कीर्ति दीक्षित
भूख और बीमारी सभी ऊर्जाओं को पिघला कर भस्म कर दिया करते हैं, बुंदेलखंड भूखा भी है,बीमार भी! राजनेताओं के लिए बुंदेलखंड अपना करियर चमकाने की सबसे मुफीद जगह है, लेकिन जब विकास की बात आती है तो ढाक के तीन पात। बुंदेलखंड कभी सूखे से मरता है, कभी भूख से और कभी बीमारी से । कुल मिलकर बुंदेलखंड के मस्तक पर पीड़ा की रेखाओं के अलावा कुछ नहीं, लेकिन फिर भी ये हार नहीं मानता। बुन्देली समाज के तारा पाटकार एवं उनके अन्य साथियों ने कुछ ही वर्ष पहले शपथ उठाई थी कि महोबा कस्बे में कोई भूखा नहीं सोयेगा। रोटी बैंक नामक एक संस्था आरम्भ कर एक महत्वपूर्ण पहल आरम्भ की जिसके बाद आस पास के कई कस्बों में रोटी बैंक खोले गये, आज ये सफलता से चल रहे हैं ।
भूख के बाद इन्होंने अब लड़ाई स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए ठानी है। तारा पाटकर महोबा जिले के आल्हा चौक पर लगभग 60 दिनों से एम्स सहित 13 सूत्रीय मांगों को लेकर उपवास पर बैठे हैं। साथ ही लगभग साल भर से इन मांगों के पूरा होने तक नंगे पैर चलने की प्रतिज्ञा लिए हुए हैं । आस-पास के लोगों का तो तारा को भरपूर समर्थन मिल रहा है लेकिन राजनैतिक इच्छा शक्ति दूर दूर तक दिखाई नहीं पड़ती। लाखों पत्र और अनगिनत नेता इनसे मिलकर महोबा में एम्स के वायदे करके भी गये लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। पिछले दिनों 17 सितम्बर को अपनी खाट पंचायत की सीरीज में कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी इनसे मिलने पहुंचे थे लेकिन नतीजा वही आश्वासन। जबकि कांग्रेस के शासनकाल में इस मांग से सम्बंधित सैकड़ों पत्र केंद्र को लिखे गये। साथ ही यहाँ के सांसद पुष्पेन्द्र चंदेल ने एम्स की मांग को संसद पटल पर भी रखा, फिर भी सालों से इन मांगों पर कोई सुनवाई नहीं की गयी।
हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय को लाखों की संख्या में पत्र एवं राखियाँ भी भेजी गयी लेकिन कोई मदद नहीं मिली। आज सैकड़ों मरीज सामान्य से बुखार में भी इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में कुपोषण दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है लेकिन इनके लिए काम करने वाला कोई नहीं दिखाई पड़ता। सरकारी अस्पताल मरणासन्न स्थिति में हैं। छोटी से छोटी बीमारी के लिए लोगों को ग्वालियर, झाँसी, दिल्ली जैसे शहरों की तरफ भागना पड़ता है।
लगभग 60 दिनों से उपवास पर बैठे तारा पाटकर का कहना है ‘एक बेहतर एवं उन्नत समाज की रचना तभी संभव है जब वह समाज स्वस्थ, शिक्षित, एवं सुदृढ़ हो। भूखे और बीमार लोग किसी विकास की परिभाषा नहीं लिख सकते। सरकार यदि हमारी मांगें नहीं सुनती तो हम आमरण अनशन पर भी बैठेंगे लेकिन हमारे शहर को इस तरह मरने के लिए नहीं छोड़ेंगे।’
कीर्ति दीक्षित। उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले के राठ की निवासी। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट रहीं। पांच साल तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्थानों में नौकरी की। वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकारिता। जीवन को कामयाब बनाने से ज़्यादा उसकी सार्थकता की संभावनाएं तलाशने में यकीन रखती हैं कीर्ति।
wonderful efforts Tara ji!! but I g
have a question and I am throwing it just for clarity of the people and that is the Government has already launched so many schemes and plans for the growth of poor and farmers and even for the upliftment and better education then what all are the problems you are facing here to reach all these kindly specify.