पशुपति शर्मा के फेसबुक वॉल से
जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
हर किसी ने अपने हरि को अपनी नजरों से देखा। पापा कभी हमारे सखा बन गए, कभी हमारे गुरु। कभी अनन्य प्रेम रस से सराबोर तो कभी भ्रातृभाव का अतिरेक। कभी कुशल कारोबारी तो कभी नई राहों के पथिक। हर रूप में मन को हरने वाले, आंखों में बसने वाले।
पिता अनंत, पिता कथा अनंता-4
पिता की पुरानी तस्वीरों को पलटते हुए मां और हमने कई घंटे अपने हरि पर रीझते हुए गुजारे। हर तस्वीर के साथ मां की हजार यादें। पापा, ज़िंदगी के 78 साल में करीब 61 साल मां के हमसफर।
हम बचपन में जब भी मां से उम्र पूछते तो मां कहती- 60 में शादी हुई तब पापा 17 के और मैं 14 की, अब जोड़ लो। गणित का ये सवाल तब बहुत आसान लगा करता था। आज जब मां के साथ उन यादों में खोए तो सारा हिसाब भूल गये। पल-पल ज़िंदगी से सराबोर पापा को सालों की मोटी गिनती में समेटना बेमानी नहीं तो और क्या है?
पिता और मां के साथ दो गांवों का गठजोड़ भी 1960 के साल में ही हो गया। पुरैनी के पापा मेरी मां के हीरो बन गए। लाभा की लाडली पुरैनी की बहू। बाद की साझी यात्रा के तमाम पड़ाव इन दो गांवों के दो प्रेमी परिन्दों की उड़ान है। वो दौर नैनों की भाषा का दौर था। वो दौर मौन की भाषा समझने की कला का दौर था। वो दौर अजब गजब था।
पापा की पुरानी तस्वीरों को निहारती मां के चेहरे पर मैंने जीवन सागर की कई लहरें उठती गिरती देखीं। प्रेम में बहुत ताकत है। प्रेमी को अपने दिल में कैद रखने किंतु उसके प्रेम की अनंत उड़ान , विस्तार का बखान कितना आनंदित करता है, ये तो आप खुद महसूस कर सकते हैं।
जीवन से भरपूर पिता। कभी बेहद संजीदा तो कभी घंटों ठिठोली। हमारी बुआ- बिहारीगंज वाली। हमारी बुआ- बाड़ीहाट वाली। इन दो बुआओं के साथ तन-मन की बातें खुलकर होतीं। हम बाहर से सुनते- किसी पर प्यार बरसता तो बसंत की तरह और किसी गुस्ताख का जिक्र आता तो सावन भादों के बादलों की तरह बेरोकटोक उपमाएं बरसतीं- जिन्हें आप अपनी सुविधा के लिए गालियों के खाते में डाल सकते हैं। गालियां भी प्रेम का विस्तार हो सकती हैं, हमारी पीढ़ी को ये समझ आना मुश्किल है।
मामा, मौसियों के साथ पापा का रिश्ता अभिभावक सरीखा ही रहा। खास कर मौसियों पर वात्सल्य प्रेम ही बरसा। मौसा के लिये बड़े भाई रहे पापा। नाना-नानी की बड़ी बेटी बिमला के हीरो लाभा के भी हीरो रहे। कभी मां बताया करती, एक बार पापा को गांव आता देख गांव के सेठों की हवा खराब हो गई थी-जांच के लिए साहब आ गये हैं। ऐसे न जाने कितने प्रसंग अनकहे, अनसुने रह जाएंगे।
रहिमन दाहे प्रेम के, बुझि बुझि के सुलगाही।
मेरे हरि, मेरे पापा ने प्रेम की जो अगन जलाई है, वो कभी बुझने वाली नहीं। वो रह रह कर सुलगती रहेगी हमेशा।
हे हरि , हे पापा… बादलों से यूं ही बरसाते रहना प्रेम।