अरुण प्रकाश
मेरी डायरी
जौनपुर जब भी जाना होता नानी से मिलने जरूर जाता। एक दो बार ऐसा जरूर हुआ जब उनसे मिलने नहीं जा सका, लेकिन उसका अफसोस अगली मुलाकात के पहले तक बना रहता। ऐसा लगता जैसे कोई काम छूट सा गया है। इस उम्मीद के साथ खुद को भरोसा दिलाता कि चलो अगली बार जल्दी लौटेंगे और नानी से मिलेंगे, लेकिन अब वो उम्मीद भी टूट गई।
100 बसंत पार कर चुकी नानी पर आज के दौर की छाया दूर दूर तक नहीं थीं। निश्छल, निष्काम, निर्मल मन वाली नानी से हम जब भी मिलते, उनका आशीर्वाद ऊर्जा से भर देता। नानी के आशीर्वाद का मतलब था अगले 2-3 मिनट आप पर आशीर्वाद की बारिश। वो जब आशीर्वाद देना शुरू करतीं तो बस एक के बाद एक आशीर्वाद उसमें जुड़ता चला जाता। उनका आशीर्वाद हर किसी के लिए समान होता।
नाना के जाने के बाद नानी अकेली जरूर पड़ गई थीं, लेकिन मामा और पूरा परिवार उनको कभी अकेला नहीं छोड़ा। नानी को कभी कुछ भी हो जाता पूरा परिवार एक पैर पर उनके साथ खड़ा रहता। शायद इसी लिए वो हमेशा खुश भी रहतीं। नानी को कभी किसी की शिकायत करते नहीं देखा। वो जैसे अपनी ही दुनिया में मगन रहती थीं।
करीब 3-4 साल पहले की बात है। पापा ने खबर दी, नानी बीमार हैं अब शायद उनका आखिरी समय आ गया है। पापा के शब्द सुनकर मन व्यथित हो उठा। मैंने तुरंत गांव जाने की तैयारी शुरू कर दी। इस बीच मंगला मामा (मायके के रिश्ते से नानी के भतीजे) और उनके बेटे सोनू से बात हुई तो वो लोग भी नानी को देखने साथ चल दिए।
दिन ठीक से याद नहीं हैं, लेकिन हम लोग रात करीब 9 बजे नानी को देखने पहुंचे। पूरा परिवार नानी को चारों तरफ से घेर कर खड़ा था। मम्मी नानी को अपनी गोद में लेकर बैठी थीं। काफी देर तक हम लोग नानी के पास बैठे रहे लेकिन नानी किसी को पहचान नहीं पा रही थीं। इस बार नानी ने आशीर्वाद भी नहीं दिया। मन काफी विचलित हो उठा।
खैर नानी की तबियत को लेकर मामा और उनके बच्चों से काफी बातें होती रहीं। आधी रात होने को आई। सभी लोग नानी की चारपाई के पास इकट्ठा थे। नानी पिछले दो घंटे के मुकाबले कुछ बेहतर लग रहीं थीं। एक बार फिर हम लोगों ने नानी को प्रणाम किया। मम्मी नानी के कान में बोलीं “पहिचनलु माई” नानी ने लड़खड़ाती आवाज में बोला “नाहीं” तो मम्मी ने बताया इलाहाबाद वाले भैया है।( मामा इलाहाबाद रहते थे तो वो उन्हें उसी नाम से बुलाती थी) इस बार नानी पहचान लीं और उठकर बैठने की कोशिश करने लगीं लेकिन शरीर साथ नहीं दे रहा था, लिहाजा मम्मी ने उनकी मदद की, अब नानी हम लोगों के सामने बैठ चुकी थीं। एक एक कर मम्मी ने हम सभी के बारे में नानी को बताया और नानी लड़खड़ाती आवाज में आशीर्वाद देना शुरू कर दीं। उनका आशीर्वाद हम लोगों के लिए एक उम्मीद जगा दिया। क्योंकि शाम तक जो नानी कुछ बोल नहीं रहीं थीं अब आशीर्वाद देने लगीं।
काफी देर तक नानी से बातें होती रहीं। मम्मी नानी और हम सभी के बीच कम्युनिकेशन का का काम कर रहीं थीं।
इसी बीच सोनू (मामा का बेटा) मजाक मजाक में बोला “फुआ हमार बियहवा ना करैबु का” (नानी के मायके वाले रिश्ते से मामा और उनका परिवार नानी को बुआ बुलाता था)
नानी कुछ देर तक सोचती रहीं। थोड़ी देर के लिए पूरे माहौल में जैसे शांति बिखर गई। नानी हाथ जोड़े आंखें बंद किए कुछ सोच रही थीं। कुछ देर की शांति के बाद नानी लड़खड़ाती आवाज में ऊपर की तरफ इशारा करते हुए बोलीं ” सबेरे पूछ के बताईब” मम्मी ने पूछा ” केसे पूछ के बतईबू माई” नानी ने अपना हाथ उपर उठाया और बोला “भगवान से”
नानी पूजा पाठ बहुत करती थीं। वो चिटियों के लिए हर रोज आटा घर के बाहर दीवार के पास फैला देती। उनकी अपनी श्रद्धा थी और वो उसमें खुश थीं। खैर नानी के उन शब्दों ने हम लोगों की उम्मीदों को और बढ़ा दिया। मेरी जुबान से अचानक निकला नानी अब बच जाएंगी।
सुबह हुई, सभी लोग एक बार फिर नानी के पास थे। नानी कल से और बेहतर नजर आ रहीं थीं। शायद अपनों का प्यार उनकी इच्छा शक्ति को मजबूत कर रहा था। अब नानी खुद हम लोगों की बातें सुन और समझ रहीं थीं। मैंने बोला “नानी पुछलू, का कहना भगवान” नानी बोलीं ” कहन ठीक बा” सभी लोग हंस पड़े, नानी के चेहरे पर भी मुस्कान बिखर गई।
फिर क्या मामा ने हुक्का जलाया और नानी की तरफ
बढ़ाते हुए बोला “फूआ हुक्का पीया” नानी ने भी हाथ बढ़ाया और हुक्का का आनंद लेने लगीं (नानी को हुक्का काफी पसंद था)। अब हम लोगों की उम्मीद और मजबूत हो गई की नानी अभी साथ नहीं छोड़ेंगी।
नानी ठीक हो गईं। कुछ दिन बाद एक बार फिर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गईं। इस बीच मामा ने सोनू की शादी तय कर दी और नानी शादी में शामिल होने इलाहाबाद गईं। एक हफ्ते तक खूब मस्ती हुई। नानी शादी की हर रस्म में मौजूद रहीं। जिस दिन बारात निकल निकल रही थी, तो सोनू ने बोला “बुआ कुछ गीत सुनावा” फिर क्या था नानी शुरू हो गईं। अपने अंदाज में गाने लगीं। हर कोई नानी के जज्बे को देखकर हंस रहा था।
अपने बाद की तीन और पीढ़ी देख चुकी नानी उस घटना के बाद तीन साल तक हम सभी के साथ रहीं। इस साल जुलाई में घर गया तो नानी से मिला। नानी की आंख की रौशनी जा चुकी थी। लेकिन आशीर्वाद का अंदाज वही था। ऐसा लग रहा था धीरे धीरे शरीर का एक एक अंग साथ छोड़ रहा हो। क्या पता था नानी से ये मेरी आखिरी मुलाकात है। कल अचानक खबर आई नानी बेहोह हो गई हैं। थोड़ी देर बाद खबर आई नानी अब अनंत में विलीन गई। अब वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी यादें हमेशा हमारे दिल में रहेंगी।