में समाजवादी विचारधारा के संस्थापकों में एक माने जाते हैं। जीवन पर्यंत वे मन,वचन और कर्म तीनों से एक बने रहे। इस आलेख में मैं बेनीपुरी के उन सपनों पर प्रकाश डाल रहा हूं जिसे साकार करने के लिए आजादी के बाद बिहार में 1952 में हुए पहले विधान सभा चुनाव में वे अपने गृह क्षेत्र कटरा ( मुजफ्फरपुर ) विधान सभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे। चुनाव चिह्न था- बरगद का पेड़। बेनीपुरी जी जब चुनाव प्रचार के लिए अपने क्षेत्र में जाते तो तो उनकी मोटर गाड़ी देखते ही लोग नारे लगाने लगते’ बेनीपुरी, जिन्दाबाद ।
‘बेनीपुरी जी लिखते हैं- ‘जब जब ये नारे मैं सुनता तो भीतर से सिहर उठता था। क्योंकि यह जिन्दाबाद का नारा बेनीपुरी के लिए नहीं लग रहा था। ऐसे नारे उन सपनों के लिए लगाए जा रहे थे, जिसे वे गांव की जनता को दिखा रहे थे, नए जीवन के सपने, सुन्दर, स्वस्थ्य और सम्पन्न जीवन के सपने। बेनीपुरी समाजवादी चिंतक थे । वे एक ऐसा समाज बनाना चाहते थे जिसमें बच्चों के बदन पर पूरे गोश्त हों,उनके गालों पर लाली हो, उनकी आंखों में कीचड़ और बालों में जुएं नहीं हों,वे रंग- विरंगे वस्त्रों से विभूषित हों । वे किलकारियां मारते हों, उछलते हों, कूदते हों। वे एक ऐसा समाज बनाना चाहते थे, जहां जवानों की आंखें धंसी न हों, गाल पिचके न हों, छाती सिंकुड़ी न हों। जो सबल हों, चौडी छाती और बलिष्ठ भुजाओं वाले, दृढ धारणा वाले हो ; जो झूमते चलें तो धरती धसके, जो हंसे तो आसमान गूंज उठे। बेनीपुरी जी का सपना एक ऐसे समाज के निर्माण का सपना था जिसमें बुढ़ापा अभिशाप न हो, सूखी टांगें, झुकी कमर, हाथ में लाठी लिए कंकाल जैसे लोग जहां घुमते-फिरते दिखाई नहीं पडें। जहां की बच्चियां तितलियां हों, जहां की युवतियां मधुमक्खियां हों, जहां की वृद्धाएं आशीष बिखेरती हों ।
इतना ही नहीं ,बेनीपुरी जी का सपना था एक ऐसे देश के निर्माण का जहां गांवों में गंदगी न हो, जहां खेतों मे अन्न की बालियां और फलियां लहराएं । जहां किसान आसमान के गुलाम न हो । जहां नदियां बाढ़ से कहर न ढाएं। एक ऐसा देश जहां, जहां सभी सुखी और सानन्द हों । सुंदर हों , सम्पन्न हों। चुनाव में लोग उनको देखते ही बेनीपुरी जिंदाबाद के जो नारे लगाने लगते थे। वह उनके इन्हीं सपनों का बतौर अभिनन्दन था। देश की तत्कालीन राजनीतिक घटना क्रमों को देख कर बेनीपुरी चिंतित रहा करते थे। समाजवादी खेमे के शीर्ष नेतृत्व में आपसी वैमनस्य चरम पर था। एक-दूसरे को शक की निगाह से देखते थे। बेनीपुरी जी ने अपनी ‘डायरी के पन्ने ‘ पुस्तक में तत्कालीन सोशलिस्ट नेताओं के आपसी मतभेद का विस्तार से उल्लेख किया है ।चुनाव परिणाम घोषित हुआ। बेनीपुरी करीब चार हजार मतों से अपना यह पहला विधानसभा चुनाव हार गये। अपनी इस हार के बारे में वे लिखते हैं कि वे चुनाव हारे नहीं, उन्हे हराया गया। सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन में भी वे स्प्ष्टवादिता और हृदय की विशालता के सदैव पक्षधर बने रहे। चुनाव का नतीजा घोषित होने के बाद बड़े व्यथित हृदय से उन्होंने कहा था’ जिनके हृदय में उदारता नहीं, चापलूसी करके जिनसे जो भी न करा लिया जा सकता हो, आज अपने देश के निर्माण का काम उन्हीं के हाथों में आ गया है और यह देश जिसका अंग – अंग शीर्ण है, इसकी हर जगह पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। (5 मार्च , 1952)
1952 से आजतक देश में अनेक चुनाव हो चुके हैं, आगे भी होते ही रहेंगे। सरकारें बनती रही,बनती रहेंगी, मगर बेनीपुरी जी ने 1952 के चुनाव के दिनों में जनता को जो सपने दिखाए थे, आजतक वे सपने साकार नहीं हुए। आज इस स्वप्नदर्शी राजनेता और कलम के जादुगर रामवृक्ष बेनीपुरी की 119 वीं जयंती है। इस अवसर पर जब हम उनके सपनों के भारत की वास्तविकता का सिंहावलोकन करते हैं तो स्थिति कुछ दूसरी ही दिखाई देती है।
विभिन्न सरकारी और प्रामाणिक गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि दो साल पहले ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के 119 देशों में भारत 100 वें नम्बर पर था जो फिसल कर अब 103 वें नम्बर पर आ गया है। पिछले कुछ वर्षों में देश में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। भूख से रोजाना 7 हजार लोगों की मौत हो रही है। यहां रोजाना 20 करोड़ 30 लाख लोग भूखे दिन बिताते हैं। भारत में पूरी दुनिया के एक तिहाई गरीबों का निवास है। अबतक 3 लाख 50 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। रोजाना 3 हजार बच्चे कुपोषण जनित बीमारियों से मरते हैं। रोजाना 10 हजार लोग उचित इलाज के अभाव में मौत को गले लगा रहे हैं।
बेनीपुरी जी ने इन्हीं किसानों, मजदूरों, युवक-युवतियों, महिलाओं और वृद्धों के जीवन में खुशियाली लानें का सपना संजोया था। इस सपने को साकार करने के लिए देश में एक समाजवादी व्यवस्था की स्थापना के लिए वे जीवन पर्यंत संघर्षरत रहे। जयंती पर इस महान समाजवादी योद्धा को श्रद्धासुमन।
ब्रह्मानंद ठाकुर।बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। मुजफ्फरपुर के पियर गांव में बदलाव पाठशाला का संचालन कर रहे हैं।