भरत मिलाप, मेला और हमारा बचपन

भरत मिलाप, मेला और हमारा बचपन

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फोटो- अजय कुमार

मृदुला शुक्ला

बचपन में दशहरे पर नए कपड़े मिलने का दुर्लभ अवसर आता था । हम सारे भाई बहन नए कपड़े पहन शाम को पापा के साथ मेला देखने जाते । पापा हम लोगों को राम लीला मैदान ले जाने के बजाय चौक में किशोरी मिष्ठान भण्डार पर बैठा देते । श्याम बाबु को कह देते बच्चे जो खाना चाहे वो उन्हें खिला दें । खा पीकर हम सब वापस आ जाते । फिर तीसरे दिन होने वाले भरत मिलाप की तैयारी होती । जिला मुख्यालय पर घर होने की वजह से कोई न कोई गाँव से मेला देखने आ जाता और हम बच्चे उसके पीछे लटक भरत मिलाप देखने जाते।bharat

रत मिलाप रात भर चलता पहले पूरे शहर को रौशनी से सजाय जाता फिर शाम से ही झांकी निकलती सुबह चौक में राम भरत मिलाप होता ।प्रतापगढ़ का भरत मिलाप देखने आस पास के जिले से भी लोग आते | 

mela2mela-3महीनों से हमे इंतज़ार रहता दशहरे के मेले का नए कपड़ों का। मेले से खरीदी बांसुरी महीनों तक पूरे मोहल्ले में गूंजती रहती हम मिटटी के जांत लेते तराजू भी दिवाली में बनाये जाने वाले घर घरौंदे के साज सज्जा का सारा सामान भरत मिलाप के मेले से खरीदा जाता वो उछाह वो हुलस बड़े होने के साथ ही खो जाता है।

मेलों के प्रति आकर्षण कब खत्म हुआ पता ही नहीं चला अब तो बच्चों को भी मेले में कोई रूचि नहीं ।वे जो हज़ारो की संख्या में मेले में मौजूद होते हैं कहीं न कहीं उन सब में खुद को भी पाती हूँ । घर से पांच सौ मीटर की दूरी पर रामलीला मैदान है । न बच्चों ने कहा न मैं खुद ही गयी । शायद मेलों में अब ऐसा कुछ भी नहीं होता जो रोमांचित करे या अन्य दिनों में दुर्लभ हो । वे अब साप्ताहिक बाजार जैसी भीड़ भाड़ वाली जगह भर लगते हैं ।

 


mridula shuklaमृदुला शुक्ला। उत्तरप्रदेश, प्रतापगढ़ की मूल निवासी। इन दिनों गाजियाबाद में प्रवास। कवयित्री। आपका कविता संग्रह ‘उम्मीदों के पांव भारी हैं’ प्रकाशित। कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं छपीं और सराही गईं।

One thought on “भरत मिलाप, मेला और हमारा बचपन

  1. बचपन को याद करना एक तरह.से शकून देने वाला होता है ।म्रिदुला जी का पोस्ट पढ कर मेरा अपना बचपन याद आ.गया ।मेरे पिता जी नही थे औऋ मां भी नही थी ।तीन साल का थातो पहले पिता जी मरे फिर सातवेंदिन मां चल बसी ।दादी और दो चाचा ने मेरा पालन पोषण.किया ।दोनो चाचा ने शादी भी नही की ।बडका चाचा आसाम-बंगाल मे रहत थे और छोटका चाचा घर पर ।घोर गरीबी थी ।बडका चाचा साल मे एक बार घर आते थे ।जब मै पांच साल का था वे विजया दशमी मेआए हुए थे ।उनके साथ रतबारा (घर से एक -डेढमील दूर)मेला देखने गया ।उनकी उंगली थामे घूम रहा था कि.भीड मे उंगली छूट गयी ।मेले मे मै खो गया। रोता हुआ एक दुकान पर आया वह दुकान हमारे गांव.के मुनकिया कथी ।उसने मुझे बैठाया ।केला खिलाया।तब चाचा खोजते हुए आये ःःहम उनके साथ घर आ गये ।

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