“सरजी एक आइडिया है” वाला कामता चला गया

“सरजी एक आइडिया है” वाला कामता चला गया

संजय बिष्ट के फेसबुक वॉल से

दुनिया किसी के न रहने के बाद भी चलेगी… वक्त दौड़ेगा वैसे ही आंसूओं को कुचल कर…दुखों के पत्थरों को समय वैसे ही चूर-चूर करेगा…लेकिन इस सच के बाद भी है एक शब्द जिसे कमी कहते हैं… वो कमी हमेशा रहेगी, तुम बिन कामता सिंह।

इंडिया टीवी में पहली मुलाकात में ही तुम्हारे जिंदादिल होने का सबूत मिल गया था। …और दिन बीतने के साथ ही तुम छोटे भाई का मुकाम हासिल करते गए। क्या गजब थे तुम… चिंता का टुकड़ा तुम्हारे चेहरे पर नहीं देखा… एक्सेस कार्ड को हाथ में लेकर उसकी सुतली को पांव में पटक कर चलना याद आ रहा है मुझे।

किसी रिसर्च के लिए तुम्हारी बातें याद आ रही है मुझे… जब न्यूज 24 ज्वाइन करने की बात कही थी तुमने तो पहले दुख हुआ था लेकिन फिर सब कुछ सामान्य हो गया। मन के किसी कोने में आशंका तक नहीं थी कि कामता सिंह यूं चला जाएगा…। आज सारा नॉलेज बेईमानी सा लग रहा है। आज सारा रिसर्च बेईमानी सा लग रहा है। आज परिभाषाएं भी बेईमानी लग रही हैं।


अब कोई कामता नहीं मिलेगा

प्रखर श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से

हमारी टीम का सबसे काबिल साथी कामता आज हम सबको छोड़ कर चला गया… वो भी सिर्फ 28 साल की उम्र में। जब हमने उसे न्यूज़ 24 मे लेने का फैसला किया था तो कई लोगों ने मुझसे कहा था कि कामता तो रिसर्च डिपार्टमेंट का है वो आउटपुट की पैकेजिंग टीम में कैसे काम करेगा ? कामता तब इंडिया टीवी में रिसर्च डिपार्टमेंट में था… लेकिन मुझे हमेशा से उस पर सबसे ज्यादा भरोसा था… ईरान से लेकर रूस तक, सिरिया से लेकर मिस्र तक, चीन से लेकर पाकिस्तान तक… यूनाइटेड नेशन से लेकर यूपी, बिहार और यहां तक कि मणिपुर की राजनीति तक… मुशर्ऱफ, हाफिज़ सईद, मौलाना मसूद अज़हर, दाउद इब्राहिम इन सबसे से जुड़ा हर अपडेट कामता के पास होता था…

वो हर वक्त एक नई ख़बर से लबरेज़ होता था… उसकी इसी काबिलियत को देखकर हमने उसे अपनी एडिटोरियल मीटिंग का हिस्सा बनाया था। ये वो मीटिंग होती है, जिसमें चैनल के दिनभर का प्लान तैयार होता है। इसमें आउटपुट की तरफ से सिर्फ शो प्रोड्यूसर शामिल होते हैं, लेकिन कामता काफी जूनियर होने के बाद भी इसका हिस्सा था। उसके पास एक ना एक आइडिया होता था। आज के दौर में जब “ज्ञानविहीन” टीवी प्रोफेशनल्स से ये इंडस्ट्री भरी पड़ी है, तब कामता मेरे लिए एक उम्मीद की किरण था…

वक्त के क्रूर हाथों ने मुझ से मेरा सबसे प्यारा साथी ही नहीं छीना है बल्कि वक्त ने इस टीवी जर्नलिज़्म से एक ऐसा पत्रकार छीन लिया जिसका करियर असीम, अपार, अकल्पनीय संभावनाओं से भरा हुआ था। मेरे भाई कामता… तुम रजत शर्मा, प्रणय राय, विनोद दुआ नहीं हो… तुम दीपक चौरसिया औरअर्णब भी नहीं हो… तुम राजदीप और बरखा भी नहीं हो… लेकिन फिर भी तुम्हारा निधन मेरे लिए टीवी पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षति है… क्योंकि मैं जानता हूं कि आज के बाद मुझे कोई कामता सिंह नहीं मिलेगा जो मुझसे धीरे से आकर कहेगा… “सरजी एक आईडिया है”….


28-29 साल की उम्र में भी कोई दुनिया से जाता है क्या?

शिवेंद्र कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से

इंडिया टीवी में कामता के साथ कुछ महीने मैंने भी काम किया था। दिन में रोज एक बार रिसर्च में उससे मुलाक़ात होती थी। मैं अख़बार पढ़ने जाता था। कामता खोज-खोज कर उन ख़बरों को रखता था जो “लीक” से अलग होती थीं। जिन्हें हम लोग “एक्सक्लूसिव” कहते हैं। ये बात इसलिए याद आ रही है क्योंकि प्रखर श्रीवास्तव ने लिखा कि “सरजी एक आइडिया है” देने वाला चला गया।

मुझे मालूम है कि ये अतिश्योक्ति है, शायद मूखर्तापूर्ण भी लेकिन उसके जाने के बाद से लगातार दिमाग में यही वाक्य घूम रहा है कि कहीं हम सभी का दोस्त कामता सिंह इस बात की “रिसर्च” करने तो नहीं चला गया कि 28-29 साल की उम्र में भी कोई दुनिया से जाता है क्या? ये वाली रीसर्च करके जल्दी लौटना दोस्त… क्योंकि पेशेवर और व्यक्तिगत रिश्तों की दुनिया में तुम्हारी कमी खल रही है।


एक मुस्कान का यूं गायब हो जाना

ऋषि कांत सिंह के फेसबुक वॉल से


कामता। तुम मेरे दफ्तर में काम करते थे।
आते-जाते जब कभी तुम टकराते, तुम्हारे चेहरे की मुस्कान देख कर सारी थकान दूर हो जाती थी। तुम्हारे चेहरे की चमक शरीर में एक ऊर्जा भर देती थी। अब वो ऊर्जा मैं कहां से लाऊंगा। कोई ऐसे भी चला जाता है भला। काम के बीच कभी फुरसत मिलने पर मैं अक्सर रिसर्च डिपार्टमेंट चला जाता हूँ। जब कभी तुम्हारी मौजूदगी में गया, पहला स्वागत तुम्हारी मुस्कान ने ही किया। कुछ बातें होती थी और वहां मौजूद सभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल जाती थी।

तुम कुछ दिनों से कहीं और काम करने लगे थे। लेकिन रिसर्च डिपार्टमेंट में जाने पर अब भी तुम्हारी मौजूदगी का एहसास होता था। क्या-क्या याद करूँ मैं। तुम अपने परम मित्र और हमारे दफ्तर के सहयोगी धर्मेन्द्र के साथ जब-जब मिले, कोई न कोई ठहाकों वाली बात जरूर निकली। आज उसी धर्मेन्द्र से फोन पर बात हुयी तो हम दोनों आंसुओ से भींग गए। तुम बहुत याद आओगे दोस्त। तुम चले गए। अब कभी नहीं मिलोगे। लेकिन तुम्हारी यादें हमारे जेहन में हमेशा रहेंगी।