अक्षय विनोद शुक्ल
“पूना माड़ाकाल” पढ़ते ही आपके दिमाग़ में ये सवाल आया होगा कि आख़िर इसका मतलब क्या होता है?दरअसल पूना माड़ाकाल दंतेवाड़ा का शाब्दिक अर्थ होता है “गढ़ेंगे नया दंतेवाड़ा” !लम्बे समय तक विकास की मुख्यधारा से दूर रहने वाले दंतेवाड़ा के लिए ये सिर्फ़ शाब्दिक अर्थ तक सीमित नहीं है । बीते कुछ समय में हक़ीक़त की ज़मीन पर हुए काम बताते हैं की “पूना माड़ाकाल दंतेवाड़ा” एक प्रण है, विश्वास है और भारत के तमाम हिस्सों के लिए एक उदाहरण भी . इसे पूना माड़ाकाल का ही असर माना जा रहा है की बीते 1.5 साल में 479 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया और मुख्यधारा से जुड़ने की दिशा में क़दम आगे बढ़ाए हैं। लम्बे समय तक बारूद की गंध के लिए पहचाना जाने वाला दंतेवाड़ा कैसे अपनी एक नई पहचान गढ़ रहा है, कैसे महिला सशक्तिकरण के साथ विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है और ये सब कुछ हो रहा है दंतेवाड़ा के डीएम दीपक सोनी की बदौलत. तो आइए आपको सिलसिलेवार तरीक़े से बताते हैं की कैसे “पूना माड़ाकाल दंतेवाड़ा” विकास की एक नई इबारत लिख रहा है.
मेक इन दंतेवाड़ा
जिस वक्त पूरी दुनिया में कोरोना महामारी का क़हर टूट रहा था, भारत के बड़े बड़े शहरों से फ़ैक्ट्री छोड़कर मज़दूर अपने घरों को लौट रहे थे और उनके लिए आय का ज़रिया खोजना मुश्किल काम था। ऐसे समय में दंतेवाड़ा में स्थानीय लोगों के लिए एक नई कहानी गढ़ी जा रही थी । 31 जनवरी 2021 को दंतेवाड़ा जिले में बेरोजगार महिलाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से ग़रीबी उन्मूलन के तहत नवा दंतेवाड़ा गारमेंट फैक्ट्री यूनिट का शुभारंभ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किया । वैसे तो डेनेक्स जिसका मतलब है दंतेवाड़ा नेक्स्ट जो कपड़े के एक ब्रांड के तौर पर अपना सिक्का स्थापित कर रहा है, लेकिन ये महज़ एक ब्रांड नहीं अब दंतेवाड़ा की पहचान है ।डेनेक्स बड़ी बड़ी कंपनियों को दंतेवाड़ा में कपड़े तैयार करने के लिए अपनी ओर खींच रही है ।महिला सशक्तिकरण का नायाब नमूना पेश करते डेनेक्स में तैयार होने वाले कपड़ों के लिए महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई और कुछ ही समय में 770 महिलाओं को डेनेक्स के ज़रिए ना सिर्फ़ नौकरी मिली बल्कि सपनों को पूरा करने का हौसला भी मिला । आज इन महिलाओं की मासिक कमाई ₹7000-15000 हज़ार तक है।डेनेक्स में 1,200 परिवारों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है । देश के कई बड़े ब्रैंड्ज़ के लिए कपड़े डेनेक्स से तैयार होकर जा रहे हैं ।यानी आज पूरा भारत दंतेवाड़ा में तैयार कपड़े पहनता है ।
बराबरी का हक़ देती बेकरी
समाज में सभी को बराबरी का हक़ है, फिर भी आज भी ऐसे कुछ वर्ग के लोगों को तमाम परेशानियों ने दो चार होना पड़ता है। इन्हीं असमानताओं को दूर करती है नवचेतना बेकरी ।नवचेतना बेकरी दन्तेवाड़ा की पहली बेकरी है ऐसे लोगों को स्व रोज़गार मुहैया कराया जा रहा है जो मानव तस्करी से छुड़ाए गये बंधुवा मजदूर हैं या ट्रान्स जेन्डर हैं। ताकि ये भी समाज की मुख्यधारा में सबके साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ सकें ।यहाँ तैयार होने वाले उत्पादों में किसी केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता। ये पूरी तरह से ऑर्गैनिक यानी जैविक उत्पादों से तैयार किए जाते हैं । यहाँ केक, कुकीज़, पेस्ट्री जैसे कई लज़ीज़ व्यंजनों का लुत्फ़ उठाया जा सकता है।नवचेतना बेकरी का उद्देश्य सिर्फ़ रोज़गार देना नहीं है, यह समाज को एक नई सोच के साथ आगे बढ़ने की सीख देता है । ज़िला प्रशासन ने इस दिशा में ज़रूरत की सारी चीज़ें उपलब्ध कराई हैं और इसका नतीजा है की नवचेतना बेकरी के ज़रिए अब तक लगभग 3.50 लाख रू का फ़ायदा हुआ है।
भगवान से पहचान
कहते हैं कि अगर चाह हो तो इंसान क्या कुछ नहीं कर सकता, वो भगवान को भी अपना साथ देने पर मजबूर कर सकता है । ऐसी ही कुछ कहानी है दंतेवाड़ा के देवगुड़ी (देवस्थान) की, सांस्कृतिक विरासत को संजोने और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गांवों के आस्था के प्रतीक देवगुड़ी का कायाकल्प किया गया। जिससे उन्हें पूरी दुनिया में एक अलग पहचान मिल रही है, और अब देश-विदेश के सैलानी विशेष तौर से इन देवगुड़ियों को देखने दंतेवाड़ा आ रहे हैं। ज़िला प्रशासन ने इस कड़ी में 1-2 नहीं 143 ग्राम पंचायत में देवगुड़ी कायाकल्प कर संस्कृति और धरोहर को संजोने के साथ साथ ग्रामीणों की आजीविका बढ़ाने का काम किया है ।
इस बारे में तंदेवाड़ा के डीएम दीपक सोनी से जब बात ही तो उन्होंने बताया कि “नव वर्ष में पूना माड़ाकाल दंतेवाड़ा का जो मिशन है उसे और सशक्त करना है। माननीय मुख्यमंत्री जी ने जो जिले को टारगेट दिया है जिसके तहत गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या को कम करना है। सभी को आजीविका के संसाधनों से जोड़ना है। लोगों को आजीविका मिल सके, इसके लिए प्रयास करना है। दुरस्थ जगहों पर भी मूलभूत सुविधाएं पहुंचाना प्राथमिकता है।
हुनर भी हौसला भी
दुष्यंत कुमार जी ने कहा था- ‘कौन कहता है आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों’
इसे सच साबित कर दिखाया है दंतेवाड़ा ज़िला प्रशासन ने । जहाँ एक ओर छोटे-छोटे गाँव में रहने वाले लोगों के लिए रोज़गार एक बड़ा मुद्दा रहा है ज़्यादातर ग्रामीण कृषि, वनोपज और पशुपालन पर निर्भर रहते थे । वहीं दूसरी ओर हर छोटे बड़े काम के लिए पहले उन्हें दंतेवाड़ा जाने की ज़रूरत पड़ती थी ।
इसे देखते हुए ज़िला प्रशासन ने ज़िले के 127 ग्राम पंचायतों के लगभग 400 लोगों को सीधे फ़ायदा पहुँचाया है । अप्रशिक्षित बेरोज़गारों को उनकी दिलचस्पी और गाँव की ज़रूरत के हिसाब से किराने की दुकान, सलोन, मोटर साइकल रिपेरिंग, फ़ोटोकॉपी , मोबाइल- कम्प्यूटर रिपेरिंग जैसे स्वरोज़गार के लिए न सिर्फ़ ट्रेनिंग दी गई बल्कि ज़रूरत के हिसाब से सहयोग राशि मुहैया कराई जा रही है ।
इसी तरह सफ़ेद अमचूर से खाने का ज़ायक़ा और दंतेवाड़ा की पहचान दोनों को एक नया मुक़ाम मिल रहा है । पारंपरिक तरीक़े से महिलाओं द्वारा तैयार किए जा रहे अमचूर की माँग देश के कोने कोने से आ रही है ।