राणा यशवंत के फेसबुक वॉल से साभार
सुबह के साढे आठ बज रहे थे. फोन उठाया तो लरजती सी आवाज आई. “भैया, अब जरुरी है. उनको सांस लेने में दिक्कत है और ऑक्सीजन लेवल नीचे आ रहा है. एडमिट कराना ही होगा.” बीती रात एक बजे के आसपास यही फोन आखिरी था. एक मित्र के पुराने बॉस की तबीयत बिगड़ गई थी. कुछ दवाएं लेकर वो ठीक तो थे लेकिन डर बना हुआ था. इसी डर को लेकर रात में उसने फोन किया था. मैने ढाढस बंधाते हुए कहा था- चिंता मत करो. जरुरी नहीं कि कोरोना हो. अगर उनको परेशानी महसूस हो तो तुरंत फोन करना, कहीं एडमिट करवाया जाएगा. इसी के साथ गुडनाइट हो गई.
यह फोन जैसे ही रखा मेरे सीईओ का फोन आया. एक महिला साथी के पति की स्थिति भी वैसी ही थी. ऑक्सीजन लेवल नीचे जा रहा था. 90 के नीचे चला गया था. एक डॉक्टर मित्र की सलाह पर एस्ट्रॉएड दिया था, जिसके कारण वो 90-92 के आसपास आ गया था. सलाह ये थी कि कल सुबह एडमिट कराना ही होगा. मैंने सीईओ का फोन रखने का बाद उस दोस्त को फोन किया जिसके पति की तबीयत बिगड़ रही थी. परेशान थी. “कहीं कोई बेड नहीं है. रेमडेसिविर तो मार्केट से खत्म है. इनको सांस लेने में दिक्कत होने लगी है.” फोन उठाते ही वो एक सुर में बोलती चली गई. मैने कहा- धीरज रखो. सब अच्छा होगा. अगर सुबह से पहले भी परेशानी होती है तो फोन कर देना.
इन दोनों मामलों के चलते सोते सोते करीब डेढ बज गए. सुबह जगा और चाय पीकर जैसे ही दफ्तर फोन लगाने की सोच रहा था कि फोन आ गया- “भैया अब जरुरी है…एडमिट करना ही होगा”. मैंने कहा तुम डिटेल्स दो. नाम, पता, दिक्कत और कांटैक्ट नंबर सब लिख दो. कुछ ही देर में मैसेज में सारा डिटेल्स आ गया. मामला दिल्ली का था, इसलिए मैंने आम आदमी पार्टी में सीएम के नजदीक काम करनेवाली टीम को मैसेज डाला. लब्बोलुआब ये था कि ये आदमी अच्छा पत्रकार है, जमीनी-जुझारु है और इसका एडमिशन जरुरी है. मैंने जिन लोगों को मैसेज डाले, जवाब सबका आया. सबने थोड़ा समय मांगा. लेकिन जो आदमी सक्रिय रहा, वो थे दिलीप पांडे.
दिलीप, मेरे लिए छोटे भाई की तरह हैं. लेकिन ऐसे वक्त में जब दिल्ली के किसी भी अस्पताल में- चाहे सरकारी हो या प्राइवेट या फिर कोई छोटा मोटा नर्सिंग होम- जगह नहीं है, मरीज पर मरीज चढा पड़ा है, धक्कम-धुक्की, चीख-पुकार चरम पर है, वैसे में किसी मरीज का दाखिला हो जाए, यह आसान नहीं. दिलीप मेरे साथ लगातार संपर्क में रहे औऱ मरीज के तीमारदार के भी. एक घंटे बाद दाखिला हो गया. इतना ही नहीं मेरे मित्र का बाद में मैसेज आया कि – सर बहुत-बहुत धन्यवाद. पहली बार- कोई दिक्कत तो नहीं- यह पूछने के लिए लगातार फोन आए. दिलीप या उनकी टीम उस वक्त सक्रिय नहीं होती तो जो आदमी अब बेहतर महसूस कर रहा है, उसकी सांसे उखड़,चुकी होतीं.
वैसे, आम आदमी पार्टी के जितने भी लोगों को मैंने कहा वो सभी आखिर तक संपर्क में रहे. जैस्मिन शाह, कोर टीम के अहम सदस्य हैं, विकास, दिन भर अपने सीएम की प्रेस कांफ्रेंस काटने के लिए चढा रहता है- सब मरीज तक अपने संपर्क सूत्र बनाए हुए थे. हां, दिलीप की सक्रियता हमेशा याद रखनेवाली है. एक नेता, एक जन प्रतिनिधि को अपने दायित्व को लेकर और खासकर ऐसे संकट काल में कितना सजग रहना चाहिए, दिलीप उसकी मिसाल हैं. यह इकलौता मामला नहीं है. उस आदमी के दिन-रात आजकल लोगों की मदद और राहत में ही गुजर रहे हैं.
खैर, यह काम जब चल रहा था तो दूसरी जिम्मेदारी भी चलने लगी थी. मेरी मित्र के पति की परेशानी बढने लगी. रात की तरह ही पहला वाला फोन रखा ही था कि मेरे सीईओ का सुबह फिर फोन आया. यार, तुरंत कुछ करना होगा. मैंने बात खत्म होते ही दिल्ली के तीन-चार बड़े डॉक्टरों को फोन लगाया ताकि उनको एक रुम दिलवा सकूं. इलाज, सहूलियत और सुविधा के साथ चाह रहे थे, वॉर्ड जैसी स्थिति का सामना करना नहीं चाहते थे, इसलिए काम थोड़ा मुश्किल था. मैने उन्हीं डॉक्टर मित्रों को फोन किया था जिनके पास अच्छे प्राइवेट अस्पताल हैं. लेकिन कहीं कोई रुम खाली ही नहीं था. उनकी लाचारी मैं समझ रहा था. यह सब करते-धरते चार-पांच घंटे निकल गए. उधर तबीयत बिगड़ती जा रही थी.
आखिर में मैने छोटे भाई सरीखे डा. रजत को फोन किया. उसने कहा – भैया भारी भीड़ है, लेकिन आपका कहा मैं टाल भी नहीं सकता. मुझे उनका नंबर दीजिए, एक बार बात करके केस समझ लूं. मैने नंबर दे दिया. थोड़ी देर में फोन आया- भैया इनको एडमिट करना ही होगा, आप थोड़ा समय दीजिए, मैं उनके लायक कुछ इंतजाम करवाता हूं. रजत गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल को चलाते हैं. नौजवान डॉक्टर और कुशल प्रबंधक है. निहायत शरीफ और व्यवहार कुशल. फोन रखते समय मैंने कहा – तुम जो करो लेकिन यह एडमिशन होना चाहिए और उनका इलाज तुरंत शुरु हो जाना चाहिए. करीब दस मिनट बाद रजत का फोन आया. “भैया मैंने इंतजाम कर दिया है, आपकी दोस्त से भी बात कर ली है और कहा है कि आप अपने पति को लेकर तुंरत आ जाएं. अब आप निश्चिंत रहिए, उनकी जिम्मेदारी मेरी है.” घंटे भर बाद मेंरी दोस्त का फोन आया- “एडमिशन हो गया है, बहुत अच्छा इंतजाम है, बहुत ख्याल कर रहे हैं. आई एम हाईली थैंकफुल”.
जो सुबह रो रही थी, उसकी आवाज में सुकून था. ये रजत का कमाल था. रजत न जाने कितने लोगों के काम आते हैं. उनमें पेशेवरपना कम, इंसानियत और रिश्तों की कद्र ज्यादा है. आज अगर दो जिंदगियों पर से खतरा टला तो सिर्फ और सिर्फ दो वैसे लोगों की वजह से जो कोरोना के इस भयावह दौर में टूटती उम्मीदों को थाम रहे हैं. जब जमाए-आजमाए लोग निराश कर रहे हैं, ऐसे में ये लोग फरिश्ते-सा काम आ रहे हैं. किसको आती है मसीहाई किसे आवाज दें…..! बहुत-बहुत शुक्रिया दिलीप पांडे और डा. रजत.
I Love Dilip Bhaiya ji