पुष्य मित्र
जब से मैने पूर्णिया के मीडिया कार्यशाला में प्रशिक्षक के रूप शामिल होने के लिये सोपान भाई से अनुरोध किया था, तब से पछता रहा हूं कि मैने यह काम क्यों किया। सोपान जोशी जी ने न सिर्फ मेरा अनुरोध स्वीकार कर लिया, बल्कि यह भी कहा कि वे हमारे हर वर्कशॉप में आयेंगे।
मगर एक प्रशिक्षक के रूप में कोसी सीमांचल मीडिया वर्कशॉप में शामिल होने के लिये उन्होने जो कुछ किया है। वह मेरे जीवन में अभूतपूर्व है। उन्होने पिछ्ले दो दिनों में दिल्ली से पूर्णिया तक की 1400 किमी की यह यात्रा अपनी बाइक से की है। क्योंकि वे पारिवारिक कारणों से अभी हवाई यात्रा से भी परहेज कर रहे हैं।
इतना ही नहीं। उन्होने इसी तरह हमारे आगामी तीनों कार्यशालाओं में पहुंचने की बात कही है। जिस आयोजक के अतिथि इतना कष्ट उठाकर पहुँचे हों, वह एक साथ खुश है, उदास है और चकित भी है। हम सबके जीवन में सैकड़ों किन्तु और परन्तु होते हैं। वे भी मना कर सकते थे। मगर उन्हें यह काम इतना जरूरी लगा कि दो दिनों की अनवरत यात्रा का जोखिम उठा लिया।
यह सोचकर भी मैं उदास हो रहा हूं कि क्या हम प्रशिक्षणार्थियों में इसका एक परसेन्ट भी डेडीकेशन होगा, जितना प्रशिक्षक सोपान भाई ने यह उदाहरण पेशकर हमें दिखाया है। हम सभी प्रशिक्षण लेने वालों के लिये यह डेडीकेशन ही सबसे बड़ी सीख है। काम का महत्व समझना और उसके लिये हर तरह की मुसीबत को उठाने के लिये तैयार रहना।
और हां, कल ही पूर्णिया के वीवीआईटी में सुबह 10 बजे से मीडिया वर्कशॉप है। स्थानीय पत्रकार साथियों का स्वागत है।