ये वक्त अपने साथी विनय तरुण को याद करने का है। साथी को याद करते हुए हमने हमेशा उसके कर्मों की बात की है। शायद यही वजह है कि विनय से जुड़े हम सभी साथी अपने-अपने क्षेत्र में रहते हुए न्यूनतम ही सही, किंतु सामाजिक हस्तक्षेप की कोशिशें लगातार करते रहे हैं। चूंकि मेरा परिचय विनय तरुण से दस्तक के माध्यम से हुआ इसलिए मैं इस सूत्र को हमेशा याद रखता हूं। दस्तक को जिंदा रखना, मतलब अपने तमाम साथियों के उस सूत्र को जिंदा रखना है, जो हमें भावनात्मक रूप से एक साथ पिरोए हुए हैं। तमाम अंतर्विरोधों और मतभेदों के बावजूद हम दस्तक के बैनर तले आकर खुद को साझा करने में हिचक महसूस नहीं करते।
विनय के आकस्मिक निधन के बाद साथियों ने इस शोक से उबरने का रचनात्मक तरीका ढूंढा। हम विनय के बहाने हर साल बैठते हैं और बातें करते हैं। रायपुर, दिल्ली, भोपाल, मुजफ्फरपुर, मधेपुरा और पूर्णिया के बाद इस साल ये आयोजन जमशेदपुर में हो रहा है। कर्मठ और प्रगतिशील सोच के युवा पत्रकार स्व. विनय तरुण का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले में 20 अगस्त 1978 को हुआ था। उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से 1999-2002 बैच में बैचलर ऑफ जर्नलिज्म की पढ़ाई की थी। मात्र 32 साल की उम्र में 22 जून, 2010 को ट्रेन हादसे में उनकी असामयिक मौत हो गई थी। वे भोपाल, जमशेदपुर, भागलपुर समेत कई शहरों में विभिन्न अखबारों से जुड़े रहे।
आज से दो साल पहले विनय तरुण स्मृति कार्यक्रम में हमने badalav.com की परिकल्पना रखी। अब साथियों के सहयोग से इस वेबसाइट को भी दो साल का सफर पूरा हो रहा है। इसी कड़ी में अब नया नाम बदलाव बाल क्लब का भी जुड़ गया है। आज जब मुख्य कार्यक्रम जमशेदपुर में हो रहा है, देवरिया, औरंगाबाद, मुजफ्फरपुर, दिल्ली, गाजियाबाद और जौनपुर में भी बदलाव बाल क्लब की कहानी कार्यशाला का समापन हो रहा है। इसमें एक सूत्र है, हर संवेदनशील मन पर दस्तक देने की कोशिश। आप इसे जिस रूप में भी देखना चाहें, देख सकते हैं। लेकिन हम इसे आप साथियों के साथ से मिली साझा शक्ति का विस्तार ही मानते हैं। आप सभी साथी इस सिलसिले को जिस रूप में भी चाहें आगे बढ़ा सकते हैं। निरंतर संवाद की संभावनाएं बनी रहनी चाहिए।
बदलाव बाल क्लब, बच्चों का एक अनौपचारिक संगठन है। मकसद बच्चों के साथ एक सकारात्मक और रचनात्मक संवाद स्थापित करना है। कोशिश ये है कि इस बाल क्लब में बच्चे केंद्रीय भूमिका में रहें और उनके अभिभावक या संगठनकर्ता सहायक की भूमिका में। बच्चों में रचनात्मक अभिरुचि का बीज डालने का काम जरूर बदलाव कर रही है लेकिन उसके बाद भूमिका बेहद सीमित है। करीब दो हफ़्तों की कार्यशाला के बाद किस्सागोई को लेकर बच्चों का हौसला बढ़ा है, भरोसा बढ़ा है। आज गाजियाबाद में एक छोटे से कार्यक्रम में दिल्ली और गाजियाबाद के बच्चों को एक साथ प्रमाणपत्र वितरित किए जाएंगे। इसी तरह मुजफ्फरनगर में भी बच्चों की कार्यशाला का समापन हो रहा है। औरंगाबाद, देवरिया, जौनपुर में बच्चों के उत्साह को देखते हुए इस कार्यशाला को एक-दो दिन के लिए आगे भी बढ़ाया जा सकता है।
जून 2016 में बदलाव बाल क्लब की संकल्पना की गई। बिना किसी ताम-झाम के गाजियाबाद के वैशाली में बच्चों की ग्रीष्मकालीन कार्यशाला का संचालन किया गया। 21 मई से 21 जून 2016 तक पहली कार्यशाला चली। करीब 20 बच्चों ने आर्ट-क्राफ्ट, डांस-म्यूजिक, योगा, पोस्टर मेकिंग, वॉल मैग्जीन को लेकर काम किया। इसके बाद भी अलग-अलग मौकों पर बच्चे जुटते रहे और कारवां बढ़ता गया।
जून 2017, गर्मियों की छुट्टी के साथ बदलाव बाल क्लब अपने दूसरे साल में प्रवेश कर गया। नवोदय विद्यालय के आर्ट टीचर श्री राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने बदलाव के साथियों से सवाल किया- इस साल कोई कार्यक्रम बदलाव बाल क्लब का नहीं हो रहा, क्यों? उनके इस सवाल ने एक प्रेरणा का काम किया। किस्सों की कार्यशाला का ड्राफ्ट बना और बदलाव की कार्यशैली के मुताबिक उस पर अमल भी शुरू कर दिया गया।
गाजियाबाद, वैशाली में 6 जून 2017 को ‘आओ पढ़ें, सुनें और सुनाएं किस्से’ कार्यशाला शुरू हुई और इसके साथ ही बदलाव से जुड़े तमाम साथी सक्रिय होने लगे। वैशाली में अभया श्रीवास्तव और सर्बानी शर्मा ने संयोजक की भूमिका में बच्चों को जोड़ा और उनकी दिलचस्पी बनाए रखी। ये खुशी की बात है कि हफ्ते भर का वक्त गुजरते-गुजरते देश के कई शहरों में बदलाव की कार्यशाला के लिए बच्चों का मजमा लगने लगा। दिल्ली के मयूर विहार में प्रियंका यादव ने पहल की और अपने घर पर कार्यशाला शुरू कर दी। मुजफ्फरपुर में बदलाव बाल क्लब के संचालन का जिम्मा सेवानिवृत शिक्षक, समाजसेवी और साहित्यकार ब्रह्मानंद ठाकुर ने संभाला। ब्रह्मानंद ठाकुर badalav.com के अप्रैल माह के अतिथि संपादक भी रहे हैं। उनकी पहल पर मुजफ्फरपुर और दूसरे शहरों के साहित्यकार, रचनाकार भी वर्कशॉप का हिस्सा बने।
बिहार के औरंगाबाद में ढाई आखर फाउंडेशन ने बदलाव बाल क्लब के साथ कहानी कार्यशाला को अंजाम दिया। ढाई आखर फाउंडेशन के सक्रिय सदस्य संदीप शर्मा बदलाव बाल क्लब के साथ पहले वर्ष से ही जुड़े रहे हैं। देवरिया में बदलाव बाल क्लब की कमान अनिल यादव ने संभाली। अपने जुझारू अंदाज में उन्होंने चंद दिनों में ही 50-60 बच्चों को इस मुहिम का हिस्सा बना लिया। इस कड़ी में आखिरी नाम जौनपुर के रेहारी गांव का जुड़ा। रेहारी में पेशे से शिक्षक सुनील यादव ने मोर्चा संभाला।
महज दो हफ्तों में देश भर से मिला ये रिस्पांस हमारे लिए अप्रत्याशित है। किस्सागोई को लेकर ये दिलचस्पी भी हैरान करने वाली है। बच्चों ने कहानी, गीत, कविता, कहानी मंचन, कहानी चित्रण समेत तमाम गतिविधियों में हिस्सा लिया। अभिभावकों का भी पूरा सहयोग हमें मिला। मोबाइल, इंटरनेट और टीवी ने हमारी किताबों का स्पेस हमसे छीन लिया है। दादा-दादी और नाना-नानी के किस्सों की अहमियत कम कर दी है। हम किस्सों के साथ ही इन रिश्तों की पुरानी तासीर की तलाश भी कर रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कई प्रस्ताव हमारे सामने आए। कतिपय कारणों से इस बार कुछ साथी चाहकर भी बदलाव बाल क्लब की कहानी कार्यशाला अपने शहर में शुरू नहीं कर पाए। पर उम्मीद तो यही है कि सफ़र आगे बढ़ेगा तो साथियों की तादाद भी बढ़ेगी।
पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।