मृदुला शुक्ला
जरा पलटिये माइथोलोजी से लेकर इतिहास की पोथियाँ, स्त्रियां कब रही हैं युद्ध के समर्थन में ? ये बात दीगर है कि अपने पुरुषों के लिए, अपने प्रियजनों के साथ वे कभी कभी युद्ध के मैदानो में जाती रहीं हैं। गुरमेहर का वीडियो देखिये आपको क्या गलत लगा मैं नहीं जानती, पर मुझे उसमे सिर्फ एक बच्ची का युद्ध का विरोध किया जाना दिखा। हम हर दृश्य को अपनी मर्जी और सुविधानुसार देखते हैं।
मालिकों ,परमपिताओं जब आप एक बच्ची को उसकी मर्जी का बोलने पर गैंगरेप की धमकी देते हैं न तब मेरी आँखों के सामने कॉलेज से निकलती हंसती, खिलखलाती बच्चियों की तस्वीरें नुची-चुथी लाशों में बदल जाती हैं। सिर्फ अपने मन की बात कह देने की इतनी बड़ी सजा मुकर्रर की आपने। और उससे ज्यादा दुःख की बात ये कि उस बच्ची के तमाम चाचा-ताऊ उसके विरुद्ध ही खड़े दिखे।
हम माओं ने बड़ी मुशिकल से हिम्मत जुटाई है अपनी बच्चियों को घर से बाहर निकलने देने, उन्हें उनकी मनमर्जी का करियर चुनने, उन्हें सोचने की आज़ादी देने की। एक बड़ी होती बेटी की मां हूँ, उसे परम्परागत तरीके से सोचना भी नही सीखा पायी हूँ।वो अक्सर ऐसा सोचती है, जैसा मैं नहीं सोच पाती। अभी कल ही बातचीत के दौरान उसने बताया कि रिसर्च पेपर लिख रही हूँ “चिल्ड्रन एज प्रोपर्टी ” वो तो माता पिता के विरुद्ध ही सोचने लगी अभी से ही। मेरी ही मांस-मज़्ज़ा से बनी मेरी सुविधाओं पर पलती और हिम्मत देखिये मेरे ही विरुद्ध सोच रही है।
खैर ….आप युद्ध के समर्थक हैं जाइये लड़िये ,नष्ट कर दीजिए सभ्यता को। मगर हमारी गुरमेहरों को बक्श दीजिये। वे अपनी बात कह रही हैं, आप के शब्द क्यों चुक गये ? आप भी कहो न अपनी बात, आपको अपने तर्क. बुद्धि ,विवेक से ज्यादा अंग विशेष पर ही भरोसा क्यों होता है ? स्त्री के साथ हर लड़ाई को आप अपने उसी हथियार के सहारे क्यों जीतना चाहते हैं? जब आपका भरोसा खुद के अंग पर खत्म हो जाता है तब आप अपने मित्रों को भी बुला लेते हैं। आप तो सीधे गैंगरेप पर उतर आते हैं मालिक। खुद पर भरोसा कर औरत के सामने तर्कों के साथ खड़े होने की तमीज तो बनती है न मालिक ?
मृदुला शुक्ला। उत्तरप्रदेश, प्रतापगढ़ की मूल निवासी। इन दिनों गाजियाबाद में प्रवास। कवयित्री। आपका कविता संग्रह ‘उम्मीदों के पांव भारी हैं’ प्रकाशित। कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं छपीं और सराही गईं।
ये ‘अंध भक्त ‘तर्क करना ही नहीं जानते। तर्क , जो मनुष्य में समझदारी विकसित करती है ,और समस्याओं के असली जड तक पहुंचने मे मदद कर करता है, उससे ये हमेशा भागते आए हैं। जो तर्क से अपनी बात मनवा सकता , वही इन घृणित उपायों का सहारा लेता है। वक्त आ रहा है। इसका भी जबाव मिलेगा ।