शिरीष खरे “देश भर के गांवों में ऐसा स्कूल मिलना मुश्किल है।”– यह दावा है मादलमुठी शाला (सांगली, महाराष्ट्र) के
Author: badalav
बहुत तकलीफ़देह है नीलाभ का यूं जाना
नमस्ते, कल्पितजी ! मैं नीलाभ मिश्र हूँ, पटना से आया हूँ । नवें दशक का कोई शुरुआती वर्ष था, जब
महाराष्ट्र के सांगली की प्राथमिक शाला की अपनी वेबसाइट
शिरीष खरे किसी एक छोटे गांव की प्राथमिक शाला की अपनी वेबसाइट होना विशेष भले ही न लगे, लेकिन क्या
मन फागुन-फागुन हो गया
संजय पंकज मंजरियों की गंध लगी तो मन फागुन फागुन हो गया! प्रेमिल सुधियाँ अंग लगी तो
गांववालों, आओ फूल उगाएं और चलें बाज़ार
अरुण प्रकाश देश का अन्नदाता बदहाल है, उसके पीछे कई वजह हैं, सबसे बड़ी वजह है बाजार के हिसाब से
3 घंटे और 2 इंटरवल वाले नाटकों का दौर
अनिल तिवारी मेरे कुछ मित्रों ने एपीसोड 8 के बाद पूछा कि बीआईसी किस तरह के नाटक किया करती थी?
बदलाव पाठशाला – हम पढ़ेंगे, खेलेंगे और कूदेंगे
बदलाव प्रतिनिधि मुजफ्फरपुर के बंदरा प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी विजय कुमार ठाकुर ने प्रखंड के पियर गांव में टीम
व्यक्ति की इच्छाओं का द्वंद्व- हयवदन
संगम पांडेय अक्षरा थिएटर में लाइट्स वगैरह की कई असुविधाएँ भले हों, पर इंटीमेट स्पेस में प्रस्तुति का घनत्व अपने
क्या जंगलों में आदिवासियों का होना अच्छे पर्यावरण का प्रतीक नहीं?
शिरीष खरे शिरीष खरे की बतौर पत्रकार यात्रा की ये पांचवीं किस्त है। मेलघाट का अनदेखा सच पाठकों तक शिरीष
फूलों की खेती से बदलेगी किसान की किस्मत
बदलाव प्रतिनिधि, सेहमलपुर फूलों की खेती के फायदों से आम किसानों को अवगत करवाने के लिए टीम बदलाव ने जौनपुर