अखिलेश्वर पांडेय मौजूदा समय में लिखी व प्रकाशित हो रही कहानियों का विमर्श उनकी रचनात्मकता का सबसे बड़ा पैमाना बन
Author: badalav
पटाखे धीरे चलाओ, स्क्रीन हिली तो सीटें कम हो जाएंगी!
धीरेंद्र पुंडीर ये जीत का जश्न फीका है, ये हार का स्वाद मीठा है। ये गुजरात की उलटबांसी है। सिर्फ
‘आनंद का दिन’ और ‘नैतिक जीत’ का निहितार्थ
शशि शेखर (फेसबुक वॉल से साभार) ‘जो जीता वही सिकंदर’ और ‘हारे को हरिनाम’। ये दो ऐसी कहावते हैं, जिन्हें
रीयल लाइफ का ‘पैड-मैन’
बासु मित्र आपने अक्षय कुमार की फिल्म पैड-मैन की चर्चा खूब सुनी होगी । इन दिनों टीवी चैनल्स से लेकर
6 दिसंबर का वो दिन, जब भीड़ ने छीना कैमरा
एसके यादव 6 दिसंबर 1992, आजाद हिंदुस्तान का एक दिन, जिसने ना सिर्फ देश के धर्मनिरपेक्ष भावना को बिगाड़ा बल्कि
8 साल बाद जारंग गांव में लौटी ‘उम्मीदों के स्कूल’ की रौनक
ब्रह्मानंद ठाकुर आखिर क्या वजह है कि जब कोई मंत्री या नेता गांव-गिराव में जाता है तभी प्रशासन को वहां
हमने दुनिया का सबसे अच्छा आर्ट टीचर पाया
पशुपति शर्मा दिसंबर के पहले हफ़्ते में आर्ट सर (श्री राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ) से आख़िरी मुलाक़ात हुई। सर के चेहरे
छांव
मृदुला शुक्ला छाँव कहाँ होती है अकेली खुद में कुछ ये तो पेड़ों पर पत्तियों का दीवारों पर छत का
न्यू इंडिया का ‘हसीन सपना’ और दम तोड़ते अन्नदाता की हकीकत
ये सुनने में काफी अच्छा लगता है कि हिंदुस्तान अब न्यू इंडिया बन रहा है । कम से कम मौजूदा
‘कमल’ पर आसीन ‘मलिन मणि’ का क्या करोगे ‘साहब’
उर्मिलेश भारतीय जनता पार्टी में एक नहीं, अनेक ‘अय्यर’ हैं, उनसे ज्यादा अमर्यादित और असयंमित शब्द निकालने वाले! उन्हें अपशब्दों