पुष्यमित्र
बदल रहा है मड़वन खुर्द
तो क्या महज साढ़े चार महीने की शराबबंदी ने गांव का कायाकल्प कर दिया? क्या यह मुमकिन है? जब इस गांव की दूसरी यात्रा पर जा रहा था, तब भी मन में एक संशय था। लग रहा था कि दूसरे गांव बदल सकते हैं, मगर आकंठ शराब के नशे में डूबा रहने वाला यह गांव इतनी आसानी से नहीं बदल सकता। लोग चोरी-छिपे शराब पी ही लेते होंगे, शराब नहीं मिलती होगी तो दूसरे मादक पदार्थों का सहारा लेने लगे होंगे और नहीं तो चुप-चाप घरों में पड़े रहते होंगे। मगर गांव निरोग हो जायेगा, यह सोचना भी मुमकिन नहीं लग रहा था।
पहली मुलाकात मीना देवी से हुई। उनके चेहरे पर सहज ही मुस्कान खिल उठी। कहने लगी, आप लोगों की दुआ का फल मिल गया है। अब ठीक हो गये हैं, ड्यूटी पर जाने लगे हैं, नशा की आदत भी छूट गयी है। यही मीना देवी पिछली मुलाकात में फूट-फूट कर रोने लगती थीं। उनके पति गुरुशरण सिंह जो होमगार्ड के जवान थे, शराब की लत की वजह से नौकरी पर जाना छोड़ दिया था। रोज सुबह चार बजे से पीना शुरू कर देते थे। पीने के चक्कर में जमीन-जायदाद सब बेच दिया। इसकी वजह से घर में रोज झगड़ा होता था, मार-पीट, तोड़-फोड़। परिवार हमेशा मानसिक संत्रास की स्थिति में रहता था। मीना देवी कहने लगीं, पहले कुछ दिन परेशानी हुई। झूठ नहीं कहूंगी, कुछ दिन तो बेटा कैंटीन से लाकर उनको चोरी-छिपे शराब भी पिलाता रहा कि कहीं ज्यादा परेशानी न हो। अचानक थरथरी आ जाती थी, एक डॉक्टर से भी दिखाये और उनकी दवा चली। मगर धीर-धीरे सब ठीक हो गया। नौकरी पर जाते हैं और जो पैसा मिलता है मेरा हाथ में धर देते हैं। अब हमको और क्या चाहिये।
उनके पास बैठे गांव के बुजुर्ग रामनंदन सहनी कहते हैं, इनके पति के ठीक होने से सबसे बड़ा लाभ उन्हें हुआ है। क्योंकि रोज रात इनके घर में हंगामा मचता था और हमारी नींद उचट जाती थी। रामनंदन सहनी उनके पड़ोसी हैं। वे कहते हैं, शराबबंदी से इस गांव के घर-घर में शांति का माहौल हो गया है। रोज शाम से रात तक जो झगड़ा-झंझट और मार-पीट होता थी वह बंद हो गई है। पति-पत्नी में मेल हो गया है, दोनों एक तरीके से सोचने लगे हैं, ऐसे में तो घर आगे जायेगा ही। गांव की पूर्व वार्ड सदस्य लाल परी देवी कहती हैं, सिर्फ चार-छह लोगों को परेशानी हुई है, जो शराब बेचते थे, भट्ठी चलाते थे और चखना का दुकान चलाते थे। बाकी सारे लोग खुश हैं। अब कहीं-कहीं चोरी-छिपे शराब बिकती है, मगर गरीब लोगों के हाथ में इतना पैसा नहीं कि उसको खरीद कर पी सकें। यह डर भी रहता है कि कहीं पकड़े गये तो जिंदगी बरबाद हो जायेगी। इसलिए थोड़ा कष्ट सह लेते हैं। जिनको आदत थी उनको थोड़ी परेशानी रहती है, मगर धीरे-धीरे सब लोग एडजस्ट कर गये हैं।
(साभार-प्रभात ख़बर)
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।
“सही चीज पीते तो मैं खुद पैग बनाकर देती” पढ़ने के लिए क्लिक करें