अजीत अंजुम और मीडिया की ‘बैताल’ कथा

फेसबुक पर अजीत अंजुम की पोस्ट-एक

वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम।
वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम।

टीवी न्यूज़ चैनल्स पर भूत /प्रेत /रहस्य /रोमांच/ डायन/ चुड़ैल और परियों की वापसी हो गई है। कोई भूतों की खोज पर निकल पड़ा है तो कोई ‘अद्भुत, अकल्पनीय और अविश्वसनीय’ किस्से खोज रहा है। कोई आधी रात को किले में प्रेत की तलाश कर रहा है तो कोई रहस्यलोक की सैर कर रहा है। खोह/खंडहर/किला/मंदिर/पाताल/कुआं/धुआं/बाग/बगीचा। हर जगह होगी अब तलाश।

जबरदस्त कॉम्पिटिशन है। जिस दौर से निकले थे, उसी दौर में लौट रहे हैं। कई सालों बाद प्रेत मुक्ति मिली थी, फिर प्रेत बाधा के शिकार हो रहे हैं। सब रेटिंग की माया है। एक चैनल को रहस्य से रेटिंग क्या मिली, सब रहस्य कथाओं की तलाश में जुट गए हैं। देखिए कहाँ तक जाते हैं …

फेसबुक पर अजीत अंजुम की पोस्ट-दो

दस साल पहले जो Reporter cum Anchor न्यूज़ चैनल्स के ऐसे कंटेंट को गलियां देते थे / सभी संपादकों को कोसते थे , वो अब संपादक बनकर अपने चैनल पर भूत गाथा और परी लोक दिखा रहे हैं। चार महीने तक राधे माँ को अपनी पत्रकारिता का मूल मंत्र बनाकर बगुले लड़ाते रहे, जब उससे रेटिंग का मीटर घूमना बंद हो गया तो रहस्य रोमांच और भूतखेली में रेटिंग तलाश रहे हैं।

बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का
जो चीरा तो कतरा ए ख़ून न निकला

कई बार फेसबुक पर बड़े गंभीर मुद्दे उछल आते हैं। रविवार की छुट्टी हो और वरिष्ठ पत्रकार साथी कुछ बुनियादी मुद्दे उछाल दें तो सर्दी के मौसम में ‘विचारों’ का सिलसिला सुबह से शाम तक गुनगुनी सी तपिश बनाए रखता है। कुछ ऐसा ही मुद्दा छेड़ा है वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने। जाहिर है इस पर प्रतिक्रियाएं भी धुआंधार आईं। इस विमर्श को जारी रखने के लिहाज से कुछ चुनिंदा प्रतिक्रियाएं टीम बदलाव आपके लिए लेकर आई है।

पंकज चतुर्वेदी, पेशे से पत्रकार।
पंकज चतुर्वेदी, पेशे से पत्रकार।
कृष्णा श्रीवास्तव, वीडियो एडिटर।
कृष्णा श्रीवास्तव, वीडियो एडिटर।

पंकज चतुर्वेदी– जब हम मूल समस्‍याओं से मुंह मोड कर उन्‍हें अनदेखा करना चाहते हैं, हो सकता है कि वह प्रबंधन का दवाब हो ताकि किसी की आलेचना ना करना पड़े तो ऐसे ही छद्म मनोरंजन या सनसनी को परोसा जाता है।


 

कृष्णा श्रीवास्तव– जब नए आइडिया ख़त्म हो जाते हैं तो भूत-प्रेत-एलियन ही नज़र आते हैं, सब यू ट्यूब की माया है सर।


एक लाइन का पंच

  1. गोविंद चौधरी- कुछ चैनलों को भूत पर एक सीरियल ही बना लेना चाहिये। कम से कम जनता उसे सच तो नहीं मानेगी।

2. दिनेश मनसेरा- नेताओं से तो अच्छे ही हैं भूत प्रेत, कम से कम कांव काँव तो नहीं करते। Epic चैनल भी देखिये।

3. जर्नलिस्ट वरुण- ANI बंद हो तो पत्रकार कुछ काम करें,  बाइट पत्रकारिता से तो भूत पत्रकारिता ज्यादा बेहतर है।

4. उर्मिलेश उर्मिल- मुद्दा उठाया तो आगे बढ़ाइये, मैं साथ हूं।

5. सुनील मिश्रा- ये अविकसित मन का विकसित उपाय है, दोहन कह दूँ तो असहिष्णु होने का ख़तरा है, अंजुम भाई।

बहस फेसबुक पर जारी है… अजीत अंजुम ने मधुमक्खी के छत्ते में कंकड़ मार दिया है। कुछ उन्हें ही काट खाने पर आमादा हैं। बहरहाल मुद्दा केंद्रित बहस का ये सिलसिला चलता रहे, तभी तो ‘बदलाव’ होगा। तभी तो गांव की ख़बरें आएंगी, भूत-प्रेत को अलविदा कहने का वक़्त आएगा।


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