साजिद अशरफ
ये बच्ची मुझे नोएडा के सूरजपुर चौक के पास लावारिस हालात में मिली। ये अपना नाम शायद मंजू बता रही थी। इसकी भाषा मैं ठीक से समझ नहीं पा रहा था। इसलिए नाम का उच्चारण भी नहीं समझ पाया। कुछ लोगों ने कहा आप क्यों इसकी फ़िक्र कर रहे हो? ऐसे बच्चे स्टैंड पर मिलते रहते हैं। मैंने 100 नंबर पर कॉल कर पीसीआर वैन को बुलवाया। पीसीआर वैन 15 मिनट इंतज़ार के बाद लोकेशन पर पहुंची।
पुलिस वाले ने बच्ची का टेकओवर किया। और मुझे भी थाना साथ चलने को कहा। क्योंकि मैं दादरी में अपने दोस्त थॉमस से मिलने जा रहा था , इसलिए मैंने पुलिस वाले से कहा , थाने जाकर मैं क्या करूँगा ? मुझे बच्ची को सुरक्षित हाथों में सौंपना था, इसलिए मैंने पुलिस को कॉल किया है। मैं पुलिस वाले को पहले ही बता चुका था की मैं टीवी जर्नलिस्ट हूँ, न्यूज़ नेशन में काम करता हूँ। इसलिए पुलिस वाले ने भी मुझ पर थाने साथ चलने का दबाव नहीं बनाया। और लड़की को पीसीआर वैन में बिठाकर रवाना हो गए।
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान यहां एक और बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है। जब मैं पीसीआर वैन का इंतज़ार कर रहा था , उसी इंतज़ार के दौरान मेरी नज़र एसआई स्तर के एक पुलिस अफसर पर पड़ी। मैंने उस एसआई से भी इस बच्ची का ज़िक्र किया और मदद मांगी। एसआई का रवैया बेहद असंवेदनशील और गैर-ज़िम्मेदाराना रहा। एसआई ने कहा, मुझे किसी एक्सिडेंट केस के सिलसिले में आगे जाना है।
मैंने अपना 20 मिनट का वक़्त इस पूरे एपिसोड में दिया और संतुष्ट हूँ कि उस हालात में मैं अपने स्तर पर जो कर सकता था किया। हमें हर जगह हर मौके , हर मुक़ाम पर संवेदनशील होना चाहिए। जो कुछ अपने स्तर पर कर सकते हैं ज़रूर करें। बच्ची का फोटो शेयर कर रहा हूँ। आप भी इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर कर इस बच्ची को इसके माँ बाप से मिलवाने में इसकी मदद करें। बच्ची फोटो खिंचवाने को तैयार नहीं हो रही थी और बार-बार अपना फेस कैमरे से हटा रही थी , इसलिए फ्रंट फेस का फोटो नहीं ले पाया।
साजिद अशरफ। बिहार के खगड़िया जिले के ग्रामीण इलाकों से दिल्ली तक का सफ़र। दिल्ली के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल। न्यूज़ को अपने रिसर्च के जरिए मायनीखेज बनाने के लिए सतत प्रयासशील। इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय।