दयाशंकर मिश्र
जो पीछे छूट गए हैं, जरूरी नहीं उनमें कोई कमी है. जीवन बहुत-सी चीज़ों का मिश्रण है, इसलिए, जो है उसके प्रति केवल कृतज्ञता हो. प्रेम, स्नेह जीवन की नींव के पत्थर हैं. हमारा सफर नींव की मजबूती पर ही टिका है. #जीवनसंवाद किसके कारण!आज का संवाद छोटी-सी कहानी के साथ. संभव है, अलग-अलग रूपों में आपने इसे सुना हो.
जीवन संवाद 961
तो किस्सा कुछ इस तरह है कि एक कंपनी के प्रवेश द्वार पर एक युवक सफाई कर्मचारी के रूप में काम कर रहा है. ठीक उसी समय उस कंपनी के मालिक और मालकिन (सह संस्थापक) वहां से गुजरते हैं. मालकिन सफाई के काम में जुटे व्यक्ति को देखकर कुछ देर के लिए रुक जाती हैं. वह उससे कुछ बात करने की कोशिश करती हैं, तो वह बिना उनकी ओर देखे, उनसे कहता है कि अभी काम में व्यस्त हूं. मालकिन एक पल रुकती हैं और अगले ही पल उसे उसके नाम से पुकारती हैं, तो वह पलटकर उनकी ओर देखता है. उन्हें आश्चर्य होता है कि इस व्यक्ति के जीवन में इतना उतार-चढ़ाव आया कि उसे इस तरह का काम करना पड़ रहा है. वहां उनके पति भी मौजूद हैं, वह भी पूरी बातचीत सुन रहे हैं. जब दोनों अपनी गाड़ी में बैठ जाते हैं. पति पूछते हैं, ‘तुम कैसे उन्हें जानती हो’. पत्नी उनकी ओर देखकर कहती है कि पहले इस युवक से ही उसका विवाह होने वाला था. पति कुछ उपहास उड़ाने के अंदाज में कहता है कि कोई और नहीं मिला था. पत्नी विनम्रतापूर्वक जवाब देती हैं, ‘यह बीस साल पुरानी बात है. उस समय तक तुम यहां-वहां नौकरी के लिए भटक रहे थे. उस वक्त उसके पास एक अच्छी नौकरी थी, लेकिन आगे चलकर वह उसे कायम नहीं रख पाया. यह संयोग की बात है कि हमारा रिश्ता भी आगे न बढ़ा. जब तुम नौकरी के लिए परेशान थे, मेरे पास एक अच्छी नौकरी थी. इसलिए, तुमने नौकरी की जगह अपना कारोबार जमाने का फैसला किया. इतने वर्षों में जब जब तुम कमजोर पड़े, मैं तुम्हारे साथ थी. उसे ऐसा कोई साथी नहीं मिल पाया. यह समय है, जो संयोग और साथ के रूप में तुम्हारे हिस्से में आ गया.’पति के दिमाग में वह तस्वीरें घूम जाती हैं, जब वह जीवन में अपनी पहचान के लिए संघर्षरत था. जो पीछे छूट गए हैं, जरूरी नहीं उनमें कोई कमी हो.
जीवन बहुत-सी चीज़ों का मिश्रण है. इसलिए, जो है उसके प्रति केवल कृतज्ञता हो. प्रेम, स्नेह जीवन की नींव के पत्थर हैं. हमारा सफर नींव की मजबूती पर ही टिका है. हममें से बहुत सारे लोगों की कहानी इससे मिलती जुलती होगी. जीवन में जो मिल जाता है, उसे हम अपने खास होने का प्रतिफल मान लेते हैं. जो नहीं मिल पाता उसके लिए मन में कड़वाहट रखते हैं. दोनों ही स्थितियों में भीतर की कृतज्ञता और समभाव से हम दूर होते जाते हैं.बुद्ध ने बड़ी सुंदर बात कही. पानी भी जमकर बर्फ हो जाए, तो अहंकार का संघर्ष शुरू हो जाता है. पानी जब तक बहता है, विनम्र रहता है. सदा ऊपर से नीचे की यात्रा में रहता है. उसके भीतर अहंकार आते ही वह जम जाता है. फिर उसे तोड़ना होता है. संघर्ष करना होता है, नई यात्रा के लिए. पानी का बर्फ होना, हमसे बहुत अलग नहीं है. हम भी पानी रूपी सहजता को, जिंदगी की लय-ताल को जमाने में लगे रहते हैं. खुद को इस जमने से रोकना है, बर्फ बनने से खुद को संभालना है.ई-मेल [email protected]
दयाशंकर। वरिष्ठ पत्रकार। एनडीटीवी ऑनलाइन और जी ऑनलाइन में वरिष्ठ पदों पर संपादकीय भूमिका का निर्वहन। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। अवसाद के विरुद्ध डियर जिंदगी के नाम से एक अभियान छेड़ रखा है।