बिहार के तीन तिलंगे-व्हाट एन इलेक्शऩ सर जी!

शंभु झा

modi biharबिहार चुनाव को लेकर काफी कुछ कहा और सुना जा रहा है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भी इतनी गहमागहमी नहीं होती होगी जितनी बिहार इलेक्शऩ को लेकर है। आप मुझे निराशावादी कह सकते हैं लेकिन सच यही है कि बिहार में चुनाव पॉजीटिव नोट पर नहीं लड़ा जा रहा। दोनों खेमे छल-छद्म की चाशनी में वोटों की जलेबी छानने की कोशिश कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी… 17 महीने से प्रधानमंत्री हैं, लेकिन श्रीमान अब तक चुनावी मोड से निकले नहीं हैं। पिछले दो साल से उनका हर भाषण, उनका हर संबोधन सुनकर यही लगा कि यह चुनावी वक्तव्य है। इसलिए जब मोदी बिहार में चुनावी रैलियां करते हैं, तो उनके भाषण में लंबाई तो होती है लेकिन गहराई नहीं। मोदी की बातों में न कोई नयापन होता है, न कोई आकर्षण। न कोई गंभीरता, न कोई तथ्य। मोदी को न तो बिहार की समझ है और न वहां की मूलभूत समस्याओं की। मोदी 2014 वाला इंजेक्शन लगा कर 2015 का चुनाव जीतना चाहते हैं, लेकिन शायद वह इंजेक्शन एक्सपायर कर चुका है। इसीलिए सवा लाख करोड़ के ऐतिहासिक ‘पैकेज’ के बाद भी बिहार में मोदी कोई हवा नहीं बना पाए। एनडीए की नाव मोदी और मांझी के बाद भी मंझधार में फंसी है। कोई अचरज नहीं कि अगर यह मोदी के लिए बिहार चुनाव ‘पानीपत’ की  लड़ाई साबित हो।

nitish biharउधर, नीतीश कुमार भी सुशासन पुरुष से विडंबना पुरुष बन चुके हैं। इसमे कोई संदेह नहीं कि नीतीश कुमार से अच्छा सीएम इस वक्त बिहार को नहीं मिल सकता है (ये बात अलग है कि एनडीए के पास सीएम का कोई उम्मीदवार ही नहीं है)। हर ओपिनियन पोल में निर्विवाद रूप से नीतीश मुख्यमंत्री पद के लिए नंबर वन च्वाइस के रूप में उभरे हैं। नीतीश के काम-काज पर सवाल उठाते समय मोदी भी बहुत नकली और खोखले नजर आते हैं। लेकिन आम चुनाव की हार ने नीतीश कुमार के आत्मविश्वास को इतना तार-तार कर दिया कि वो लालू यादव की शरण में पहुंच गए। नीतीश के इस कदम से चुनाव का फोकस विकास से हटकर जंगलराज पर शिफ्ट हो गया। नीतीश भी यह सफाई देते देते परेशान हैं कि मुझे देखो- लालू को नहीं…जंगलराज नहीं आने दूंगा। नीतीश चाहे कुछ भी कह लें लेकिन महागठबंधन की जीत अगर होती है सबसे बड़ा सवाल उठेगा कि बिहार में नीतीश राज होगा या लालू राज?

जिस तरह मोदी इलेक्शन मोड से नहीं उबर पाए हैं, उसी प्रकार लालू यादव 1990 के दशक से बाहर निकल पाने में लाचार हैं। अगर मोदी पर लफ्फाजी और हवाबाजी का आरोप सही है तो लालू पर जंगलराज का इल्जाम भी गलत नहीं है। भारत की राजनीति में शायद ही कोई ऐसा नेता हो, जो पंद्रह साल तक सीएम रहा हो (राबड़ी तो स्टांप सीएम थीं, कोई शक!) लेकिन अंतत: उसने स्वयं को और अपने राज्य को एक मजाक बना दिया। एक चुभता हुआ मजाक। कलेजा छील देने वाला मजाक।

lalu-prasad-yadavदेश की राजनीति में लालू यादव से बड़ा राजनीतिक आत्महंता मैंने नहीं देखा। लालू यादव सामाजिक न्याय की तुरही बजाते हैं, लेकिन उनके शासन काल में अगर वह कथित सामाजिक न्याय मूवमेंट असामाजिक गुंडाराज में बदल गया और वह आतंकराज एक दशक से ज्यादा वक्त तक चलता रहा तो इसकी जिम्मेदारी से लालू कैसे बच सकते हैं?

यह लालू के अस्तित्व की लड़ाई है, लेकिन लालू का अंदाज उतना ही निराशाजनक है, जितना आज से दस साल पहले था, जब बिहार की जनता ने उन्हें सत्ता और दिल से निकाल कर फेंका था। लालू अब अपनी नई पीढ़ी को राजनीतिक रूप से स्थापित करना चाहते हैं लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं, उनसे तो यही लगता है कि लालू के राजनीतिक पापों की सजा उनके बेटों को भुगतनी पड़ेगी। महागठबंधन सत्ता हासिल कर सकता है लेकिन लालू के दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप की हार निश्चित प्रतीत हो रही है हालांकि इसमें उन दोनों सीटों – राघोपुर और महुआ- के समीकरण भी काफी मायने रखते हैं, जहां एनडीए के दोनों मौजूदा उम्मीदवार लालू-पुत्रों के मुकाबले मजबूत नजर आ रहे हैं।

चुनावी सियासत की इस स्याह कोठरी में उम्मीद की स्वर्णरेखा नजर आती है, और वह है बिहार की मां और बेटी की राजनीतिक जागरूकता। पहले चरण की वोटिंग में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले करीब पांच फीसदी ज्यादा रहा, दूसरे दौर में भी यही रुझान कायम रहा। बिहार की बेटियों का बढ़ चढ़ कर वोट देना एक आशाजनक संकेत है, यह बिहार के बेहतर भविष्य का सूचकांक है। जितनी तादाद में महिलाएं पोलिंग बूथ पर पहुंचेंगी, उतना ही ये सूचकांक ऊपर चढ़ेगा। जो लोग यह सोचते हैं कि बिहार एक पिछड़ा राज्य है और वहां की महिलाएं सिर्फ पुरुषों के कहने पर वोट देती हैं, उन्हें अपनी सोच की ओवरहॉलिंग करवानी चाहिए।

अंत में एक निर्वासित बिहारी की सिर्फ एक मुराद है- गठबंधन कोई भी जीते, लेकिन वो बिहार को जिताए।


sambhuji profile

शंभु झा। महानगरीय पत्रकारिता में डेढ़ दशक भर का वक़्त गुजारने के बाद भी शंभु झा का मन गांव की छांव में सुकून पाता है। फिलहाल इंडिया टीवी में वरिष्ठ प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत।


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One thought on “बिहार के तीन तिलंगे-व्हाट एन इलेक्शऩ सर जी!

  1. ab toh hum bihariyon ko bahri hone mein maza aane laga hai….sala bihar mein agda..pichda karenge….delhi…mumbai walon se unka rozgar chinenge…bus bihar mein na kuch karenge….na karne denge….gyan full on…..kaam…?

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