एपी यादव की रिपोर्ट
देश में दिन दिनों समान शिक्षा की बहस चल रही है । अमीर-गरीब सभी के बच्चे एक साथ, एक कक्षा में एक साथ बैठें, एक जैसी शिक्षा पाएं, ये सुनने में अच्छा जरूर लग रहा है, लेकिन डगर इतनी आसान नहीं है। क्या हमने कभी सोचा कि गांधी के इस देश में शिक्षा भी अमीर-गरीब दो तबकों में कैसे बंट गई ।
इतिहास के पन्नों को पलटें तो लगता है जैसे शिक्षा में ये खाई राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव की वजह से चौड़ी होती गई। आज़ादी के चंद बरस बाद ही हमारे शिक्षाविदों ने देश में समान शिक्षा लागू करने की सिफ़ारिश कर दी थी, लेकिन उन्हें लागू नहीं किया गया।
शिक्षा का समाजवाद-6
ये बात करीब 5 दशक पहले की है, 1964 में तत्कालीन भारत सरकार ने देश की प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिए दौलत सिंह कोठारी की अगुवाई में पहले शिक्षा आयोग का गठन किया । दो साल के अध्ययन के बाद आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें समान शिक्षा समेत कई बदलाव करने की सिफ़ारिश की गई । इस बीच कई सरकारें आईं और गईं लेकिन कोठारी आयोग की सिफ़ारिशें कागज के पन्नों में धूल फांकती रहीं । 80 के दशक में कोठारी आयोग की नई शिक्षा नीति लागू करने के साथ समान शिक्षा प्रणाली का फ़ैसला हुआ, लेकिन अमल आज तक नहीं हुआ ।
कोठारी आयोग का गठन
1964 में शिक्षा में सुधार के लिए आयोग का गठन
दौलतसिंह कोठारी प्रथम शिक्षा आयोग के अध्यक्ष बने
1966 में कोठारी आयोग ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी
कोठारी आयोग ने समान शिक्षा की सिफारिश की
1986 में आयोग की सिफारिशें लागू करने का फैसला
पिछड़े और शोसित वर्ग के बल पर सत्ता हासिल करने वाली पार्टियों ने भी इस ओर कोई ध्यान नही दिया । अब जरूरत ऐसे बदलाव की है, जिससे निजी स्कूल भी बने रहें और सरकारी स्कूलों का स्तर भी सुधर जाए। निजी स्कूलों की संख्या इतनी ज़्यादा है कि जिसे बंद करना न तो मुमकिन है और न मुनासिब। लिहाजा, सरकार को कोई बीच का रास्ता निकलना होगा, जिससे सभी स्कूलों में एक समान शिक्षा-व्यवस्था लागू की जा सके। सरकारी और गैरसरकारी स्कूलों में एक समान सुविधाएं दी जाएं।
बदलाव के लिए क्या करें
सभी स्कूलों में पढ़ाई एक समान हो
सरकारी स्कूलों में सुविधाएं दी जाएं
सरकारी और निजी स्कूलों की फीस एक जैसी की जाए ।
आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े परिवारों के बच्चों को सब्सिडी दी जाए
अब सवाल उठेगा कि आखिर गरीब का बेटा फीस कहां से लाएगा तो इसका सीधा उपाय ये है कि जो लोग अपने बच्चों को नर्सरी में पढ़ाने के लिए हर महीने तकरीबन 3 हज़ार से 10 हज़ार तक खर्च कर रहे हैं वो अपने बच्चे की फीस खुद भरें और जो गरीब हैं उनकी फीस के लिए सरकार इंतज़ाम करे । इसके लिए सभी निजी स्कूलों का सर्वे कराया जाए ताकि इस बात का पता चल सके कि जो फीस वसूली जाती है उसका कितना हिस्सा अध्यापकों और बिल्डिंग्स पर खर्च होता है और कितना शिक्षा का व्यापार करने वालों की जेब में जाता है ताकि स्कूलों की बेतहाशा फीस बढ़ोतरी पर लगाम लगाई जा सके । ऐसे ही तमाम बदलाव के जरिए शिक्षा में समाजवाद लाने की कोशिश की जा सकती है हालांकि इसके लिए मजबूत इरादों वाली सरकार चाहिए।
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पूरे भारत में शिक्षा एक समान होनी चाहिए और शिक्षा का प्रारुप ऐसा होना चाहिए कोई भी व्यक्ती अध्यापन करने के बाद स्वम् आत्मनिर्भर बन जाये जैसा कि सन् 1000 साल पहले की शिक्षा थी पढ़ाई करने के बाद हर छात्र स्वालम्बी बन जाता था लेकिन आज की शिक्षा प्रणाली एक गन्दी नाली के कीड़े के समान हो गई है जो दूसरों पर निर्भर और अपने आप को शोषित करना सिखाती है दौलत सिंह कोठारी आयोग की रिपोर्ट अभी तक नेताओं ने छुपा कर रक्खी है और बेरोजगारी का ठीकरा बढ़ती हुई जनसंख्या पर फोड़ते है जब कि बढ़ती हुई जनसंख्या और बेरोजगारी से कोई सम्बन्ध नहीं है
अगर हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली को निरस्त कर के 1000 साल पहले वाली शिक्षा प्रणाली ले आयें तो हमारे देश के शिक्षार्थी स्वालम्बी बन जायेंगे और हमारा देश तरक्की के रास्ते चल निकलेगा तब हमें विदेशों से न कोई हथियार और न कोई टेक्नोलॉजी खरीदनी नहीं पड़ेगी।
ये मेरा अटल विश्वास है यकीन न हो तो शिक्षा आयोग का अध्यक्ष बना कर देख लीजिए, पूरी शिक्षा प्रणाली को बदल दूंगा :–आनन्द मोहन सक्सेना