जेएनयू यानी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को देखने के दो नजरिये हैं। एक नजरिया उनका है, जो इस कैंपस में रहे हैं और दूसरा नजरिया उनका है जो कैंपस को लेकर सुनी सुनाई बातों के आधार पर अपनी धारणा बनाए बैठे हैं। कुछ लोगों ने जेएनयू को समझे बगैर छवि बिगाड़ने की कोशिश की है, लेकिन जेएनयू के पूर्व छात्र इसका जवाब अपने कर्मपथ पर दे रहे हैं। मेरे लिए जेएनयू के ऐसे छात्रों की तलाश करना और उनसे बात करना महज एक शगल भर नहीं है, बल्कि एक कोशिश है समाज को बेहतर तरीके से समझने की। ऐसे ही युवाओं में एक नाम है अमित कुमार का। अमित कुमार ने लंबे वक्त तक प्रशासनिक सेवा में रहने के बाद पटना के पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर अपनी ‘अंशकालिक’ पारी की शुरुआत की है । प्रशासनिक सेवा और शिक्षा, दो ऐसे क्षेत्र हैं… जिसका सीधा सरोकार हमसे आपसे है और उस समाज से भी है, जो हमें हर दिन प्रभावित करता है। शिक्षा के क्षेत्र में आने का अमित कुमार का क्या मकसद है? बिहार में शिक्षा के क्या हालात हैं और इसमें क्या नया किया जा सकता है? इन तमाम मसलों के साथ जेएनयू के मुद्दे पर भी अमित कुमार ने बदलाव प्रतिनिधि अरुण यादव से खुलकर अपने विचार रखे ।
बदलाव- आपने प्रशासनिक सेवा के ‘शक्ति-सुख’ की बजाय अध्ययन-अध्यापन की ओर क्यों रुख किया, इसके पीछे कोई खास वजह ?
अमित कुमार– मै लंबे वक्त तक प्रशासनिक सेवा से जुड़ा रहा, लेकिन कभी मुझे अपने काम में सुकून नहीं मिला या यूं कह लीजिए पद के साथ जुड़ी शक्ति और प्रतिष्ठा तो मिली, लेकिन कभी कुछ अलग करने की गुंजाइश बेहद कम रही। मुझे हमेशा लगता रहा कि मेरी भक्ति कहीं और है और मैं अपनी शक्ति कहीं और लगा रहा हूं। यही वजह है कि मैं बीच-बीच में शिक्षा के क्षेत्र में अपने लिए गुंजाइश तलाशता रहा और जब पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए मेरा चयन हुआ तो मैंने बिना देर किए प्रशासनिक सेवा की बजाय इस विकल्प को आजमाने का फैसला कर लिया ।
बदलाव- शिक्षा के क्षेत्र में काम करने का क्या ये आपका पहला अनुभव है?
अमित कुमार- नहीं मैं पहले भी कुछ दिन शिक्षा के क्षेत्र में काम कर चुका हूं। मैंने जेएनयू से हिंदी में पीएचडी करने के दौरान दिल्ली के एआरएसडी कॉलेज से करीब दो साल तक जुड़ा रहा। तभी से मेरी दिलचस्पी शिक्षण के क्षेत्र में और बढ़ गई । उसी दौरान मैंने बिहार सिविल सर्विसेज के लिए फॉर्म भरा और 2013 में मेरा चयन बतौर बीडीओ हो गया। दिल्ली में जो नौकरी कर रहा था वो अस्थायी थी, लिहाजा घरवालों ने दबाव बनाया कि उसे छोड़कर सरकारी सेवा में आ जाओ लिहाजा मुझे प्रशासनिक सेवा ज्वाइन करनी पड़ी ।
बदलाव- आपने बिहार प्रशासनिक सेवा में बीडीओ के रूप में ज्वाइन किया, इस दौरान के अपने कुछ अनुभव साझा करें।
अमित कुमार– करीब 5-6 साल बीडीओ के पद पर काम करने के बाद मुझे लगा कि यहां खुद से बहुत कुछ करने की गुंजाइश नहीं है। बस वही करते रह सकते हैं जो आदेश ऊपर से आ रहा है। इस बीच मैंने पढ़ाई-लिखाई का सिलसिला जारी रखा और एक बार फिर बीपीएससी का फॉर्म भरा उसी दौरान मैंने लेक्चररशिप के लिए भी फॉर्म भरा था, लेकिन उसका रिजल्ट लटकता चला गया। 2019 में मेरा चयन बीपीएससी के जरिए जिला समायोजन पदाधिकारी के रूप में हुआ, मुझे लगा शायद यहां कुछ नया करने को मिले। मैंने जुलाई 2019 में जिला मुख्यालय में काम करना शुरू किया और कुछ महीने बाद ही लेक्चररशिप का रिजल्ट घोषित हो गया। मेरा चयन असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में हुआ , मानो मेरी मनचाही मुराद पूरी हो गई और मैं आज बतौर व्याख्याता काम कर रहा हूं।
बदलाव- बिहार में शिक्षा की हालत काफी खराब है, ऐसे में आपके सामने चुनौतियां कम नहीं होंगी। क्या प्लान है आगे का?
अमित कुमार- आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। हम जैसे लोगों को कुछ अलग करने के लिए पूरा मैदान खाली है। लिहाजा आगे के लिए पहले से ही खाका काफी हद तक तैयार कर रखा है। बिहार के युवाओं में काफी ऊर्जा है, बस जरूरत है तो उस ऊर्जा को सही दिशा में लगाने की और मैं उस दिशा में काम भी कर रहा हूं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि छात्र कोचिंग पर ज्यादा भरोसा करते हैं। लिहाजा सबसे पहले हमें इस मिथक को तोड़ना होगा कि कॉलेज में पढ़ाई नहीं होती, एक बार जब आप छात्रों का भरोसा जीत लेंगे तब फिर आगे का रास्ता आसान हो जाएगा ।
बदलाव- आपने कॉलेज में क्या कोई नयी पहल शुरू की है और आगे अभी क्या कुछ करने की तैयारी है?
अमित कुमार– मैं पटना के जिस बीडी कॉलेज में हिंदी विभाग में तैनात हूं वहां मुझे महसूस हुआ कि तमाम ऐसे प्रतिभाशाली बच्चे हैं जिनके पास पढ़ने के लिए किताबें नहीं और पैसे की किल्लत की वजह से खरीद भी नहीं सकते। मैंने प्रिसिंपल से परमीशन लेकर अपने विभाग में अलग से पुस्तकालय की स्थापना कराई है। इस लाइब्रेरी का अभी औपचारिक उद्घाटन नहीं हुआ है लेकिन छात्र उसका लाभ उठाने लगे हैं। मेरी कोशिश है कि मैं अपने विभाग से हर साल एक प्रतिभावान बच्चे का चयन करूं और नेट-जेआरएफ तक उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाऊं। इसका चयन सिर्फ और सिर्फ प्रतिभा के आधार पर करूंगा। इसके अलावा बच्चों का सिविल सर्विसेज की ओर रुझान बढ़ाना और उसके लिए मार्गदर्शन करना भी हमारी प्राथमिकताओं में शामिल है।
बदलाव- सिविल सर्विसेज की तैयारी बच्चे कैसे करें उसके लिए आपका अनुभव क्या कहता है ?
अमित कुमार– देखिए मैंने भी सिविल की तैयारी की है, लिहाजा मुझे पता है कि बच्चों को क्या पढ़ना चाहिए, क्या नहीं। हमें क्या पढ़ना है इससे ज्यादा सिविल की तैयारी करने वाले छात्रों को इस बात को जानना जरूरी है कि वो क्या ना पढ़ें। इससे उनका समय और पैसा दोनों बचेगा। अगर बिहार के बच्चों को सही मार्गदर्शन मिले तो और भी अच्छा कर सकते हैं। मैंने आने वाले दिनों में सिविल सर्विसेज के मार्गदर्शन के लिए व्यापक योजना भी बना रखी है। खास बात ये है कि ये मार्गदर्शन निशुल्क होगा, उसका फायदा हमारे कॉलेज से लेकर बाहर के छात्र भी उठा पाएंगे ।
बदलाव – आपने जेएनयू से पोस्ट ग्रेजुएशन और पीएचडी की है, जेएनयू में रहते हुए आपको कैसा लगा। जेएनयू में ऐसा क्या है जो बाकी यूनिवर्सिटी में नहीं है ?
अमित कुमार- आज अगर मुझमें कुछ अलग करने का जज्बा है जो जेएनयू की वजह से है। जेएनयू आपको हर विषय पर सोचने की स्वतंत्रता देता है। वहां का छात्र हर विषय पर ना सिर्फ बहस करता है बल्कि उसके हर पहलू पर भी विचार करता है। किसी एक विचारधारा में खुद को संकुचित करने की बजाय जेएनयू हमें एक नये विचार की स्फूर्ति दान क रता है। यही विचार शायद आजकल कुछ लोगों को अच्छा नहीं लग रहा जिस वजह से जेएनयू को जान बूझकर बदनाम करने की कोशिश हो रही है। इस बात को वही समझ सकता है जो जेएनयू में पढ़ा लिखा है ।
बदलाव- अगर ऐसा है तो फिर जेएनयू में पढ़े लिखे लोग जब जेएनयू में कुछ गलत हो रहा हो तो आवाज क्यों नहीं उठाते ?
अमित कुमार- देखिए नौकरी में आने के बाद हर किसी की अपनी मजबूरियां होती हैं। कुछ लोग नौकरी के प्रोटॉकॉल से बंधे होने की वजह से नहीं बोल पाते तो कुछ लोग पद और तरक्की की लालसा में। यही वजह है कि जेएनयू को बदनाम करने वालों की कोशिशें कामयाब होती नजर आ रही हैं लेकिन याद रखिए जेएनयू लड़ना जानता है, अपने हक के लिए संघर्ष करना जानता है । अगर जेएनयू जैसा संस्थान देश के हर राज्य में हो तो देश की तस्वीर कुछ और होगी।
बदलाव- देश की मौजूदा राजनीति को आप किस रूप में देखते हैं ?
अमित कुमार– आजकल राजनीति अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है । मर्यादा, सिद्धांत,नैतिकता सबकुछ खत्म हो गई है। समाज में सांप्रदायिकता और नफरत बढ़ती जा रही है। इसके पीछे हमारी सियासी पार्टियों का काफी हाथ है, लिहाजा जरूरत है बेहतर राजनीतिक विकल्प की क्योंकि हमारी राजनीति साफ-सुधरी नहीं रहेगी तो हमारा समाज भी बेहतर नहीं बनेगा और ये तब तक संभव नहीं है जब तक राजनीति में धनबल और बाहुबल को समाप्त नहीं किया जाता।
बदलाव- बिहार के युवाओं को कोई खास संदेश देना चाहेंगे ?
अमित कुमार– बिहार के युवाओं से मेरी यही अपील है कि आप काफी ऊर्जावान हैं अपनी ऊर्जा का सार्थक दिशा में इस्तेमाल करें । अगर हम मिलकर काम करें तो काफी कुछ बदल सकते हैं, जरूरत बस माइंडसेट बदलने की है । कोई भी काम असंभव नहीं होता ।
बदलाव- हमसे बात करने के लिए शुक्रिया।
अमित कुमार– धन्यवाद ।
It’s a proud moment for all those who believes in hard work. I am sure with dedication Amit ji will inspire many young minds and contribute in society building processes.
बेहतरीन सोच, यदि बिहार का हर सक्षम व्यक्ति ऐसी सोच रखे तो यह राज्य शिक्षा के क्षेत्र में न सिर्फ अपनी खोई हुई गरीमा पुन: प्राप्त करेगा बल्कि नई उँचाईयों को छुएगा!
भविष्य के लिए शुभकामनाएं