जौनपुर के सेहमलपुर गांव से एपी यादव की रिपोर्ट।
सई और गोमती नदी के दोआब पर बसा है, मेरा प्यारा और हरा-भरा गांव-सेहमलपुर। नदियां इसकी आत्मा हैं तो पास से गुजरने वाली रेलवे लाइन इसकी धड़कन। गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बना हाइवे सीधे सूबे की राजधानी से लोगों को जोड़ता है। कहने का मतलब गांव की चौहद्दी पर वो सब कुछ मौजूद है जो किसी भी गांव के विकास के लिए जरूरी है, लेकिन गांव के भीतर जाने पर तस्वीर कुछ अलग ही मिलती है।
गांव में दाखिल होते ही हरा-भरा बागीचा मिलता है, जिसके बीच से होकर गुजरती है एक पक्की सड़क। इसकी मरम्मत दो-चार साल में एकाध बार अधिकारियों की मेहरबानी से हो पाती है। इसी सड़क के पास बना है एक उपस्वास्थ्य केंद्र। कहने के लिए तो ये गांव के गरीब और बीमार लोगों के इलाज के लिए बना है लेकिन इसकी हालत खुद किसी बीमार से कम नहीं। पहली दफा देखने से लगेगा ही नहीं कि ये कोई स्वास्थ्य उपकेंद्र है। हर तरफ कूड़े का ढ़ेर लगा है।
अस्पताल के नाम पर एक बिल्डिंग बनी है, लेकिन उसके बाहर और भीतर की दशा किसी कूड़ा घर से कम नहीं। डॉक्टर और मरीजों के बैठने की जगह कूड़े ने ले रखी है। किचन भी मानो बीमारियां फैलाने वाले वैक्टीरिया का अड्डा बन गया हो । मरीजों के पीने के पानी का इंतजाम तो किया गया है, लेकिन स्वास्थ्य केंद्र से प्यासे लौटना ही लोगों की मजबूरी है। आप अस्पताल की हालत देख कर बस कल्पना करते रहिए कि कब डॉक्टर यहां आते हैं और कब मरीज।
हकीकत हमने बयां कर दी, अब सरकारी फाइलों की बात कर लें… क्योंकि उनका सच हमेशा से थोड़ा अलहदा होता है। गांव की स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में जब हमने प्रशासन से जानकारी मांगी तो वो बेहद चौंकाने वाली रही।
मुख्य चिकित्साधिकारी जौनपुर की ओर से जो जानकारी दी गई उसके मुताबिक सेहमलपुर गांव में एक उपस्वास्थ्य केंद्र है, जिसमें एएनएम (नर्स) की तैनाती की गई है जिसके लिए सरकारी आवास मुहैया कराया गया है। इस बारे में जब गांव के प्रधान से बात की गई तो उन्होंने नर्स की तैनाती के मुद्दे पर हामी तो भरी लेकिन शिकायतों के पिटारे के साथ। गांव प्रधान के मुताबिक उप स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली को लेकर शिकायत तो कई बार की लेकिन सुनवाई कहीं नहीं हुई।
ये रिपोर्ट तो सिर्फ एक नज़ीर हैं। ऐसे अनगिनत गांव हैं जिनकी हालत सेहमलपुर से जुदा नहीं।
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