देश के ‘दूसरे गांधी’ के सवालों का जवाब तो दे सरकार

देश के ‘दूसरे गांधी’ के सवालों का जवाब तो दे सरकार

पशुपति शर्मा

अन्ना नहीं आंधी है, देश का दूसरा गांधी है। इन नारों की गूंज आज से करीब 4 साल पहले के रामलीला मैदान के आंदोलन के दौरान खूब सुनी गई। अखबारों की हेडलाइन, न्यूज़ चैनलों के टॉप बैंड तब ऐसे ही नए-नए नारेनुमा जुमलों से अटे पड़े थे- ‘आ गए अन्ना, छा गए अन्ना’। वक़्त बदला है लेकिन समझ नहीं आ रहा कि उन्हीं मीडिया संस्थानों के लिए ‘दूसरे गांधी’ इतने उपेक्षित क्यों हो गए? क्या भ्रष्टाचार, लोकपाल और किसानों के वो तमाम मुद्दे हल कर लिए गए, जो आज से चार साल पहले के आंदोलन के दौरान उठे थे। अगर नहीं तो नारे भले न उछालें, मुद्दों पर बात तो होनी चाहिए।

अन्ना आंदोलन के चौथे दिन सुबह करीब साढ़े 10 बजे दिल्ली के रामलीला मैदान पहुंचा तो पंडाल में दूर-दूराज से आए हज़ार-2 हज़ार किसान बैठे और लेटे थे। पंडाल के चारों तरफ अलग-अलग किसान संगठनों के पोस्टर टंगे थे। इन सबके बीच कुछ लोग तिरंगा लहरा रहे थे। कुछ अलग-अलग मुद्दों वाली तख्तियां टांगे घूम रहे थे। मंच से दूर और अंतिम बैरीकेड के करीब वो आखिरी आदमी गांधी की वेशभूषा में, गांधी की तस्वीर गले से लगाए, तिरंगा थामे चहल-कदमी कर रहा था, जिसकी बात गांधी हर वक्त किया करते थे। नीतियां और फ़ैसले लेने वक़्त इस आखिरी आदमी की तकलीफ़ से रूबरू होने की आरजू किया करते थे। लेकिन अजीब विडंबना है देश में न तो इस आखिरी आदमी की आवाज़ सुनने को सरकार तैयार है और न ही ऐसे अहिंसक आंदोलनों का उसके लिए कोई मायने रह गया है।

बहरहाल, मंच से उद्घोषणा हुई कि तीसरे दिन तक अनशन पर बैठे लोगों की तादाद 227 तक पहुंच गई थी और इसमें 56 लोगों का इजाफा हो गया है। यानी कुल 283 लोगों के अनशन पर बैठने की सूचना आंदोलन कर रही समिति के पास पहुंच चुकी थी। इनमें से इक्का-दुक्का लोगों की तबीयत बिगड़ रही है। उन्हें अस्पताल पहुंचाया जा रहा है। सेहत सुधरते ही फिर अन्ना के साथ आंदोलन में शरीक। खुद अन्ना का वजन चौथे दिन की सुबह तक करीब साढ़े 4 किलो घट चुका है। अन्ना ने तो मानो ऐसी कठिन साधना के लिए खुद को तपा लिया है।

अन्ना के मंच पर आते ही भारत माता के नारों की गूंज सुनाई देने लगती है। इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगते हैं। पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया और पत्रकार मित्रों के बीच इस बार के आंदोलन में भीड़ की कमी की जो चर्चा सुन रहा था, वो यहां पहुंचकर मुझे बेमानी लगने लगती है। सवाल उस सत्य का है, जिससे हम रूबरू होना चाहते हैं। अहम वो सवाल हैं, जो यहां पहुंचे किसान और आंदोलनकारी उठा रहे हैं। सवाल एक व्यक्ति उठाए या एक लाख लोगों का हुजूम, हमें उस सवाल की संजीदगी पर जाना चाहिए, उस शोर पर नहीं।

खैर अन्ना एक बार फिर लोकपाल, किसानों के कर्ज और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर रामलीला मैदान से सवाल कर रहे हैं। वो कह रहे हैं कि पिछले 4 सालों में उन्होंने मौजूदा सरकार की आलोचना नहीं की, उन्हें पूरा वक्त दिया कि वो अपने वादे पूरे करे। वो घोषणाएं जो चुनावी एजेंडे में थीं, चुनावी घोषणापत्र में दर्ज हैं, वो केंद्र में काबिज सरकार अमल में लाए, अगर नहीं लाएंगी तो सवाल उठेंगे। अन्ना हजारे पूछते हैं कि लोकपाल की नियुक्ति उन राज्यों में भी क्यों नहीं की जा सकी है, जिनमें बीजेपी का शासन है, इसका जवाब तो पंथ प्रधान को देना होगा। वो सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं।

बीच-बीच में अन्ना के ऐसे ही सवाल, कार्यकर्ताओं का उद्बोधन और फिर देशभक्ति गानों का सिलसिला सब कुछ चल रहा है रामलीला मैदान में। यहां राम के भजन भी गुनगुनाए जा रहे हैं और दिल दिया है जान भी देंगे… ऐ वतन तेरे लिए के गीत भी गूंज रहे हैं। इन गीतों पर तिरंगा लहराती टोलियां हैं। तिरंगे की तरह साड़ियों में लिपटी महिलाएं हैं, जो पूरे पंडाल में घूम-घूमकर लोगों का उत्साह बढ़ा रही हैं। उद्घोषणाओं के दौरान लोग शांत होकर उसे सुनते हैं- 31 किसान संगठनों ने मीटिंग कर घोषणा की है कि वो 29 तारीख से रामलीला मैदान में जुटेंगे। इनकी तादाद करीब 10 हज़ार होगी।

रामलीला मैदान में लोगों की मौजूदगी और भागीदारी पर इसी गहमागहमी के बीच वरिष्ठ पत्रकार देवप्रिय अवस्थी की फेसबुक पर की गई टिप्पणी पर नज़र पड़ी। देवप्रिय अवस्थी जी ने लिखा है- “रामलीला मैदान में सजी अण्णा हजारे की दुकान फीकी पड़ी है. कारण, समय- समय पर अण्णा को इस्तेमाल करनेवाले ज्यादातर लोग सत्ता की मलाई चाटने में व्यस्त हैं और उनकी ईमानदारी और निष्ठा पर भी कई तरफ से उंगली उठाई जाने लगी हैं।”

अन्ना की तरफ से बार-बार ये घोषणा की जा रही है कि जो भी राजनेता, सांसद, विधायक इस आंदोलन में शरीक होना चाहते हैं, स्वागत है। बस शर्त एक है कि मंच साझा करने का मौका किसी को नहीं दिया जाएगा। अन्ना के इस आंदोलन की तीव्रता क्या होगी, नतीजे क्या होंगे, कहना मुश्किल है। क्योंकि अगर सबकुछ संख्याबल से ही तय होगा तो फिर इंतज़ार लंबा भी खिंच सकता है।

मैं इन उद्घोषणाओं के बीच ही वहां से चल पड़ता हूं। रामलीला मैदान से निकलते-निकलते भूख जोरों पर थी। पास के एक ठेले पर छोले-कुलचे खाए। और सोचता रहा कि सुबह के शुरुआती कुछ घंटों में ही भूख ने इस कदर बेसब्र कर दिया, उन लोगों का क्या जो पिछले 4 दिनों से अनशन पर हैं। अन्नदाता के ‘अन्न-त्याग’ की तड़प सत्ता के गलियारों में बैठे लोगों को बातचीत के लिए मजबूर कर पाएगी?


india tv 2पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।