बदलाव प्रतिनिधि
आर्यमन वर्मा। 13 साल के इस नए तीरंदाज का नाम भले मम्मी-पापा ने आर्यमन रखा हो लेकिन इसकी पहचान ‘ नन्हे अर्जुन’ की तरह बनने लगी है। यार-दोस्त और करीबी उसे गाहे-ब-गाहे इसी नाम से पुकारते हैं तो उसका संकल्प कुछ और मजबूत होता है। हम बात कर रहे हैं एक उभरते हुए तीरंदाज की, जिसने तीर-धनुष से यारी गांठी हैं और तीरंदाजी की अपनी साधना में लगा हुआ है।
दिल्ली के बाराखंबा के मॉडर्न स्कूल के छात्र आर्यमन की उम्र महज 13 साल है लेकिन उसने जिस तरह से तीरंदाजी में महारत हासिल की है, आपके लिए उसकी उपलब्धियों पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है। गाजियाबाद के सेक्टर 6 में आरोग्या अस्पताल की डॉक्टर अंजली चौधरी बताती हैं कि उनके बेटे आर्यमन ने बचपन में तीरंदाजी में दिलचस्पी दिखाई। 9 साल की उम्र में ही मां अंजली चौधरी और पिता डॉक्टर उमेश वर्मा ने अपने बेटे के इस शौक को समझा और यमुना स्पोर्ट्स कॉम्पलैक्स में उसकी ट्रेनिंग शुरू हो गई।
अंडर 14 की कई राज्य स्तरीय और राष्ट्र स्तरीय प्रतियोगिताओं में आर्यमन ने शानदार प्रदर्शन किया है। घर का एक हिस्सा आर्यमन के जीते गए पदकों से सज चुका है। पिछले तीन महीनों की बात करें तो पंजाब के संगरुर में सीबीएसई नेशनल आर्चरी प्रतियोगिता में आर्यमन ने एक गोल्ड और एक सिल्वर मेडल हासिल किया। मध्यप्रदेश के उजैन में एसजीएफआई नेशनल फील्ड आर्चरी प्रतियोगिता में तो आर्यमन ने सभी तीरंदाजों को हैरान कर दिया। उसने चार गोल्ड मेडल अपने तीरों से भेद डाले। इसी तरह चंदौली, उत्तर प्रदेश में नेशनल प्रतियोगिता में भी उसने 2 ब्रॉन्ज मैडल हासिल किए। आर्यमन ब्रॉन्ज का जश्न नहीं मनाते बल्कि गोल्ड के लिए प्रयास शुरू कर देते हैं। उनके चेहरे पर गोल्डन मुस्कान तो गोल्ड मेडल हासिल करने के बाद ही आती है।
आर्यमन के पिता डॉक्टर उमेश वर्मा बताते हैं कि आर्चरी के साथ ही आर्यमन अच्छे तैराक भी हैं। रायपुर, छत्तीसगढ़ में आईपीएससी नेशनल प्रतियोगिता में उसने स्विमिंग के 100 मीटर बैकस्ट्रोक रेस में सिल्वर मेडल हासिल किया। एक से 5 अक्टूबर को ये प्रतियोगिता रायपुर में हुई थी।
फिलहाल आर्यमन का पूरा ध्यान तीरंदाजी में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में देश का नाम रौशन करने पर है। आर्यमन के कोच लोकेश चंद को भी उनसे बड़ी उम्मीदें हैं। आपको बता दें कोच लोकेश चंद ने अर्जुन अवॉर्ड विजेता अभिषेक वर्मा, संचिता तिवारी, आदित्य वर्मा, यशराज जैसे बेहतरीन तीरंदाज देश को दिए हैं। आर्यमन और लोकेश चंद्र दोनों अभी तक की उपलब्धियों को इस सफर का एक पड़ाव भर मानते हैं। चिड़ियां की आंख की तरह आर्यमन की नजरें अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं पर लगी है और भरोसा तो यही है कि आर्यमन चिड़ियां की आंख का निशाना चूकेंगे नहीं।