तारिक फतेह को लेकर ‘चिंताओं’ का दौर

तारिक फतेह को लेकर ‘चिंताओं’ का दौर

धीरेंद्र पुंडीर

ये मुजफ्फनगर की तारिक फतेह पर चिंता है। घर आया था लिहाजा सुबह के अखबार में दिखा। ये हर हाल में एक धर्मनिरपेक्ष चिंतन है। मुजफ्फरनगर से हजारों किलोमीटर दूर कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के ईमाम साहब ने भी तारिक फतेह के सिर पर 20 लाख का ईनाम रखा है। बरेली के एक ईमाम साहब से दुगुना। इस पर किसी बहस की गुंजाईंश होनी भी नहीं चाहिए। क्योंकि बहस की बात करने पर आराम से किसी दूसरे की साजिश का आरोप चस्पा करने में देर नहीं होती। ये सवाल सब तरफ घूम रहे हैं। पाकिस्तान में टीवी पर बहस हो सकती है। पाकिस्तान में तीन तलाक पर भी बहस हो सकती है। अफगानी बुर्कों को पहनने पर भी बहस हो सकती है लेकिन हिंदुस्तान में इस बहस को करने वाले जरूर आरआएसएस के एजेंडें के लोग हैं। साईबर दुनिया में हासिल की गई दोस्ती का आधार सिर्फ एक पोस्ट के पसंद होने या न होने पर तय हो सकता है लेकिन हैरानी अब नहीं होती तब भी जब कि आपके साथ इतने सालों तक आपको जानने-पहचानने वाले दोस्त आसानी से आपको नफरत फैलाने वालों के खेमें में डाल देते हैं, बिना किसी सवाल का जवाब दिए हुए।

मैं किसी को सफाई नहीं देता हूं क्योंकि इतने दिनों में मैंने क्या पढा़ है ये कोई मायने नही रखता है लेकिन मैंने जो देखा है वो सबको दिखाई दे सकता है। कैराना से लेकर रूड़की तक के रास्ते में आपको आसानी से पहचान हो सकती है, जो दस साल पहले तक दिखाई नहीं देती थी। मुझे लगता है कि फतेह और तस्लीमा नसरीन एक जलते हुए सवाल की तरह तीखे लगते हैं, कुछ लोगों को और हैरानी आप को हो सकती है कि मजदूरी कर रहे मजदूर से लेकर ईख के खेत में घास काट रहे घसियारे से लेकर ऊंचे ओहदों पर बैठे हुए लोगों तक या फिर प्राईवेट नौकरियों में उच्च पदासीन, सबका रिएक्शन एक जैसा ही क्यों होता है? ये भी एक सवाल बन जाता है। अभी देख रहा था कि वोट बंटने की चिंता ज्यादा है वोट बैंक बनने की नहीं। खैर ये मसला तो कभी भी सामने आ सकता है। कश्मीर के वो वीडियो, जिसमें बच्चों के नारे हिंदुस्तानी फौजों के सामने हैं, वो शेयर नहीं करता हूं क्योंकि मानता हूं कि वहां जमात के लोग और आईएसआईएस के लोगों के एजेंडे क्या हैं, लेकिन ये देश सबका है इसीलिए सबके सवालों को तरजीह देना सीखिये।

ये मालूम नहीं है कि इतिहास पर भी कितने लोग बात करते हैं। इसका चुनाव से मतलब उन्हीं को लग रहा है जिनके लिए इस देश का मतलब इस देश के ढांचे को तबाह कर नया बनाने के लिए है। ये बात तो आने वाली पीढ़ियों के लिए करने का आग्रह है। मेरे सवाल ज्यों के त्यों है। मैं किसी को चिढ़ाने के लिए नहीं सवाल करता हूं मैं सिर्फ जवाब हासिल करने के लिए करता हूं ताकि बात समझ में आ सके।


pundir-profileधीरेंद्र पुंडीर। दिल से कवि, पेशे से पत्रकार। टीवी की पत्रकारिता के बीच अख़बारी पत्रकारिता का संयम और धीरज ही धीरेंद्र पुंडीर की अपनी विशिष्ट पहचान है।