रूचा जोशी
“कैरियर क्या चुनें? ‘ इस सवाल से सभी लोगों को गुजरना पड़ता है। मैं भी इससे गुजर चुकी हूं। शब्दकोश के अनुसार कैरियर एक पेशा या व्यवसाय है जो कि कमाई एक जरिया हो सकता है। तो फिर कुछ लोग ‘कैरियर’ बनाते हैं और कुछ लोग सिर्फ ‘नौकरी’ तक ही क्यों सीमित रह जाते हैं ? इन दोनों दॄष्टिकोण में क्या फर्क है?
यह क्यों कहा जाता है कि लता मंगेशकर, सचिन तेंदुलकर, माधुरी दीक्षित , कल्पना चावला, विश्वनाथन आनंद और इनके जैसे कई व्यक्तियों ने ‘कैरियर’ बनाया ? इन हस्तियों ने अपने क्षेत्र में जो कामयाबी हासिल की, उसकी वजह से वे सम्बंधित क्षेत्र में आदर्श बन गए। इन्होंने जो रास्ता चुना वो आसान कदापि नहीं था और सफलता की सम्भवनाएँ भी सीमित थीं, किन्तु इन्होंने अपने दृढ़ संकल्प और मेहनत की बदौलत अपने क्षेत्र में उच्च मुकाम हासिल किया। इन सब में एक खासियत यह है कि इन्होंने अपने जीवन में उस रास्ते को चुना जो इनकी व्यक्तिगत इच्छा और क्षमता के अनुरूप था।
यह आवश्यक है कि हम कैरियर के व्यवहारिक अर्थ को समझें।आम धारणा है कि किसी एक क्षेत्र में शिक्षा पूरी होने के बाद कम से कम पाँच आंकड़े की तनख्वाह वाली नौकरी मिल जाये , उसमें बढ़ोतरी मिलती रहे और थोड़ा सा अनुभव पा कर हम विदेश जा कर बस जायें। आम लोगों के बीच प्रगति की अवधारणा काफी कुछ ऐसी ही रही है। लेकिन मेरा सवाल यह है कि इसमें कैरियर कहाँ है? इस ढर्रे से हम कब बाहर निकलेंगे?
अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को किसी एक खास विषय का चयन करने के लिए बाध्य करते हैं। क्यों? क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण विषय है। लेकिन माता-पिता को यह भी देखना चाहिए कि क्या आपके बच्चे को उस विषय में रूचि है? उस विषय में अनुत्तीर्ण होकर अथवा कम अंक पा कर बच्चे क्या हासिल कर पाएंगे ? इससे बेहतर है कि बच्चों को उनके पसंदीदा विषय में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाये। अगर वो उसमे अव्वल हों तो उनका एक अच्छा कैरियर बन सकेगा।
मेडिकल और इंजीनियरिंग इन दो शाखाओं को अभी भी प्रमुख माना जाता है। इसके आगे भी बहुत कुछ अलग और अच्छा है, यह समझने की जरुरत है। एक बंधे हुए ढ़र्रे पर चलने में लोगों को कम जोखिम महसूस होता है। यही कारण है कि युवा नए रास्तों का चुनाव करने में हिचकिचाते हैं। जिंदगी में हम कितने जोख़िमों से बचेंगे? इसका कितना हौवा बनाएँगे ? जिन्दगी में बिना जोखिम के कुछ हासिल नहीं होता है। चुनौती के रूप में जोखिम उठाने से गुरेज न करें। चाहे नुकसान हो पर अनुभव तो हासिल होगा ! लड़खड़ाएं, गिरें, फिर उठें और तब तक कोशिश जारी रखें जब तक आप सफल न बन जाएं। बचपन में भी हम लड़खड़ाते हुए ही चलना सीखते हैं, तो फिर अब यह संघर्ष का दामन कैसे छोड़ सकते हैं? तब ख़तरे से अवगत नहीं थे, चोट से रूबरू नहीं थे और आज हैं , इसलिए ? खतरों से डरें नहीं। इन्हें अपना दोस्त बना लें। यही आपका सामर्थ्य बढ़ाएंगे, आत्मविश्वास बढ़ाएंगे और आपको अपने लक्ष्य में कामयाब बनाएंगे।
कुछ लोग यह भी पूछेंगे कि क्या सिर्फ जोखिम उठाने से हम कामयाब बन जायेंगे? तो, नहीं! अपनी चुनी हुई चुनौती का सब से पहले अनुमान लगाए, अपने जोखिम उठाने की क्षमता को भाँप ले और प्राथमिकता के अनुसार अपनी राह पर चल पड़ें। निश्चित रूप से आपकी नौकरी तब कैरियर में तब्दील हो जाएगी। तब वह सिर्फ एक कमाई का जरिया न रह कर जीवन जीने की राह बन जाएगी। क्यों सब अब्दुल कलम नहीं बन पाते? क्यों कहीं किसी एक को ही नोबेल पुरस्कार प्राप्त होता है? क्यों सिर्फ अमीर लोगों की ही सूची बनायीं जाती है? इन सब सवालों के जवाब कहीं इसी में तो नहीं छुपे है ?
रूचा जोशी। महाराष्ट्र के सांगली जिले की निवासी। MSc (environmental science), MTech ( Remote sensing and GIS)। बिरला इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, मेसरा से पीएचडी कर रही हैं। आपको भेड़चाल पसंद नहीं है, जिंदगी को अपने तरीके से जीने में यकीन रखती हैं।