प्रशांत दुबे
किसी के इंतजार में खटलापुरा मंदिर में बैठा था| एक पढ़े-लिखे, सूट-वूट वाले भाईसाहब चार चके से उतरे, कुछ मन्त्र पढ़े और पूजा पाठ की सामग्री पन्नी सहित छोटे तालाब में विसर्जित करने लगे| अचानक आई एक आवाज से मेरी तंद्रा टूटी, “सर यह सामग्री इस कुंड में ड़ाल दीजिए”, तालाब में फेंके जाने से गंदगी होगी| पढ़े-लिखे भाईसाहब ने गंवार की तरह कहा कि “तुम्हारे बाप का क्या जाता है, हम तो इसी में सिरायेंगे”|
व्यक्ति ने कुछ न कहा, उनके जाने के बाद आकर लकड़ी से एक-एक माला निकाली, किनारे किया और पूरी श्रद्धा से जाकर कुंड में डाला| उत्सुकतावश मैंने उनका नाम पूछ लिया| लईक खान| नगर निगम में (25 दिनी) नौकरी करते हैं, उनकी यही ड्यूटी है| बोले साहब, दीन सबका एक है, उससे खिलवाड़ न होना चाहिये, इसलिये सम्मान के साथ हम कुंड में डाल देते हैं| लईक भाई ने बताया कि दिन भर में इस तरह के 30-40 लोग आते हैं| परसों एक भाईसाहब ने तो मेरे टोकने पर यह तक कह दिया कि “तुम्हारी जात क्या है, मैंने बताया तो हंसने लगे कि तुम लोग क्या समझोगे!!”
मैंने लईक भाई की फोटो ली, तो वे घबरा गए, उन्हें लगा कि मैं भी कोई धौंस दूँगा| मैंने बताया कि पत्रकार हूँ, और आप महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं| लईक भाई ने बताया कि साहब, एक गाड़ी तालाब के चारों और घूमती है, वह केवल अनाउंसमेंट करती है कि यहाँ कचरा न फेंके| दूसरी गाड़ी दिन भर इस तरह के कचरे को इकठ्ठा करती रहती है| उन्होंने आगे बताया कि कुंड में सिराए गए कचरे को भानपुर खंती में एक अलग जगह पर रखा जाता है| यह धार्मिक आस्था का सवाल है|
मुझे अब तक समझ में नहीं आ रहा है कि पढ़े-लिखे लईक हैं या वो सूट वाले भाईसाहब| अरे भले लोगों, इस विरासत को अगली पीढ़ी को हम कैसे देने वाले हैं| अरे यार, वो कुंड में ही विसर्जित कर दो भाई … ? पंडित जी लोगों से भी निवेदन है कि वे भी अपने प्रवचन में, भागवत में कहें कि इस सामग्री को केवल और केवल
इस तरह के कुंड में ही डालें …..|
प्रशांत दुबे। बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। सामाजिक कार्यकर्ता, शोधकर्ता, मीडियाकर्मी। कभी-कभी रंगकर्म में भी हाथ आजमा लेते हैं।
पहली और महत्वपूर्ण बात यह कि वह शूटेड -बुटेड ,चार चक्का वाहन वाला आदमी व्यवहारिक रूप से पढा-लिखा नही हैगा ।शिक्षा का प्रमाणपत्र धारी हैगा ।दूसरा यह कि ऐसे घैर धर्मांध लोग धार्मिक कृत्य के नाम पर प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुचाकर सम्पूण जीवजगत का अहित करने मे ही अपने को धन्य मानते हैं।ऐसों के नाम पर थू —।पढा -लिखा ,गुणवान और अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक तो वह आदमी है जो बडी विनम्रता और मुस्तैदी से कचरे को बाहर करने में जुटा है ।