टीम बदलाव
ईमानदारी जिसकी आत्मा है और सच्चाई जिसकी ताकत । हम बात कर रहे हैं देश के नौनिहाल IAS अफसर रवि यादव की । उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर जिले के देवलसा गांव में किसान परिवार में जन्मे रवि यादव ने UPSC की परीक्षा में 184वीं रैंक हासिल की है । 25 किमी तक साइकिल से चला कर कॉलेज जाने वाले रवि के IAS बनने का सफर बहुत मुश्किलों भरा रहा है। इलाहाबाद में सिविल की तैयारी के दौरान जली-भुनी रोटी खाकर और कभी-कभार खाली पेट रात बिताने वाले रवि ने दूसरे प्रयास में IAS के इम्तिहान में बाजी मार ली । गांव के लोगों के लिए कुछ अलग करने की चाहते रखने वाले रवि ने बदलाव की टीम से दिल खोलकर बातें की
बदलाव- IAS बनने का ख्याल कब आया ?
रवि- बचपन से ही अफसर बनने का सपना था, लेकिन IAS क्या होता है न मुझे पता था न परिवार के लोगों को। हां चाचा जी समझाने के लहजे में इतना जरूर बताते कि बचवा पढ़ लिखकर कलक्टर बन जाओ सब समझ जाओगा । थोड़ा बड़ा हुआ गुरुओं का सहयोग मिला और 10वीं तक जाते-जाते IAS का मतलब समझ आने लगा, और यहीं से शुरू हुई IAS बनने सपने को हकीकत में बदलने की शुरुआत ।
बदलाव- शुरुआती पढ़ाई-लिखाई किस स्कूल से की ।
रवि- गांव में पढ़ाई का एक मात्र विकल्प था सरकारी प्राइमरी स्कूल, लिहाजा घर वालों ने दाखिला करा दिया और मैं पढ़ता और बढ़ता चला गया । इंटर मीडिएट तक गांव के आसपास के स्कूल में ही पढ़ाई की, लेकिन ग्रेजुएशन के लिए नजदीक कोई विकल्प नहीं था, लेकिन आगे की बढ़ाई पूरी करने की चाहत थी सो घर वालों का साथ मिला और गांव से 25 किमी. दूर एक कॉलेज में बीकॉम में दाखिल लिया ।
बदलाव- कॉलेज जाने के लिए क्या कोई साधन था, इतनी दूर कैसे जाते थे ?
रवि- गांव से कॉलेज की सीधी कनेक्टिविटी कोई नहीं थी, थोड़ी दूर जाने पर गाड़ी मोटर जरूर मिल जाती लेकिन इतना पैसा नहीं रहता कि हर रोज सवारी कर सकू । इसलिए घर से 25 किमी दूर कॉलेज साइकिल से जाने का फैसला किया ।
बदलाव- सिविल की तैयारी कहां से की और इसके लिए कितना संघर्ष करना पड़ा ?
रवि- साल 20011 मेरे जीवन का वो पल था जब मैं पहली बार तैयारी के लिए शहर की ओर चल पड़ा । पूरी पढ़ाई गांव में बीती लिहाजा न तो शहर की जानकारी थी न वहां के रहन सहन की, लेकिन बीकॉम की पढ़ाई के दौरान इलाहाबाद में सिविल की तैयारी होती है ऐसा सुना था, इसलिए पढ़ाई पूरी करने के बाद इलाहाबाद चल दिया ।
बदलाव- इलाहाबाद में क्या कोई जान पहचान का रिश्तेदार या साथी रहता था ?
रवि- नहीं, न कोई दोस्त था न रिश्तेदार । 2011 में तैयारी के लिए जब पहली बार इलाहाबाद पहुंचा तो विल्कुल अकेला था, रहने का कोई ठिकाना नहीं था । इलाहाबाद पहुंचने रात हो गई थी, सोचा कहां भटकूंगा फिर तय किया कि स्टेशन पर ही रात गुजारता हूं सुबह देखा जाएगा । लिहाजा स्टेशन पर ही सो गया । सुबह उठा और ठिकाने की तलाश में निकल पड़ा । कर्नलगंज में एक 1800 रुपए किराए पर एक रूम लिया, रेंट थोड़ा ज्यादा था लेकिन उससे सस्ता कोई और नहीं मिला । रहने के लिए छत का ठिकाना हो गया था सो कोचिंग की तलाश में निकल पड़ा । काफी तलाश करने के बाद एक सस्ता और अच्छा सा कोचिंग सेंटर मिल गया और तैयारी शुरू कर दी ।
बदलाव- IAS बनना एक मात्र लक्ष्य था या फिर एक-एक पायदान आगे बढ़े ?
रवि- सपना IAS बनने का था, तैयारी भी वही चल रही थी लेकिन माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी इसलिए कोचिंग के टीचर्स ने सलाह दी कि पहले की एक नौकरी हासिल कर लो फिर सिविल की तैयारी करते रहो । IAS और SSC का पैटर्न देखा तो ज्यादा अंतर नहीं लगा इसलिए फैसला किया कि एसएससी की परीक्षा में बैठूंगा । बीकॉम का स्टूडेंट रहा लिहाजा ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा और किस्मत ने भी साथ दिया, 16 अक्टूबर 2011 को परीक्षा दी और जनवरी 2012 में मेन्स देने का मौका मिला किस्मत ने साथ दिया और 16 मई को जब रिजल्ट आया तो पता चला कि मैं लेखाधिकारी बन गया । 15 मार्च 2013 को इलाहाबाद ही ज्वाइन कर लिया । कुछ दिन बाद एजी ऑफिस में शिफ्ट दिया गया और फैजाबाद का भी चार्ज दे दिया गया । IAS की तैयारी नहीं छोड़ी ।
बदलाव- इलाहाबाद से फैज़ाबाद का सफर और सिविल की तैयारी, वक्त कैसे निकाल पाते थे ?
रवि- थोड़ा मुश्किल जरूर था फिर भी कैसे भी करके रात में 6-7 घंटे निकाल ही लेता था । ऑफिक का काम निपटाने के बाद रात 8 बजे पढ़ने बैठता तो सुबह करीब 3 से 4 बजे तका पढ़ाई का सिलसिला जारी रहता । कब नींद आ जाती पता भी नहीं चलता । कई बार ऐसा हुआ कि बिना खाये ही सोना पड़ा ।
बदलाव- क्या आपने पहले प्रयास में ही सफलता हासिल कर ली ?
रवि- नहीं ये मेरा दूसरा प्रयास था, इससे पहले 2013 में इंटरव्यू तक पहुंचा था, शायद कुछ कमी रह गई थी जिस वजह से लेकशन नहीं सका, लेकिन मैं मायूस नहीं हुआ और नतीजा आपके सामने है।
बदलाव- जब रिजल्ट आया तो आप कहां थे और जानकारी कैसे मिली ?
रवि- उस वक्त मैं गांव में ही था । इंटरनेट की कोई सुविधा नहीं थी, लिहाजा पास में ही गांव के एक चाचा जी की दुकान थी । उनके यहां अखबार आया करता था, लिहाजा सबसे पहले उन्होंने ही जानकारी दी और पूरा परिवार खुशी से झूम उठा ।
बदलाव- गांव के लोगों में क्या प्रतिक्रिया थी, क्या इससे पहले कोई IAS बना था ?
रवि- नहीं मैं अपने गांव का पहला IAS बेटा हूं । यही नहीं पूरे जिले में इससे पहले कोई आईएएस अफसर नहीं रहा । हालांकि इसबार मेरा साथ जिले में दो और बच्चों ने सिविल परीक्षा में सफलता हासिल की है । हालांकि मेरे गांव के कुछ लोग मेरी सफलता पर संदेह जरूर कर रह थे लेकिन जब जिलामुख्यालय से आधिकारिक सूचना आई तो सभी को यकीन हो गया । फिर क्या था हर दिन पूरे गांव से बधाइयां मिलने लगीं और जश्न मनने लगा ।
बदलाव- आप पहली पोस्टिंग कहां चाहेंगे ?
रवि- गांव के हर दुख दर्द को मैंने करीब से देखा है, मेरी चाहत ग्रामीण इलाकों में गरीब और बेसहारा लोगों के लिए कुछ करने की है ।
बदलाव- गांव की मौजूदा पढ़ाई-लिखाई की प्रणाली के बारे में क्या सोचते हैं ?
रवि- मैं सरकारी स्कूल में पढ़कर इस लायक बना हूं । मुझे नहीं लगता कि स्कूल में सिर्फ ढेरों सुविधाएं देने से पढ़ाई अच्छी होती है । टीचर अच्चे हों तो कहीं भी बेहतर पढ़ाई हो सकती हैं ।
बदलाव- शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए क्या करना चाहिए ?
रवि- मेरी समझ से सबसे पहले टीचरों को बच्चों को डांटने का हक मिलना चाहिए। अगर टीचर बच्चों से सख्ती से पेश नहीं आएगा तो बच्चे रास्ता भटक सकते हैं । कोई भी टीचर बच्चों का बुरा नहीं सोचता । हां एक बात और है, गांवों में अभिभावकों को भी बच्चों की पढ़ाई को लेकर सजग होना पड़ेगा । गांवों में घरवाले कामकाज के चक्कर में बच्चों का ख्याल नहीं रख पाते यही नहीं घर का काम कराने के लिए स्कूल भी छुड़वा देते हैं । जो बच्चों के लिए ठीक नहीं । बच्चे अच्छे से पढ़ेंगे तभी कुछ बन सकते हैं ।
बदलाव- गांव के बच्चों को क्या सुविधाएं मिलनी चाहिए ?
रवि- गांव में सबसे बड़ी समस्या लाइट की होती है, 3-4 घंटे से ज्यादा बिजली आती नहीं । मैंने दीये की रौशनी में पढ़ाई की । कभी कभार तो केरोसिन भी घर में नहीं रहता तो मां सरसरो के तेल का दीया बनाकर उजाला करती थी । इसलिए मैं चाहता हूं कि गांवों में बिजली की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए । कम से कम शाम को तो जरूर बिजली चाहिए ताकि बच्चे पढ़ाई कर सकें । बच्चों के लिए गांवों में लाइब्रेरी की व्यवस्ता होनी चाहिए । प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा के लिए स्कूल-कॉलेज होने चाहिए ताकि बच्चों को दूर न जाना पड़े । खासकर लड़कियों को इससे काफी सहूलियत मिलेगी।
बदलाव- गांवों में रोजगार सबसे बड़ी समस्या है, ऐसे में स्किल डेवलेपमेंट गांव के लिए कितना मददगार होगा ?
रवि- मेरा मानना है कि पढ़ेगा इंडिया तभी बढ़ेगा इंडिया । बेहतर शिक्षा के साथ हुनर को तरासने की व्यवस्था बेहद जरूरी है । गांवों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं, लेकिन प्रशिक्षण के अभाव में धूल जमी है । स्किल डेवलपमेंट स्कीम धूल की परत को साफ करने में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है ।
बदलाव- डिजिटल इंडिया स्कीम के बारे क्या सोचते हैं ?
रवि- ये एक अच्छी पहले हैं, इससे गांवों में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है, लेकिन जरूरत है कि इसे वास्तविकता के धरातल पर उतारा जाए । सरकारें स्कीम बनाकर भूल जाती हैं और कुछ दिन बाद उसी से मिलती जुलती नई योजना आ जाती है । ऐसे में सिर्फ पैसे की बर्बादी होती है और कुछ नहीं । ऐसा नहीं है कि इस दिशा में पहले कोई काम नहीं हुआ है लेकिन नतीजा क्या हुआ । सरकार की उदासीनता और अफसरों की बेरुखी से चंद लोग इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर लेते हैं और जरूरतमंदों तक फायदा नहीं पहुंच पाता ।
बदलाव- आपके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातें जो आप कभी नहीं भूल पाएंगे ?
रवि- (हंसते हुए) एक बार की बात है मैंने बैंक की नौकरी के लिए परीक्षा दी थी और पास भी हो गया था । इंटरव्यू के लिए कॉल भी आई लेकिन नहीं हो सका, क्योंकि मैंने रिश्वत नहीं दी । इंटरव्यू से पहले मेरी एक शख्स से मुलाकात हुई और कहा कि 6 लाख रुपये का इंतजाम करो मैं तुम्हार सलेक्शन करा दूगा । लेकिन ना ही मेरी हैसियत थी और न ही मेरे जमीर ने ऐसा करने की इजाजत दी । लिहाजा मैं इंटरव्यू छोड़ वापस गांव लौट गया और घरवालों को पूरी दास्तां सुनाई तो सबने एक सुर में यही कहा कि अच्छा किया । मेरा संयुक्त परिवार है । दादा-दादी, चाचा-चाची सभी ने मेरा हौसला बढ़ाया । अच्छा ही हुआ मैंने सच्चाई और ईमानदार का रास्ता चुना नहीं तो आज IAS नहीं होता ।
बदलाव- गांव के बच्चों के लिए कोई संदेश ?
रवि- मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि हिम्मत न हारिए, बिसारिए न राम को । हौसला रखिए और ईमानदारी से मेहनत कीजिए सफलता आपके कदम चूमेगी। अगर भूखे पेट सोने की नौबत आए तो बिचलती न होइए । मैंने जली-भूनी रोटी खाकर भी रात बिताई है लेकिन मंजिल से कभी नहीं भटका । यकीन मानिए जितना कष्ट होता उसका परिणाम उतना ही सुखद ।
बदलाव- इंटरव्यू के दौरान क्या कुछ ऐसा हुआ जो आपके लिए यादगार हो ?
रवि- जब मैं इंटरव्यू देने के लिए बोर्ड रूम में घुसा तो अचानक एक शख्स ने मेरे सामने टॉफी रख दी । मैं कुछ सोच पाता तबतक मेरा हाथ टॉफी की तरफ बढ़ गया मैंने टॉफी ले भी ली लेकिन फिर वापस कर दी। मैं सतर्क हो गया क्योंकि टीचरों से सुन रखा था कि इस तरह की कुछ हरकते हो सकती हैं लिहाजा मैंने जवाब के लिए खुद को तैयार कर लिया । बोर्ड के एक सदस्य ने पूछा आपने टॉफी वापस क्यों कर दी, इसके पहले मैं कुछ जवाब देता डरते डरते बड़ी शालीनता से पूछा, क्या मैं आपसे कुछ सवाल कर सकता हूं । बोर्ड के सदस्यों ने कहा बिल्कुल कहिए, मैंने पूछा सर ये बताइए अगर आप किसी पार्टी में गए हों और आपके सामने कोई ये जाने बिना सिगरेट बढ़ा दे तो क्या करेंगे ?, जबाव आया ठीक ऐसा ही जैसा आपने किया । ये कहकर बोर्ड से सदस्य मुस्कराने लगे और माहौल सामान्य हो गया । मेरे भीतर का डर भी निकल गया और आज मैं बतौर IAS सामने हूं ।
बदलाव- क्या कभी दिल्ली गए हैं, अगर हां तो गांव और देश की राजधानी में कितना फर्क देखते हैं ?
रवि- सिर्फ दो बार गया हूं और वो भी UPSC का इंटरव्यू देना के लिए ही । पहली बार दो 2013 में और इस बार । जब पहली बार गया तो देखता ही रह गया । मेरे लिए एक नई दुनिया थी । ऊंची-ऊंची बिल्डिंग्स । सरपट दौड़ती मेट्रो । हरपल टिमटिमाती लाइट्स । मन किया काश इसका कुछ हिस्सा गांवों को भी मिल जाता तो हमारे गांव में भी बदलाव आ जाता ।
बदलाव की टीम से बात करने के लिए आपने वक्त निकाला इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । हम आपकी उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं ।
Amitaabh Srivastava बदलाव की खातिर ये बदलाव बहुत अच्छा प्रयास है . इस से जुड़े सभी साथियों को ढेर सारी बधाइयाँ , शुभकामनायें और साधुवाद. सचमुच अच्छी और ज़मीनी पत्रकारिता , वो भी बिना किसी ताम झाम और शोर शराबे के . ये सादगी प्रशंसनीय है (फेसबुक से)
बहुत बेहतर आलेख है। मुझे 70 और 80 के दशक की सामाजिक पत्रकारिता और मैग्ज़ीन बरबस याद हो आए। भौंडपन और हसन की बकवास के बीच हिन्दी में इस तरह के प्रयास जेठ की दुपहरी में ठंडी बयार का अहसास देते हैं। साधुवाद कमलेश। बधाई बदलाव।
Keep it up…Kamlesh