एक वर्ष ने और विदा ली
एक वर्ष आया फिर द्वार
गए वर्ष को अंक लगाकर
नये वर्ष की कर मुनहार
आता है कुछ लेकर हर दिन,
जाता है कुछ देकर बोध।
मै बैठा चुपचाप देखता,
पनप रही पल-पल की पौध।।
जाने क्या पाया जीवन ने,
क्या खोया तू कर ले याद ।
सोचा जितनी बार हुआ है,
भीतर ही भीतर अवसाद ।।
जीत रहा हूं मैं जीवन को,
अथवा हार रहा हर बार ।
गए वर्ष को अंक लगाकर,
नए वर्ष की कर मुनहार।।
बांच रहा हूं भाग्य भवन को,
जिससे आगत का उपहार।
गए वर्ष को अंक लगाकर,
नए वर्ष की कर मनुहार।