पुष्यमित्र
बैजूराम पर आठवीं के सर्टिफिकेट के सत्यापन में जालसाजी का आरोप है। मतलब यह कि नौकरी पक्की कराने के आवदेन के साथ 8वीं कक्षा के प्रमाणपत्र की जो छायाप्रति उन्होंने जमा की थी, उसका सत्यापन जाँच में जाली पाया गया है। है न मजेदार। आदमी भी सही है। उसका सर्टिफिकेट भी सही है। बस सर्टिफिकेट का सत्यापन जाली है, यह भी प्रशासन का दावा है। बैजू राम आरोप से इनकार करते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने तत्कालीन डीएम मुजफ्फरपुर और MIT के प्रिंसिपल से जब सत्यापन कराया है तो भला फर्जी कैसे हो सकता है।
मुझे अन्ना आन्दोलन याद आ रहा है। अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे थे। प्रशासन ने कुछ चार्ज लगा कर उन्हें अंदर करा दिया। हालांकि बैजू अन्ना नहीं है। वह एक दीन-हीन महादलित हैं। एक नौकरी के लिए मारा-मारा फिर रहा है। जिस पर उसका वाजिब हक़ है। वह 17-18 साल तक इस नौकरी को करता रहा है। एक माली की नौकरी के लिए क्या सर्टिफिकेट और उसका सत्यापन इतना जरूरी है? अभी-अभी कानून बना है कि आप अपने प्रमाणपत्र का सत्यापन खुद कर सकते हैं। मगर, हमारा तंत्र इतना संवेदनशील कैसे हो सकता है कि किसी ग़रीब को इन झमेलों से बरी कर दे।
लगता है अफ़सरों को देहरादून में अभी तक दमन का ‘ब्रिटिश पाठ’ ही पढ़ाया जा रहा है। बहरहाल बुधवार (10 अगस्त 2016) रात बैजू राजधानी पटना से मुजफ्फरपुर पुलिस के वैन में बैठकर नाउम्मीद हो कर लौट गया है। एक ग़रीब व्यक्ति राजधानी तक का सफर इस उम्मीद से करता है कि वहां उसे न्याय मिलेगा। मगर शायद उसे पता नहीं होगा कि राजधानी में अब गुहार लगाने वाले को चोर साबित करने का ‘गोरखधंधा’ शुरू हो गया है। उसे न्याय तो नहीं मिला। आइये अब हम प्रार्थना करें कि उस बेगुनाह को जेल की चारदिवारी में कम से कम दिनों तक रहना पड़े। इस व्यवस्था को इतने से ही खुश हो लेने दिया जाये कि उसने आवाज उठाने वाले को जेल भेज कर मजा चखा दिया है।
आईये, बैजू राम की कहानी के कुछ हिस्सों को आपके सामने रखते हैं। वही बैजू राम जो 9 अगस्त 2016 को कफन पहनकर विश्वेश्वरैया भवन के सामने खड़े थे। अपनी नौकरी के बारे में कोई पक्का फैसला चाह रहे थे। मगर हुक्मरानों को उनके विरोध का तरीका पसंद नहीं आया। सवा ग्यारह बजते-बजते शास्त्रीनगर थाने की पुलिस उन्हें उठा कर अपने साथ ले गयी। दिन भर भूखे प्यासे थाने में बिठाये रखा। मैं जब उनसे मिलने थाना गया तो इंस्पेक्टर देवेन्द्र यादव ने कहा- इन्हें डिटेन नहीं किया गया है, न ही गिरफ्तार किया गया है। ये चाहें तो जो सकते हैं, मगर मेरे जाते ही इन्हें रोक लिया गया।
फ्लैश बैक में कहानी कुछ ऐसी है। बैजू राम काँटी, मुजफ्फरपुर वासी। इनकी शिकायत है कि इन्होंने 21 साल तक लगातार मुजफ्फरपुर कमिश्नर के आवास पर सरकारी माली के रूप में काम किया। मगर उनकी स्थिति दैनिक वेतनभोगी वाली ही रही। फिर उन्हें एमआईटी मुजफ्फरपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। वहां भी उन्होंने 5-6 साल लगातार सेवा की। बैजूराम का कहना है कि जब सेवा स्थायी करने की बात उठी तो इनसे एक लाख रूपये की मांग कर दी गई। उन्होंने रकम देने से इनकार कर दिया तो इनकी पात्रता को यह कह कर ख़ारिज कर दिया गया कि इनका प्रमाणपत्र नकली है।
यह 2008 की बात है तब से बैजू राम लगातार नेताओं और अफसरों के पास गुहार लेकर भटक रहे हैं। कोई सुनवाई नहीं हो रही। 2015 में ये धरने पर बैठ गये। उसका भी कोई असर नहीं हुआ। यहाँ एक बड़े अधिकारी ने उनसे कहा कि एक महीने में उनके मामले का समाधान हो जायेगा। मगर मामला ज्यों का त्यों है। पटना वे इस इरादे से आये कि या तो उनके मामले का समाधान हो या वे परिवार समेत आत्मदाह कर लेंगे। बात करते करते वह फफकने लगते हैं। कहते हैं दलित भूमिहीन हैं, इसलिए उनके साथ न्याय नहीं हो रहा। 25-26 साल नौकरी करने के बावजूद आज वे इस हालत में नहीं हैं कि परिवार को दो वक़्त की रोटी खिला सकें। कहते हैं, गरीबों की सरकार है, मगर आठ साल से वे चक्कर लगा रहे हैं सरकार उनकी सुनती नहीं।
मैं यह पोस्ट इसलिए लिख रहा हूँ कि इस देश में दलितों के लिए जान न्योछावर करने का दावा करने वालों की सरकार दिल्ली से लेकर पटना तक है। कोई तो बैजू राम का न्याय करे। दलितों के हक़ की लड़ाई जो देश भर में लड़ी जा रही है उनमें से चार लोग तो बैजू राम की लड़ाई में उनका साथ दें। उनके पीछे खड़े हों। यह उनके हक़ की लड़ाई तो है ही भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भी मुहिम है। मगर 8 साल से वे अकेले इस लड़ाई को लड़ रहे हैं। वे राजधानी पटना के मुख्य सड़क बेली रोड के किनारे अकेले खड़े थे, अब जेल में हैं। यह किस्सा दलितों के प्रति सरकारी रवैये का जीता जागता उदाहरण है। देखते हैं, कितने लोग उनकी इस जंग में उनके साथ खड़े होते हैं।
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।
पुष्यमित्र जी , बैजू राम के प्रति मेरी हार्दिक पीड़ा और उसकी लड़ाई लड़ने के लिए आपको साधुवाद ।
बैजू के साथ अन्याय इसलिये नही हो रहा कि वह दलित या शोषित है ।अन्याय की शुरुवात इसलिये हुई कि उसने भ्रष्टाचार के मलिन यज्ञ में एक लाख रु की आहुति डालने से इन्कार कर दिया था । यह इन्कार कोई बनिया , ठाकुर करता तो उसके साथ भी यही होता । यही चरित्र होता है सामंतवादी सत्ता / शोषक वर्ग का ।
मेरा परामर्श है कि अपनी इस लड़ाई को थोड़ा धार दीजिये और अपने contacts का लाभ लेते हुये इस story को किसी नेशनल या स्टेट लेवल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया / चैनल पर हाईलाइट करायें , इससे पहले कि मुजफ्फरपुर का बैजू बिहार का बैजू ‘ बावरा ‘ न बन जाय ।