मुकेश पांडेय
यह कहानी रोहतास जिले के चांदी पंचायत की है। अकोढ़ी गोला प्रखंड में पड़ने वाले इस पंचायत की मुखिया देवंती देवी ने गांव के महिलाओं के साथ मुहिम चला कर शराब के सरकारी ठेके को बंद करा दिया। ये महिलाएं पिछले पांच साल से इलाके में लगातार मुहिम चला रही हैं। इसकी वजह से इस पंचायत में शराब पीने वालों की संख्या में 80-90 फीसदी की कमी आ गई। लोगों के शराब छोड़ने की वजह से यह गांव खुशहाली की तरफ बढ़ चला। लोग खुश हैं कि बिहार सरकार ने शराबबंदी की घोषणा कर दी, इसकी वजह से जो थोड़े से लोग अभी भी यहां-वहां से शराब लाकर चोरी-छिपे पी रहे थे, उन पर भी रोक लग गई और चांदी पंचायत पूरी तरह से शराबमुक्त हो गया।
चांदी की मुखिया देवंती देवी बताती हैं, गांव में देसी शराब की दुकान खुलने से पहले यहां शराब पीने वालों की संख्या कम हुआ करती थीं। मगर दुकान खुलते ही शराब की लत ने कई लोगों को चपेट में ले लिया। इसका नुकसान यह हुआ कि लोगों की मेहनत-मजदूरी का बड़ा हिस्सा शराब पीने में खर्च होने लगा और घर परिवार में अशांति का माहौल बनने लगा। चूंकि उनका महिलाओं के साथ नियमित उठना-बैठना था। उनके पास ऐसे किस्से आने लगे कि फलां महिला के साथ उसके पति ने पिटाई की है, या फलां के बच्चों के साथ उसके पिता से मार-पीट की है। उन्हें लगा कि ऐसे माहौल में चुप बैठना ठीक नहीं है। यह शराब की दुकान ही उनके पंचायत में होने वाली अशांति की जड़ है, इसे बंद कराना ही पड़ेगा।
गांव की कमला देवी कहती हैं, ऐसे में देवंती देवी के नेतृत्व में गांव की पीड़ित महिलाओं का संगठन बना और उन लोगों ने देसी शराब की दुकान को बंद कराने की मुहिम छेड़ दी। इस संगठन की सौ से डेढ़ सौ महिलाओं ने पहले जाकर प्रखंड विकास पदाधिकारी को आवेदन दिया और कहा कि दुकान बंद करायी जाये। मगर वहां उनके आवेदन पर सुनवाई नहीं हुई। फिर उन लोगों ने डेहरी ओन सोन स्थित एसडीएम कार्यालय पहुंच कर आवेदन दिया, जो उनके पंचायत से दस किमी की दूरी पर स्थित है। वहां भी कोई कार्रवाई नहीं हुई तो महिलाएं 10 फरवरी 2011 को डीएम के आफिस पहुंच गयीं। वहां डीएम ने उन्हें आश्वासन दिया कि बहुत जल्द शराब की दुकान को बंद करा दिया जायेगा।
राजपातो कुंवर बताती हैं कि यह सब कार्रवाई हो रही थी मगर वक्त लग रहा था। एक दिन सभी महिलाएं सीधे दुकान पर पहुंच गयीं। सबकी इच्छा थी कि दुकान पर ताला लगा दिया जाये। इधर महिलाएं पहुंची तो उधर प्रशासन के लोग भी पहुंच गये। उन्हें समझा-बुझा कर वापस भेजा गया और अंत में महिलाओं की जीत हुई और दुकान को बंद करा दिया गया। मंजू देवी, सुनीता देवी, अनीता देवी, कलावती देवी, मीना देवी, ललिता देवी, सुखिया देवी, मालती देवी, सोनी देवी, पूनम देवी और सरिता देवी उन महिलाओं में से थीं जिन्होंने इस आंदोलन में हिस्सा लिया और लगातार डटी रहीं। वे बताती हैं, कि यह महिलाओं की एक बड़ी जीत थी। इससे पंचायत में काफी बदलाव आया. धीरे-धीरे ज्यादातर लोगों का पीना छूट गया। महिलाओं की सक्रियता की वजह से गांव में यह माहौल भी बना कि शराब पीना ठीक बात नहीं है। मगर इसके बावजूद कई लोग बाहर से चोरी-छिपे गांव आ जाते थे। कई दुकानदार चोरी-छिपे शराब बेचते भी थे। महिलाओं ने उन लोगों को भी गांव में बेइज्जत करना शुरू किया। कुछ लोगों ने अपने घर में गांजे का पौधा लगा कर रखा था, महिलाओं ने उसे भी उखाड़ कर फेंक दिया।
इस तरह चांदी पंचायत में लगभग पूरी तरह शराब बंदी हो गई। महिलाएं बताती हैं कि इस बंदी से काफी सकारात्मक असर पड़ा। अब मेहनत मजूरी का चार पैसा घर में आने लगा तो घर की हालत सुधरने लगी। बच्चे पढ़ने जाने लगे। परिवार का माहौल बेहतर होने लगा। धीरे-धीरे पुरुषों ने भी स्वीकार किया कि महिलाओं ने शराब के खिलाफ आंदोलन चला कर अच्छा काम किया।
महिलाओं के इस आंदोलन में 47 साल के जय कुमार की भूमिका भी काफी अहम रही है। पहले ये खुद काफी शराब पीते थे। शराब पीने की वजह से ही वे लकवा के शिकार हो गये। उसके बाद उन्होंने न सिर्फ खुद शराब छोड़ दी, बल्कि तय किया कि वे दूसरे लोगों को भी शराब नहीं पीने के लिए प्रेरित करेंगे। लकवे की वजह से उन्हें चलने फिरने में परेशानी होती थी, तो उन्होंने डंडा उठाया और गांव में घूम-घूम कर लोगों को समझाने लगे कि शराब मत पियो, मुझे देखो। वे कहते हैं, पहले तो उनके पीठ पीछे लोग हंसते थे। कई लोग ताना भी देते थे। मगर अपने अभियान में जुटे रहे। बाद में इसका नतीजा सामने आने लगा। आज वे लोग खुश हैं, जो उनकी समझाइश पर शराब छोड़ चुके हैं।
साभार- प्रभात खबर
मुकेश पांडेय। डेहरी ओन सोन से प्रभात खबर के लिए रिपोर्टिंग कर रहे हैं। फिलहाल बिहार का रोहतास जिला है, इनका निवास।
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