सिंहेश्वर का मेला और बचपन की रोमांचक यादें

सिंहेश्वर का मेला और बचपन की रोमांचक यादें

रुपेश कुमार

यूँ ही मोबाइल का फोटो चेक करते हुए इस बार मेले में 08 मार्च को सर्कस देखने के दौरान ली गयी तस्वीर दिखी तो लगा कि पोस्ट कर ही दूं। फिर क्या था.. कई मित्र नॉस्टैल्जिक हो गये। बात आगे चली तो लगा कि बात केवल मेले की नहीं है..! जीवन में जो ‘सुख के टापू’ हैं उनके सैर की कोशिश है..! सोचा कि लगे हाथ मैं भी कुछ अतीत को टटोल लूं….!

जब से होश संभाला, सिंहेश्वर में लगने वाला शिवरात्रि मेला, घर में मनाये जाने वाले त्योहारों की तरह जीवन में शामिल रहा …! मेले में लगने वाली नौटंकी कंपनियों की चकाचौंध, तेज आवाज में बजने वाले लाउड स्पीकर, दुकानों की बहुत तेज रोशनी में चमचमाती चूड़ियां हमेशा ही अचंभित करती रही हैं..! भले ही इतने सालों में मेले का स्वरूप बदल सा गया है लेकिन मेला शब्द सुनते ही रोमांच अब भी होता है।

मंदिर रोड की तरफ से बड़ गाछ (बरगद) से ही मेला शुरू हो जाता था। उत्तर तरफ वाले रोड में एक तरफ लोहे के औजारों की दुकानें, तो दूसरी तरफ पहले रेडीमेड कपड़े और बाद में लैला मजनू बीड़ी का स्टॉल लगता था। …असली लैला मजनू बीड़ी नंबर 666 जबलपुर वाली…! स्टॉल पर उद्घोषक की जादू जैसी आवाज में अमिताभ बच्चन से ज्यादा कशिश थी..! …जी हां बहनों और भाइयों … बीड़ी पीजिये तो असली लैला मजनूँ बीड़ी नंबर 666 ..वरना न पियें…! हमारे स्टाल पर आइए और बीड़ी के साथ इनाम भी पाएं…! करीब 30 साल पहले की वह आवाज़ और दृश्य में मन के एक कोने में आज भी वैसे ही पड़ी है..!

मां की नजर बचा कर धीरे से हम यानी में, संतोष मामा और मुकेश मामा मेला निकल जाते थे। काफी जुगाड़ कर 20 पैसे जमा कर एक बंडल बीड़ी की खरीद होती। बस अब तो हम हो गये अमीर..इसी आशा से कूपन वाले डिब्बे में भोला बाबा का नाम ले कर हाथ डालते..! धत तेरी की ..! ये टिक्का छाप माचिस निकल गयी..! सामने की पान दुकान वाले उमेश मामा से पहले बात तय हो गयी है भाई..! …किफंसलौ रे परमोद बिहारी..? पंहुचते ही उमेश मामा पूछते..!

दरअसल सिंहेश्वर मेरी मां का ननिहाल है। इसलिए पिता के नाम की गाली आशीर्वाद की तरह मिला करती थी..! ज्यादातर लोग मुझे मेरे पिता के नाम से ही बुलाते..! पूरा गांव ही ननिहाल था। युवा मामा-मौसी थे तो बुजुर्ग नाना- नानी ! वैसा ही दुलार भी मिलता। खैर ! उमेश मामा ने बीड़ी और माचिस की कीमत धराई 30 पैसे..! चलो 10 पैसे की कमाई तो हुई..! 10 पैसे में पार्टी कैसे खर्च हों यह भी अहम मसला होता था..!


rupesh profile

मधेपुरा के सिंहेश्वर के निवासी रुपेश कुमार की रिपोर्टिंग का गांवों से गहरा ताल्लुक रहा है। माखनलाल चतुर्वेदी से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद शुरुआती दौर में दिल्ली-मेरठ तक की दौड़ को विराम अपने गांव आकर मिला। उनसे आप 9631818888 पर संपर्क कर सकते हैं।

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