गांव विकास की दवा के लिए छटपटा रहा है सीएम साहब !

दिवाकर मुक्तिबोध

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्श गांव का सपना कब साकार होगा ये ना तो हमारी सरकारें बता पा रही हैं और ना ही देश की जनता । ये अलग बात है कि कि गांव के नाम पर ‘आदर्श’ सियासत जरूर होती है । अब विधायकों एवं सांसदों को गांव अलाट किए गए हैं, लेकिन क्या उनकी तस्वीर थोड़ी बहुत बदली? सभी सवालों का जवाब है-कहीं कुछ-कुछ बदला, कहीं कुछ भी नहीं बदला, बदला तो केवल शहरों का नजारा । अब तो स्मार्ट सिटी बन रही है । रायपुर को ही ले लीजिए । नया रायपुर देखकर तो ऐसा लगता है जैसे छत्तीसगढ़  में विकास की गंगा बह चली है । देश की राजधानी दिल्ली या मेट्रो से जो भी अति महत्वपूर्ण व्यक्ति रायपुर आते हैं, विकास को देखकर गद्गद् हो जाते हैं। तारीफ के पुल बांधते हैं और  इसका पूरा श्रेय राज्य की भाजपा सरकार और उसके मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को देते हैं। और तो और केन्द्र में यूपीए सरकार के जमाने में भी छत्तीसगढ़ के दौरे पर आने वाले कांग्रेसी और गैरकांग्रेसी मंत्री भी मुख्यमंत्री और राज्य की प्रगति की तारीफ करते अघाते नहीं थे।

ramanपिछले दिनों देश के मुख्य न्यायधीश भी छत्तीसगढ़ एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आये थे । यहां चमचमाती चौड़ी सड़कें, ऊंची-ऊंची खूबसूरत इमारतें, हरे-भरे पेड़-पौधे उन्हें आनंदित करने के लिए काफी थे। यह सब देखकर उन्होंने कहा- ”छत्तीसगढ़ को बाहर के लोग गरीब और पिछड़े राज्य के रूप में देखते हैं पर ऐसा नहीं हैं।‘’ लिहाजा रायपुर की मुकम्मल तस्वीर यही बनती है कि जिस प्रदेश की राजधानी इतनी खूबसूरत हो, वह पिछड़ा और गरीब नहीं हो सकता । लेकिन रायपुर को देखकर पूरे प्रदेश के बारे में राय नहीं बनाई जा सकती। अंदर के हालात काफी खराब हैं। वो आजादी के 68 वर्षों के बाद भी छत्तीसगढ़ के बदहाल गांवों से अनजान हैं । एक पूरी पीढ़ी बदहाली में मर गई, दूसरी, तीसरी, चौथी भी अभावों में जी रही है। पिछले 12 वर्षों से मुख्यमंत्री एवं मंत्री गांवों की स्थिति का जायजा लेने हफ्ते दस दिन का सम्पर्क अभियान चलाते हैं पर क्या उन गांवों की हालत सुधरी ?

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दिव्यांग बेरोजगार ने आत्मदाह की कोशिश की

आंकड़े बताते हैं कि गरीबी बढ़ी है, बेरोजगारी बढ़ी है, किसानों की ऋणग्रस्तता, ऋण अदा न कर पाने की स्थिति, व्याप्त निराशा और आत्महत्याएं की घटनाएं भी बढ़ी हैं। उच्च और प्राथमिक शिक्षा की दुरावस्था की अनेक कहानियां हैं जो सच है। प्राथमिक स्वास्थ्य भी बेहाल है। अधोसरंचना का विकास केवल चंद बड़े शहरों तक सीमित हैं। गांव अभी भी विकास से कोसो दूर हैं। बस्तर अभी बरसों से नक्सल दहशत में है। नक्सलियों के मारे जाने या उनके सरकार के सामने शरणागत होने के जितने भी दावे किए जाएं, पर समस्या रंच मात्र भी कम नहीं हुई है। आधारविहीन सुविधाओं वाले गांवों की लंबी फेहरिस्त है। जिस पी.डी.एस सिस्टम की देशव्यापी तारीफ हुई, वह किस कदर भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबा हुआ है, यह बहुचर्चित नान घोटाले से जाहिर है। बहुतेरे आदिवासियों का अभी भी राशन के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता है, नदी-नाले और पहाडिय़ों लांघनी पड़ती हैं। केन्द्र व राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं किनका कल्याण कर रही है, यह सर्वविदित है।

इतना सब होते हुए भी यह अलग बात है कि छत्तीसगढ़ को विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जाता रहा है। वर्ष 2015-16 की बात करें तो पुरस्कारों  की झड़ी लगी हुई है। एक के बाद एक फिलहाल एक दर्जन से ज्यादा पुरस्कारों की प्राप्ति हो चुकी है।,तो क्या इसे ही सच माना जाए ? कुछ भी मैनेजबल नहीं ? जैसा कि आमतौर पर पुरस्कारों  के मामलों में देखा जाता रहा है।

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जलने के बाद सीएम साहब को आई याद

इसमें कोई शक नहीं कि  पिछले 12 वर्षों में यानी भाजपा सरकार के दौर में जो अभी जारी है, कम से कम रायपुर की तो कायापलट हो गई है। विवेकानंद एयरपोर्ट पर उतरते ही उसकी सुंदरता देखकर आंखें फट जाती हैं। गज़ब का विमानतल। बेहद सुंदर। फिर नया रायपुर के क्या कहने। ऐसी दिलकश आधारभूत संरचनाएं, जो भी देखता है, तारीफ किए बगैर नहीं रहता। नए के साथ पुराना रायपुर भी तो बदल गया है।

ऐसे में सवाल है कि एक आदर्श गांव आखिर कैसा होना चाहिए । एक आदर्श ग्राम की तस्वीर क्या हो सकती है। गांवों में भी पक्की सड़कें, नालियां, प्राथमिक अथवा उच्च माध्यमिक स्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक व माध्यमिक शालाएं, उनके भवन, शुद्ध एवं स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था, श्रमदान से बने तालाब, पहुंच मार्ग, बरसात में गांव टापू न बने ऐसी व्यवस्था और कुटीर उद्योग। क्या इतने बरसों में छत्तीसगढ़ के कुछ गांव ऐसी तस्वीर पेश नहीं कर सकते थे ? नहीं तो मंत्रियों, नेताओं व अफसरों के ग्राम जनसम्पर्क अभियान से क्या फायदा! क्या औचित्य।

अंत में एक बात और कही जा सकती है। क्या हमारी सरकार बाहर से आने वाले अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को नई राजधानी की सैर कराने के साथ-साथ ग्राम दर्शन भी करा सकती है ? कोई एक गांव! क्या सीएम साहब ऐसा साहस जुटा सकते हैं ? ऐसे दौरे से जो तस्वीर बनेगी वह सच्ची प्रगति की सूचक होगी। तब मेहमानों की वास्तविक प्रतिक्रिया सामने आएगी। फिर इस योजना से कम से कम इतना फायदा तो होगा, उस गांव का उद्धार हो जाएगा। वैसे ही जैसे जब राष्ट्राध्यक्ष या प्रधानमंत्री दौरे पर आते हैं और जिस मार्ग से गुजरने को होते हैं तो रातों-रात उसकी तस्वीर बदल जाती है। सड़कें चकाचक हो जाती हैं। हमारे गांव इस तरह भी बदले, तो क्या बुरा है।


diwakar muktibodhदिवाकर मुक्तिबोध। हिन्दी दैनिक ‘अमन पथ’ के संपादक। पत्रकारिता का लंबा अनुभव। पंडित रविशंकर शुक्ला यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। संप्रति-रायपुर, छत्तीसगढ़ में निवास।