स्त्री सृजन के ‘आयाम’ का दूसरा साल

स्त्री सृजन के ‘आयाम’ का दूसरा साल

इति माधवी

“सुलगते चूल्हे पर
स्त्री जब रांधती है भात
बटलोही के अदहन से
पकते चावल की खदबदाहट
हर स्त्री की सृजनात्मकता है”
ये कविता का बदलता काल है जो अब नारी-शक्ति के बुलंद जयकारे में मुखरित हो रहा है। 22 जुलाई को पटना के जेडी वीमेंस कॉलेज में इस बदलते काल को रेखांकित करने की एक काबिले तारीफ कोशिश हुई। जलसे का आयोजन सुप्रसिद्ध लेखिका पद्मश्री उषाकिरण खान की अगुवाई में ‘आयाम’ नाम की संस्था ने किया। महिला साहित्यकारों की संस्था ‘आयाम’ का ये दूसरा वार्षिकोत्सव था।
विमर्श लंबा था और पड़ताल गहरी। तीसरी कसम की हीराबाई और दिनकर की उर्वशी से लेकर आज की स्त्रियां भी इस विमर्श के केंद्र में रहीं। ‘समकालीन महिला लेखन- चुनौतियां और संभावनाएं’ इस विषय पर मुख्य वक्ता के तौर पर प्रसिद्ध साहित्यकार रोहिणी अग्रवाल ने अपने विचार रखे। उन्होंने आगाह किया कि स्त्री को संस्कृति का पर्याय बनाने वाली चीजों को बड़ी बारीकी से पहचानना होगा। कन्या पूजन, रक्षा-बंधन और करवा चौथ के बहाने स्त्रियों को हाथ फैलाने और पराश्रित रहने के संस्कार दिए जा रहे हैं। स्त्री को पितृसत्ता और राजनीति तब तक गुलाम नहीं बना सकती जब तक धर्म उसे मदद न करे। ये धर्म ही है जिसने मनुष्यता को खंडित कर दिया है। आज भी समाज उसके निजी व्यक्तित्व को अहमियत देने की जगह उसे कुलीन बनने का विकल्प देता है। अब वक्त इस सोच को खुलकर चुनौती देने का है।
बकौल उषा किरण खान साहित्य में महिलाओं की आवाज मुखर होगी तो वो बंधन खुद टूटने लगेंगे जो महिलाओं को गुलाम बनाते हैं। समारोह के दूसरे सत्र में  अलका सरावगी  और नीलाक्षी सिंह ने अपने उपन्यासों का अंश पाठ किया तो इस दौरान वरिष्ठ साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी खगेंद्र ठाकुर और ह्षीकेश सुलभ  भी मौजूद रहे। भावना शेखर ने मंच का संचालन किया तो पंखुड़ी सिन्हा, मीरा श्रीवास्तव और पूनम सिंह की कविताओं ने भी खूब तालियां बटोरीं। नारी मन हर फंदे को काट कर भी फिर ममत्व में जा फंसा। बात निकल कर आई पूनम सिंह की कविता घोघो रानी कित्ता पानी में-“कि बच्चे बड़े हो गए हैं बचपन में, वे नहीं खेलते कित्ता पानी का खेल”


इति माधवी। मनोविज्ञान की अध्येता रहीं इति माधवी ने साहित्य की सभी विधाओं में अपनी संवेदनशील उपस्थिति दर्ज की है। आपकी कविताएं, लघुकथा, कहानी, संस्मरण और निबंध कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। आपका संग्रह ‘फिर आएगा बसंत’ साहित्य जगत में काफी चर्चित रहा ।