मुजफ्फरपुर /ब्रह्मानन्द ठाकुर।
प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में महर्षि वाल्मीकि को प्रमुख स्थान प्राप्त है। वे संस्कृत भाषा के आदि कवि व हिन्दुओं के आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं। महर्षि वाल्मीकि ने पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग,तप व यश की भावनाओं को महत्ता दी है। ये बातें नूतन साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने शनिवार को आयोजित वाल्मीकि जयंती समारोह में कही। साहित्य भवन कांटी में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि महर्षि कश्यप व अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी व भाई भृगु थे। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। नगर परिषद के उप सभापति अजय गुप्ता ने कहा कि रामायण समाज को तप,त्याग,प्रेम,कर्मठता व सामाजिक समरसता का संदेश देता है। परशुराम सिंह ने कहा कि एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे। परिवार के पालन के लिए लोगों को लूटा करते थे। बाद में महर्षि नारद की प्रेरणा के बाद अपने कर्म,त्याग व समर्पण से वे महर्षि वाल्मीकि के रूप में विख्यात हुए। स्वराजलाल ठाकुर ने कहा कि गल्प,मिथक व लोक कथाओं के मुताबिक हनुमान ने रामायण की रचना की थी। हालांकि इससे इतर महर्षि वाल्मीकि को रामायण की रचनाकार व आदिकवि कहा जाता है। चंद्रकिशोर चौबे ने महर्षि वाल्मीकि के जीवनी की काव्यमय प्रस्तुति दी। जयंती समारोह में उपस्थित लोगों ने महर्षि वाल्मीकि की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। मौके पर नगर परिषद उप सभापति अजय गुप्ता,पिनाकी झा, रामेश्वर महतो,महेश प्रसाद,नंदकिशोर ठाकुर,रामनाथ गुप्ता,शिवबालक राम,रजनीश कुमार आदि थे।