कुणाल प्रताप सिंह
मोतिहारी के हरसिद्धि प्रखंड मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित है, पंचायत हरपुर राय। सूबे की किसी भी पंचायत की तरह विकासशील लेकिन उसी के अनुरूप यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव भी झलकता है। वर्ष 2008 में यह पंचायत अचानक राष्ट्रीय स्तर पर तब सुर्ख़ियों में आई थी, जब सम्पूर्ण स्वच्छता को लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल ने यहां की मुखिया बच्ची देवी को गुवाहटी में सम्मानित किया था। इतना ही नहीं इसके बाद इसी वर्ष राज्य सरकार ने इस पंचायत को लोहिया स्वच्छता मिशन के तहत भी पुरष्कृत किया था। इस तरह हरपुर राय निर्मल ग्राम का दर्जा पाने वाली चंपारण की पहली पंचायत बनी।
हैरान करने वाला तथ्य यह है कि आज महज 8 साल बाद बमुश्किल पांच फीसदी शौचालय नहीं बच पाए हैं। पंचायत की 95 फीसदी से अधिक आबादी शौच के लिए के लिए खेत व सड़क के किनारे जाती है। पूछने पर अधिकांश पंचायत वासी बताते हैं कि निर्माण इतना घटिया हुआ था, जिसकी वजह से शौचालय बनने के एक माह बाद ही ध्वस्त होने शुरू हो गए।
कृष्णा प्रसाद ने भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा कि उस समय उन्होंने मुखिया को वोट नहीं दिया था, इसलिये उनकी जाति का होने के बाद भी शौचालय नहीं मिला। इसी तर्ज पर हरिकिशोर प्रसाद भी शिकायत करते हुए कहते है कि जब किसी योजना से उनको शौचालय नहीं मिला तो अब खुद बनवाना शुरू किया है। पूर्व वार्ड मेंबर प्रदीप कुमार भी इन ग्रामीणों की बात का समर्थन करते हुए कहते है कि उनके घर पहले से शौचालय था इसलिए इस योजना के तहत उन्होंने आवेदन ही नहीं किया। फिलहाल 10 वार्डों व लगभग आठ हजार की आबादी वाली इस पंचायत के त्रिस्तरीय पद (मुखिया, सरपंच व पंचायत समिति) अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षित है। यहां की वर्तमान मुखिया शांति देवी है। उन्होंने बीडीओ से गांव में शौचालय बनाने की गुहार लगाई है। इसको लेकर जब पंचायत की पड़ताल की गई तो चौकाने वाली सच्चाई सामने आई।
मुखिया शांति देवी सहित कई लोग कागजों पर खानापूर्ति करने का भी आरोप लगाते हैं। मौजूदा मुखिया की भी यही व्यथा है कि निर्मल ग्राम की वजह से प्रधानमन्त्री स्वच्छता मिशन के तहत बनने वाले शौचालय उनके पंचायत में नहीं बन रहे हैं, जबकि पुराने शौचालय कब के ध्वस्त हो चुके हैं। प्रभारी बीडीओ का कहना है कि पहले सर्वे कराया जायेगा कि किन घरों में शौचालय है अथवा नहीं है? इसके उपरांत कार्रवाई की जायेगी। पंचायत के वार्ड एक की वार्ड सदस्य मंजू देवी बताती है कि एक हजार की आबादी वाले उनके वार्ड में मात्र चार शौचालय हैं। इसके अभाव में महिलाएं घर से बाहर कई तरह की परेशानियों का सामना करते हुए शौच करने जाती हैं। सड़क के किनारे शौच के कारण संक्रामक बीमारियों का भी खतरा रहता है।
2008 की मुखिया रही बच्ची देवी की मौत हो चुकी है। उनके पति शम्भू प्रसाद ग्रामीणों के आरोप को ख़ारिज करते हुए कहते हैं कि उस समय जिन ग्रामीण के पास पूर्व से शौचालय था उनको छोड़कर सबका शौचालय बनवाया। पंचायत में 1100 शौचालय का निर्माण हुआ। शम्भू बताते है कि मुखिया बच्ची देवी को अवार्ड तो मिला, लेकिन निर्मल ग्राम के लिए मिलने वाला पाँच लाख की प्रोत्साहन राशि नहीं मिली। अगर यह राशि मिली होती तो शौचालय को मेंटेन रखने में मदद मिलती। जिस समय मेरा पंचायत निर्मल ग्राम घोषित हुआ उस समय मात्र 1200 रुपये प्रोत्साहन राशि मिलती थी जिससे किसी तरह सीट बैठाकर टाट फूस की दीवार खड़ी कर दी गयी। कई लोगों ने इसे मेंटेन रखा लेकिन बहुत से लोग कि आदतों में स्थायी परिवर्तन नहीं आने से इसका रख-रखाव नहीं हो सका और अधिकांश शौचालय ध्वस्त हो गए हैं। 2008 के बाद से हमारे पंचायत को इस तरह की योजनाओं का लाभ लेने से यह कह कर वंचित किया जाता रहा कि आपका पंचायत तो पूर्व में ही निर्मल हो चुका है।
इस बाबत विभगीय अधिकारी बताते हैं कि निर्मल ग्राम पुरस्कार तो शौचालयों के निर्माण पर दे दिया जाता है। लेकिन प्रोत्साहन की राशि देने से पहले केंद्र की टीम आकर उस पंचायत का मुआयना करती है। शौचालय के रख-रखाव व लोगों के आदतों में बदलाव का आकलन करती है। इस मानक पर खरा नहीं उतरने की वजह से इस पंचायत को प्रोत्साहन की राशि नहीं मिली। बहरहाल, राज्यस्तरीय व राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार अर्जित कर चुके पंचायत हरपुर राय की मौजूदा तस्वीर सालनेवाली है।
कुणाल प्रताप सिंह। एमएस कॉलेज मोतिहारी के पूर्व छात्र। समाजसेवी और पत्रकार। इन दिनों इंडिया टुडे से जुड़े हुए हैं। हिंदुस्तान, प्रभात खबर और चौथी दुनिया के साथ भी पत्रकारिता के अनुभव बटोरे। लोक अदालत के सदस्य के बतौर सैंकड़ों छोटे-मोटे झगड़ों के निपटारे में अहम भूमिका निभाई।