कीर्ति दीक्षित
विजयादशमी है, प्रत्येक वर्ष रावण के तमाम गुणों अवगुणों की बातें होती हैं, कोई उसके ज्ञान की बात करता है, कोई उसके अत्याचार की, कोई उसकी वीरता की। आज हम ना तो रावण के शास्त्र ज्ञान की चर्चा करेंगे ना ही, शस्त्र ज्ञान की। आज हम आपको उसकी ऐसी तकनीकी के विषय में बतायेंगे जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में किसी के पास नहीं थी। देवता भी इस तकनीक को प्राप्त करने की लालसा रखते थे। रावण की शक्ति से सम्पूर्ण ब्रह्मांड कम्पित होता था। वह जितना शक्तिशाली था, उतने ही शक्तिशाली आयुध एवं तकनीकों का स्वामी भी था। इस तकनीक में सबसे महत्वपूर्ण वर्णन मिलता है रावण के पुष्पक विमान का, वाल्मीकि रामायण में पुष्पक विमान का वर्णन कुछ इस प्रकार मिलता है –
तस्य ह्म्यर्स्य मध्यथ्वेश्म चान्यत सुनिर्मितम ।
बहुनिर्यूह्संयुक्तं ददर्श पवनात्मजः ।।
हनुमान ने रावण की नगरी में जब इस विस्मयकारी विमान के दर्शन किये तो वे भी आश्चर्य से भर उठे। रावण के महल के समीप रखा हुआ यह पुष्पक विमान एक योजन लम्बा और आधे योजन चौड़ा था जो किसी अप्रतिम सौन्दर्य से परिपूर्ण प्रासाद के सामान प्रतीत होता था। यह दिव्य विमान विभिन्न प्रकार के रत्नों से विभूषित स्वर्गलोक में विश्वकर्मा ने ब्रह्मा के लिए बनाया था। रावण के भाई कुबेर ने ब्रह्मा से तपस्या कर इस चमत्कारिक विमान को प्राप्त किया जिसे रावण ने कुबेर से बलपूर्वक छीन लिया था। पुष्पक विमान सम्पूर्ण विश्व के लिए उस समय किसी आश्चर्य से कम नहीं था। मन की गति से चलने वाला यह विमान आवश्यकता के अनुसार आकार ले सकता था। इस अद्भुत विशाल पर्वत माला के समान विस्तृत दिखाई पड़ने वाले विमान की आधारभूमि जहाँ आरोहियों के खड़े होने का स्थान था, वह कृत्रिम मणियों से निर्मित एवं पुष्प लताओं से सुसज्जित किया गया था।
इस विमान में श्वेत भवन बने हुए थे साथ ही इसमें सरोवर, वन आदि का निर्माण भी किया गया था । इसमें नीलम, चांदी और मूँगों से पक्षियों, सर्प, अश्व आदि पशु पक्षियों के चित्र भी इस विमान में बने भवनों में बनाये गये थे। स्वर्ण, और मूंगा आदि मणियों से इस विमान के पंख बनाये गये थे, पुष्पक अपने इन पंखों को अपनी इच्छा के अनुरूप संकुचित एवं विस्तृत कर सकता था। साथ ही इन्हें पूर्ण रूप से विलुप्त करने में भी सक्षम था। सौन्दर्य की दृष्टि से इस विमान की कल्पना करना भी साधारण मनुष्य के लिए असंभव सा था। जब यह विमान धरती से आकाश की ओर उड़ता तब सौर्यमंडल में विराजमान किसी विशाल एवं सौन्दर्य से परिपूर्ण ग्रह के सामान ही प्रतीत होता था। कहते हैं जहाँ जहाँ से पुष्पक विमान निकलता वहां सौर मार्ग सा निर्माण करता जाता था। मन की गति से चलने वाला पुष्पक विमान स्वामी के मन के द्वारा निर्धारित स्थान पर स्वतः चलने वाला था। पुष्पक जैसा अद्भुत विमान ना केवल पृथ्वी पर वरन पूरे ब्रह्माण्ड में विचरण कर सकता था। विभिन्न प्रकार की दैवीय तकनीकों से निर्मित इस विमान की गति का अंदाजा लगा पाना भी लगभग नामुमकिन ही था। इसमें श्रृष्टि की विभिन्न वस्तुओं का समन्वय किया गया था। विभिन्न शालायें भी थीं, जिसमे आयुध से लेकर औषधियों का भंडार होता था। साथ ही विभिन्न कूटागार भी इसकी विशेषता थे जिनमें, पेय, भक्ष्य, अन्नादि का भंडार सदैव रहता था।
वर्तमान में हम किसी भी पदार्थ को जड़ मानते हैं किन्तु यदि इन्हीं पदार्थों में चेतना उत्पन्न कर ली जाये तो रामायण काल के इस विमान की भांति परिस्थितियों के अनुरूप ढलने वाले यंत्र का निर्माण कर सकते हैं। आज का विज्ञान इस तकनीकी उत्कृष्टता को नहीं छू सका है। रामायण काल में विज्ञान ने पदार्थ की इस चेतना को संभवतः जागृत कर लिया था। इसी कारण पुष्पक विमान स्व-संवेदना से क्रियाशील होकर आवश्यकता के अनुसार आकार परिवर्तित कर लेने की विलक्षणता रखता था। पदार्थ में चेतना जागृत करने सम्बन्धी अनेक अन्य प्रमाण भी रामायण एवं विभिन्न सनातन धर्म ग्रंथों में प्राप्त होते हैं। साथ ही नवीन शोधों से ज्ञात होता है कि यदि उस युग का पुष्पक या अन्य विमान आज आकाश गमन कर ले तो उनके विद्युत चुंबकीय प्रभाव से मौजूदा विद्युत व संचार जैसी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएंगी। पुष्पक विमान के बारे में यह भी पता चला है कि वह उसी व्यक्ति से संचालित होता था, जिसने विमान संचालन से संबंधित मंत्र सिद्ध किया हो। दूसरे शब्दों में इसे आज की रिमोट तकनीकी अथवा कंपन तकनीक (वाइब्रेशन टेकनोलाजी) भी कहा जा सकता है ।
महर्षि भरद्वाज के वैमानिकी शास्त्र में विमानों की विभिन्न एवं अद्भुत तकनीकों का वर्णन है। भारत का दुर्भाग्य कहें कि आज हमारी धरोहर की मूल प्रति हमारे पास नहीं। भारत के ऐसे तमाम शोध ग्रन्थ विदेशी शक्तियों ने हरण कर लिए ।
कीर्ति दीक्षित। उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले के राठ की निवासी। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट रहीं। पांच साल तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्थानों में नौकरी की। वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकारिता। जीवन को कामयाब बनाने से ज़्यादा उसकी सार्थकता की संभावनाएं तलाशने में यकीन रखती हैं कीर्ति।
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