बदलाव प्रतिनिधि, मुजफ्फरपुर
मुजफ्फरपुर जिले के सुदूर गांव पियर में बदलाव बाल क्लब की कहानी कार्यशाला शुरू हो गई। हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार सह जाने माने युवा कवि डाक्टर संजय पंकज ने कार्यशाला की शुरुआत की। संजयजी ने बच्चों में चरित्र निर्माण और उन्हें प्रतिभा सम्पन्न बनाने के लिए बदलाव की इस पहल को काफी उपयोगी बताया। उन्होंने प्रेरणादायक छोटी-छोटी कहानियां सुनाईं। प्रतिभागी बच्चों को मजबूत इरादे के बल पर जीवन में आनेवाली सभी बाधाओं को हंसते हंसते झेलने की कला बचपन से ही सीखने की प्रेरणा दी।
संजय पंकज ने कहा कि हमे कठिनाइयों, बाधाओं की परवाह किए बिना सतत आगे बढते रहना चाहिए। कहानियों से हमें ऐसी कला सीखने में मदद मिलती है। बच्चे यदि दुखों में भी मुस्कुराना सीख जाएं तो उन्हें जीवन में ऊंचा मुकाम हासिल करने से कोई रोक नही सकता। बदलाव बालक्लब के इस आयोजन की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि इससे बच्चों में साहित्य और कला के प्रति आकर्षण पैदा होगा और बड़े होकर वे एक अच्छा इंसान बनेंगे।
रिटायर्ड शिक्षक, समाजसेवी और संस्कृतिकर्मी श्री ब्रह्मानंद ठाकुर ने इस कार्यशाला के लिए पहल की है। दिल्ली और गाजियाबाद में बदलाव बाल क्लब की – आओ पढ़ें, सुनें और सुनाएं किस्से- कार्यशाला पहले से ही चल रही है। इसी कड़ी को ब्रह्मानंद ठाकुरजी ने आगे बढ़ाया है। पहले दिन की कार्यशाला में बच्चों के साथ ही कुछ साहित्यकारों, अभिभावकों ने भी शिरकत की। बच्चों में रोहन कुमार, शिलखी कुमारी, नेहा कुमारी, गौरव, मणिराज, उत्सव, ऋतुराज, प्रतीक, चंद्रा, तनु और पुष्पांजलि ने कहानी वर्कशॉप में हिस्सा लिया।
बदलाव की अपील
जो अभिभावक और बच्चे इन कार्यशालाओं में शिरकत नहीं कर पा रहे। वो अपने घरों में दादा-दादी से कहानियां सुनें। अपनी सेल्फी लें, तस्वीरें खिंचवाएं और सोशल साइ्ट्स पर शेयर करें। अगर वो #badalav kissagoi का इस्तेमाल करें तो बेहतर होगा। मोबाइल, इंटरनेट और टीवी ने हमारी किताबों का स्पेस हमसे छीनना शुरू कर दिया है। दादा-दादी और नाना-नानी के किस्सों की अहमियत कम कर दी है। हम किस्सों के साथ ही इन रिश्तों की पुरानी तासीर की तलाश भी कर रहे हैं।
मुजफ्फरपुर में आने वाले दिनों में कई और साहित्यकार इस वर्कशॉप में शिरकत करेंगे। साथ ही कई साहित्यकारों ने रचनात्मक सहयोग के जरिए ये पहल कर दी है। वो कहानी और कविताएं ब्रह्मानंद ठाकुर को भेज रहे हैं। साहित्यिक अर्ध वार्षिक पत्रिका शब्दिता ( लखनऊ से प्रकाशित ) के संरक्षक एवं प्रधान सम्पादक डॉक्टर रामकठिन सिंह ने अपनी एक कहानी ‘मुक्ति ‘ भेजी है। साथ ही बच्चों के लिए लिखी कविता ‘मेरे पास क्यों नहीं आते?’ ‘केसे पास तुम्हारे आऊं ? ‘ ‘छुट्टियां बीती हैं’ और ‘सबसे प्यारे दादा जी’ कविता भेजी है।
हलद्वानी (उत्तराखंड ) से डाक्टर पी प्रिया ने स्वरचित एक कविता भेजी है। उन्होंने कहा है कि वे ऐसे आयोजनों को अपनी रचनात्मकता के साथ पूरा सहयोग करती रहेंगी। इन सभी रचनाओं का पाठ बदलाव बाल क्लब में किया जाएगा।