ब्रह्मानंद ठाकुर
आज मौसम विज्ञान की बदौलत मौसम से जुड़ी जानकारी हासिल करना काफी हद तक आसान हो गया है। ये सब मुमकिन हुआ है आधुनिक सैटेलाइट और तकीनीकी की बदौलत। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है हमारे पूर्वज कैसे मौसम का आकलन करते थे। कैसे हवा का रुख देख मौसम का मिजाज भांप लेते थे। उस वक्त आज की तरह कोई आधुनिक तंत्र नहीं हुआ करता था। ये अलग बात है कि प्रकृति से उनका गहरा जुड़ाव होता था। वो प्रकृति में होने वाले छोटे से छोटे बदलाव पर गहरी पकड़ रखते थे। उन्हीं पर टिकी होती थी किसानों की उम्मीद।
ऐसे ही एक मौसम वैज्ञानिक हुआ करते थे घाघ भड्डरी। उन्हें लोक ऋषि भी कहा जाता है। भड्डरी को लोक कल्याण की चिंता रहती थी लिहाजा उन्होंने लोक जीवन से कृषि, मौसम , स्वास्थ्य, पशुओं की पहचान, गृहस्थ जीवन जैसे तमाम पहलुओं पर सूत्र वाक्य गढ़े, जो बाद में चलकर घाघ की कहावत के रूप में तब्दील हो गए। आज भी लोग तुलसीदास के दोहे-चौपाई की तरह उनकी कहावतों को अक्सर प्रस्तुत कर देते हैं। घाघ की कहावतों का कुछ विद्वान ज्योतिषीय आधार भी मानते हैं। ऐसी ही कुछ कहावतें या कहें सूत्र वाक्य आप भी पढ़िये ।
उत्तम खेती जो हर गहा। मध्यम खेती जो संग रहा।।
जो पूछेसि हरवाहा कहां। बीज बूड़िगये तिनके यहां।
मतलब ये कि जिसने खुद हल पकड़ा उसकी खेती उत्तम, जो हलवाहे के संग-संग रहा, उसकी खेती मध्यम और जो पूरी तरह हलवाहे पर आश्रित रह गया, उसका तो बीज भी लौटकर आने से रह गया।
उत्तम खेती मध्यम बान , निर्घिन चाकरी भीख निदान।
अर्थात खेती सबसे उत्तम है। व्यापार मध्यम दर्जे का और नौकरी तो सबसे निकृष्ट है। उन्होंने भीख मांगने को सबसे बुरा कहा। समय ने आज ऐसा पलटा खाया कि खेती ही सबसे निकृष्ट हो कर रह गयी। आज घाघ होते तो उन्हें खेती की दशा देख कितनी पीड़ा होती ?
रात निबद्दर दिन को छाया, कहै घाघ बरसा गया।
चमके पश्चिम उत्तर ओर, तब जानो पानी है जोर।।
रात में आसमान में बादल का दिखना और दिन में उसके गायब हो जाने से समझना चाहिए कि बारिश नहीं होगी। जबकि पश्चिम-उत्तर दिशा की ओर बादल चमके तो समझ जाइये कि घनघोर वर्षा होने वाली है ।
‘उत्तर चमके बीजुरी, पूरब बहनो बाऊ।
कहै घाघ सुनु भड्डुरी, बरदा भीतर लाऊ।।
मतलब बिजली जब उत्तर दिशा में चमके तो बैल को अवश्य घर में बांध दिया जाए क्योंकि बर्षा निश्चित होगी ही ।
‘ कृष्ण आसाढ़ी प्रतिपदा, जो अम्बर गरजंत।
छत्री छत्री जूझिया, निहचै काल परंत।।
यानी अषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा को यदि आकाश में मेघ गरजे तो समझना चाहिए कि राजाओं में परस्पर युद्ध होगा और अकाल पड़ेगा।
‘जौं पुरबा पुरवैया पावै, सूखल नदी नाव चलावै,
‘सावन पछिया भादो पुरवा, आसिन बहै ईईशान।
कातिक कंता सिकियो न डोलै, कहा क रखवा धान ।।
मतलब ये कि पुर्वा नक्षत्र में पुरवा हवा चलने से सूखी नदी में भी बाढ़ आ जाएगी। और सावन में अगर पछिया हवा, भादो में पुरवैया, आश्विन मास में ईशान कोन से हवा चले और कार्तिक मास में हवा बिल्कुल शांत रहे तो धान की उपज काफी ज्यादा होती है।
‘जै दिन जेठ बहै पुरवाई, तै दिन सावन धूल उड़ईया ।
यानि जेठ में जितने दिन पुरवैया हवा चलेगी, सावन में उतने ही दिन धूल उड़ेगी, मतलब बर्षा नहीं होगी।
आदि न बरसै आदरा, अंत न बरसै हस्त, कहे घाघ दोनों गये, पंडित और गृहस्थ।
अगर शुरु में आद्रा नक्षत्र नहीं बरसे और अंत में हथिया में बर्षा नहीं हो तो गृह्स्थ की हानि निश्चित है।
प्रात काल खटिया से उठि के, पिये तुरंते पानी,
कबहूं घर में वैद न अइहैं, बात घाघ के जानी।
खा के मूतै, सूतै बाऊं, काहे वैद बसावै गांऊं।।
मतलब ये है कि सुबह समय से सोकर उठते ही पानी पीने वाला और भोजन के तुरंत बाद पेशाब करने, फिर बायें करवट सोने वाले को कभी बीमारी नहीं पकड़ती।
स्वास्थ्य सम्बंधी घाघ का बहुमूल्य सुझाव जो बारहो महीने के खान-पान के बारे मे लोगों को सचेत करता है-
सावन हर्रे, भादो चीत। क्वार मास गुड़ खाये मीत।।
कार्तिक मूली अगहन तेल। पूस में करै दूध से मेल ।।
माघ मास गुड़ खिचड़ी खाय। फागुन उठि के प्रात नहाय।।
चैत मास में नीम बेसहती। बैसाखे खाय जड़हती।
जेठ मास जो दिन में सोवै। ओकर जड़ असाढ में रोवै।।
सावन महीने में हर्रै, भादो में चीत वनस्पति, क्वार के महीने में गुड़, कार्तिक महीने में मूली, अगहन में तेल, पूस में दूध, चैत में नीम का पत्ता, बैसाख में रात का बना चावल का सेवन करने पर फायदा होता है जबकि जेठ के महीने में दिन में सोने वाले को असाढ़ में सेहत से जुड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है ।
यही नहीं घाघ ने सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर भी अपने विचार रखे हैं ।
निहपछ राजा, मन हो साथ। साधु परोसी नीमन साथ,
हुकुमी पूत, क्षधिया सतवार। तिरिया भाई रखे विचार।
कहे घाघ हम करत विचार। बड़े भाग से दे करतार।।
तात्पर्य ये है कि निष्पक्ष राजा, अपने वश में रहने वाला मन, सज्जन पड़ोसी, अच्छे लोगों की संगति, आज्ञाकारी पुत्र, सच्चरित्र पुत्री, विचारवान पत्नी और भाई ये सभी जिन्हें मिल गये, समझो उससे बड़ा भाग्यशाली दुनिया में कोई दूसरा नहीं।
ब्रह्मानंद ठाकुर। BADALAV.COM के अप्रैल 2017 के अतिथि संपादक। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। गांव में बदलाव को लेकर गहरी दिलचस्पी रखते हैं और युवा पीढ़ी के साथ निरंतर संवाद की जरूरत को महसूस करते हैं, उसकी संभावनाएं तलाशते हैं।