कुमार सर्वेश
मुझे आज सोशल मीडिया तैमूर लंग से ज्यादा खतरनाक लगता है। तैमूर तो अपने पेशे से खूंखार था। सोशल मीडिया पर तो कई बार एक तबके की सोच ही शब्दों, विचारों और भावनाओं की बजाय खून से रंगी होती है। तैमूर लंग की तरह हमारी सोच-विचार क्यों कभी इतनी लंगड़ी हो जाती है कि हम अपने विवेक से सोचने और चलने की बजाय सोशल मीडिया के उन्माद की बैसाखी का सहारा लेने लगते हैं। माना कि तैमूर हिंदुस्तान और हिंदुओं का दुश्मन था। उसकी दुश्मनी धार्मिक से ज्यादा राजनीतिक थी। वह विश्व इतिहास के सर्वाधिक क्रूर और आततायी शासकों में से एक था। लेकिन क्या सिर्फ इस बात से किसी बच्चे का नाम अगर तैमूर या चंगेज या नादिर शाह रख दिया जाए तो हम ज़हरीले सवाल उठाने लगेंगे।
करीना कपूर और उनके शौहर सैफ अली खान ने तो सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके बेटे के नाम को लेकर इतना बड़ा विवाद उठ खड़ा होगा। बेटे का नाम तैमूर रख कर उन्होंने एक आफत मोल ले ली। एक मित्र ने सोशल मीडिया पर ही जानकारी दी कि तैमूर ने अपनी मां का कत्ल किया था और दिल्ली में हिंदुओं का कत्लेआम किया था। हालांकि उसने बड़ी संख्या में हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमानों का भी कत्लेआम किया था। तैमूर तो हिन्दुंस्तान के मुसलमानों को भी ‘कलमा पढ़ने वाला काफिर’ कहता था। दरअसल तैमूर लंग दूसरा चंगेज़ ख़ाँ बनना चाहता था।
शेक्सपियर ने कहा है कि नाम में भला क्या रखा है। गुलाब को किसी भी नाम से पुकारो, उससे गुलाब की ही खुशबू आएगी। मान लीजिए, तैमूर का नाम तैमूर न होकर बुल्लेशाह या फरीद होता तो क्या उसका इतिहास भी बदल जाता? तब क्या वह तलवार को छोड़कर हाथ में एकतारा लेकर बजा रहा होता? ‘तैमूर’ अरबी का शब्द है। इसका मतलब खुद्दार होता है। इसका एक अर्थ iron या लोहा भी होता है। आज एक भाई ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘’हिंदुओं, अपनी बच्चियों का ध्यान रखना, वो करीना की तरह किसी मुसलमान से शादी करके कहीं कोई तैमूर ना पैदा करे’’! हिंदुओं में बहुत सारे लोगों के नाम में ‘राम’, ‘कृष्ण’ या ‘शंकर’ लगा होता है, तो फिर ये सभी लोग राम, कृष्ण और शिव के गुणों वाले क्यों नहीं हो जाते? हमारी संस्कृति में कभी भी बुरी ध्वनि वाले नाम रखने की परंपरा नहीं रही है। मुसलमान भी अपने बच्चों का नाम शायद ही औरंगजेब रखते होंगे। बाबर, हुमायूं, अकबर और जहांगीर वगैरह तो रखते हैं लेकिन औरंगजेब नाम मैंने तो अभी तक नहीं सुना है।
अब ज़रा सैफ-करीना के उस बच्चे का ख्याल कीजिए जिसका नाम तैमूर रखा गया है। भला उसकी इसमें क्या गलती है? वह एक मुसलमान पिता का बच्चा है तो हिंदू मां के गर्भ से भी जन्मा है। उसकी दादी (शर्मिला टैगोर) भी एक हिंदू महिला रही हैं। उस छोटे से बच्चे से इतना भी क्या डरने की जरूरत है ! वह बड़ा होकर न तो तैमूर लंग बनने जा रहा है न चंगेज खां। वह ज्य़ादा से ज्यादा यही करेगा कि अपनी मां और पिता की तरह मायानगरी की मायावी दुनिया में अपनी किस्मत आजमाएगा या फिर अपने दादा की तरह क्रिकेट खेलने की कोशिश करेगा। ज्य़ादा हुआ तो कोई कारोबार या व्यापार कर लेगा और अपनी पुश्तैनी जायदाद संभालेगा। उस मासूम से भला देश को क्या खतरा हो सकता है?
युवा टीवी पत्रकार कुमार सर्वेश का अपनी भूमि चकिया से कसक भरा नाता है। राजधानी में लंबे अरसे से पत्रकारिता कर रहे सर्वेश ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है। साहित्य से गहरा लगाव उनकी पत्रकारिता को खुद-ब-खुद संवेदना का नया धरातल दे जाता है।
सर्वेश जी सोलह आने सही हैं ।लेकिन उस सोंच को कैसे रोक पाइएगा जो नयी पीढी के अधिकांश युवाओं में पैदा हो रही है।खैर बात तैमूर लंग की करें ।वह हत्यारा ,लुटेरा ,आतताई और भी बहुत कुछ था लेकिन उसमे एक खासियत भी थी ।मैने पढाया था बच्चो को ।तैमूरलंग ने जब भारत पर आक्रमण किया तो एक गांव के छोटे बच्चे की बहादुरी के सामने उसे पराजित होना पडा था ।वह लडका बहादुर था ।हाथ में चाकू लेकर तैमूर का मुकाबला करने को जब तैयार होगया तो तैमूर ने उससे कहा था –‘शाब्बास बच्चे !,तैमूर बहादुरों की कद्र करना जानता है ।और उसने उस गांव में बिना लूटपाट मचाए अपनी सेना को वापस लौट जाने का आदेश दे दिया था ।