धीरेंद्र पुंडीर
हाथ पर चांद का फोटो खींच लेने से न चांद इतना छोटा होता कि हथेली पर आ जाए और न ही हथेली इतनी बड़ी हो जाती है कि चांद को संभाल ले। वीरान सड़कों पर उड़ती हुई धूल आपके वाहनों के शीशों पर जम जाती है। सुरक्षा बलों की गाड़ी में बैठकर सुनसान सड़कों को देखना आपकी आंखों के अंदर वीरानापन भरता जाता है। सड़क के किनारे या फिर खेतों में भी पपलर के पेड़ों ने संख्या में अब चिनार के पेड़ों को पीछे छोड़ दिया है। श्रीनगर से अवंतीपोरा तक जाने में आपको जाने कितने मौसम दिखाई देंगे।
कहीं-कहीं लोग खड़े हैं, सड़कों के किनारे से सरकारी वाहनों को अजनबी निगाहों से देखते हैं। पैरामिलिट्री फोर्स के जवान गाड़ी के अंदर उतनी ही अजनबी निगाहों से बाहर के लोगों को देख रहे हैं। लेकिन अंदर और बाहर में एक अंतर जरूर है। अंदर बैठे हुए आदमी को लगता है कि बाहर के लोगों को बहका कर उनके स्वभाव से उलट काम कराया जा रहा है तो बाहर के लोगों को लगता है कि गाड़ी में बैठे लोगों से उनका कोई रिश्ता नहीं है। हालांकि अंदर बैठे हुए लोगों में कश्मीरी युवा भी शामिल हैं, जो सुरक्षा बलों में भर्ती हुए हैं।
कश्मीर में ठहरा वक़्त-3
अदंर की कसमसाहट सामने आने का रास्ता जोह रही है लेकिन अंधी गली में जैसे सब रास्ते बंद हो गए हैं। रास्ते में खड़े लोगों से बात करना अब काफी जोखिम का काम हो गया है। हर जगह कुछ लोग हैं, जो इस भीड़ को नियंत्रित करते हैं। आपको मालूम ही नहीं कि किसको इस इलाके का जिम्मा दिया गया है। कुछ दिन पहले तक हवा में टिकी हुई हुर्रियत कांफ्रेंस जमीन पर उग आई है। हर रोज उसका कैलेंडर जारी होता है और लोग उसको मानने के लिए मजबूर हो रहे हैं। सरकारी सुरक्षा में बैठे हुए अलगाववादियों ने मुख्यधारा ( अगर कश्मीर में इस धारा को मुख्य कहा जाता हो तो) के राजनीतिज्ञों को घरों में सुरक्षा घेरे में बंद हो जाने के लिए मजबूर कर दिया। श्रीनगर में विधायक, मंत्री या फिर राजनीतिक कार्यकर्ता सड़कों से बेहद दूर हैं। अपने लोगो से दूर। वो हवा में भी नहीं हैं। महज कुछ दिन पहले हजारों की भीड़ तक जुटा लेने वाले ये नेता कुछ लोगों को देख कर भी घबरा जाते हैं।
आप उनको फोन कर इंटरव्यू लेने की बाद करते है तो वो अभी कन्नी काट जाते हैं। उनको लगता है ऐसे वक्त में उनकी बाईट ऊंट की करवट के उलट न बैठ जाएं। और वो नुकसान खा बैठें। कश्मीर में किसी अलगाववादियों को अब किसी को गाली देने के लिए किसी माध्यम की जरूरत नहीं है, उनके लोग सड़कों पर सरेआम ये काम कर रहे हैं। खैर किसी न किसी से मिलने की जिद थी। स्थानीय मित्र पत्रकार की मदद ली। फिर एक साहब बात करने के लिए तैयार हुए। बात करने के लिए उनके आवास पर जाना था। आवास के बीच में एक जगह इंतजार करने लगे। इसी बीच सामने अधखुली दुकान में मुर्गों को काट रहा एक शख्स हमारे चेहरे को देखकर भांप चुका था कि हम न केवल बाहरी हैं बल्कि पत्रकार भी। उठ कर आने के बाद कहा कि हमारी बात सुनोगे।और फिर कहना शुरू कर दिया। उसका कहना था कि दिल्ली में बैठे हुए लोग उनको धोखा देते रहे हैं। कश्मीर डिस्प्युटड मसला है। कभी भी हल नहीं हुआ है। पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए इस हमला किया था और फिर कश्मीर के राजा ने आपकी मदद मांगी और मदद के लिए आपकी फौज आई और फिर वापस नहीं गई। यही मसला है।
फिर उसने कहा कि शेख अबदुल्ला को भी साजिश के चलते मारा गया। इस पर मैने कहा कि उमर अबदुल्ला और फारूख अब्दुल्ला के बारे में क्या ख्याल है तो फिर वो गालियां देने लगा अबदुल्ला परिवार को। मैंने कहा कि क्या अभी जिंदा अब्दुल्ला आपके लिए दिल्ली के खिलाफ कुछ इस्तेमाल का नहीं है क्या। इस पर उस शख्स ने बड़े ही कड़वे अंदाज में कहा कि जाओ और मोदी की जय-जयकार करो। हम यहां निबट लेंगे। खैर इतनी देर में हमारे ड्राईवर साहब आ गए और हम मिलने के लिए चल दिए। व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस आदमी को श्रीनगर के दस बड़े परिवारों में से एक माना जाता है। बातचीत शुरू हुई कि उससे पहले ही उसने कहा – पहले आपको एक वादा करना होगा कि जो मैं बोलू्ंगा वही आप दिखाएंगे। दिल्ली में जाकर बदल जाता है सब कुछ। मीडिया हमारे खिलाफ दिखा रहा है। दिल्ली में बैठ कर मोदी की जयजयकार कर रहा है। मैंने कहा कि आप आश्वस्त रहें कि बिजनेस को लेकर आप जो भी बोलेंगे वो सारा दिखाया जायेगा। इस पर उन्होंने कहा कि नहीं मसला बिजनेस का है ही नहीं मसला इस वक्त कश्मीर का है।
कश्मीर है, मसला बिजनेस नहीं। हम उस पर बात करेंगे। मैं चाहता हूं हिंदुस्तान कश्मीर को छोड़ दे। मैंने कहा कि ये बात मैं नहीं दिखा पाऊंगा क्योंकि आप कि इस तरह की बात काफी लोग कह चुके हैं। उन्होंने कहा कि नहीं मैं अपने लोगों से धोखा नहीं कर सकता। मैंने सिर्फ ये ही कहा कि क्या मैं अपने देश से धोखा कर दूं। जो बात आसानी से झूठ है जिसका कोई बेस नहीं है और आपने तय कर ली तो क्या मैं उसको दिखाने का वादा कर लूं। इस पर खान के साथ बैठे हुए दूसरे कश्मीरी व्यापारी ने बड़े भावुक होकर गुस्से में कहा कि हां इसीलिए हम जानते है कि आप लोग हमारे ख़िलाफ़ हो।
बातचीत शुरू हुई, मैंने एक छात्र की तरह समझने का वादा किया। मसला ए कश्मीर क्या है। और कश्मीर देश से अलग किस तरह से है। देखों मैं व्यापारी हूं उसी तरह से बात करूंगा। देखो बिजनेस का एक खाता होता है, जब बिजनेस फेयर होता है तो साल के आखिर में दोनों का खाता साफ हो जाता है। एक लेने वाला का खाता और दूसरा देने वाले का। दोनों साफ खाली हो जाते हैं। तब माना जाता है कि न कुछ लेना है न कुछ देना है। लेकिन कश्मीर का खाता ऐसा नहीं है हिंदुस्तान की ओर से लाल स्याही से लिखा हुआ है कि कश्मीर पर बात होनी है। ये विवादित मसला है। ये कौन सा खाता है, कोई व्यापारी अपने आप से भी खाते में लिख सकता है क्या वो दूसरे को मान लेना होगा। नहीं, आप समझ नहीं रहे है अगर खाता साफ होता तो भारत यूएनओ में नहीं जाता। यूएनओ ये नहीं कहता कि प्लेबीसाईट् कराओ। देखिए हम इसी को गलती कह रहे हैं। और इस गलती में सुधार की ये गुजांईश है कि पाकिस्तान पहले अपने कब्जे वाले कश्मीर को खाली करे और उसको डिमिलट्रीजाईज्ड करे। उसके बाद हम लोग अपने हिस्से से सेना हटाएंगे और फिर शायद बात आगे बढ़ेगी लेकिन पाकिस्तान तो खाली नहीं कर रहा है।
देखिये ये फिर उलझाने वाली बात है। पाकिस्तान तभी खाली करेगा जब आप पहले खाली करेंगे।
(ये शृंखला जारी है…)
धीरेंद्र पुंडीर। दिल से कवि, पेशे से पत्रकार। टीवी की पत्रकारिता के बीच अख़बारी पत्रकारिता का संयम और धीरज ही धीरेंद्र पुंडीर की अपनी विशिष्ट पहचान है।