फणिश्वरनाथ रेणु की जीवनी पर आधारित पुष्यमित्र की नई किताब- एक अप्रतिम कथाकार, एक जन्मजात विद्रोही, रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय समेटे जल्द पाठकों के बीच आ रही है । 7 फरवरी को पुस्तक का विमोचन होना है और 8 फरवरी से पाठकों के लिए उपलब्ध हो जाएगी । किताब के बारे में पुष्यमित्र कहते हैं ।
एक लेखक का जीवन कैसा होना चाहिये यह रेणु जी की संक्षिप्त जीवनी पर काम करते हुए समझ पाया। बचपन से ही वह आदमी समानता और आजादी के लिये लड़ता रहा। 10-11 साल की उम्र में पहले बेंत की सजा फिर जेल यात्रा। फिर 1942 में पुलिस की भीषण पिटाई। फिर 3 साल की जेल और जेल में टीबी का मरीज बन जाना। जेल से छूटे, स्वस्थ हुए तो कभी विराटनगर में मजदूरों की लड़ाई तो कभी डालमियानगर की हड़ताल में भाग लेने निकल पड़े।
कभी किसानों से साथ 13 दिन पदयात्रा की। फिर नेपाल की सशस्त्र क्रांति में भागीदारी की।फिर प्रेम, विवाह और 1952 से 1973 के बीच का शांत पारिवारिक जीवन जिया जिसने कुछ लिखने की मोहलत दी। उस बीच भी कभी गांव तो कभी पटना में भटकते रहे। नौकरी करते और छोड़ते रहे। बीमारियों से जूझते रहे।और फिर जब जाने का समय आया तो 74 के छात्र आन्दोलन में कूद पड़े। पद्मश्री और बिहार सरकार की पेंशन को वापस कर दिया। जेल चले गये।शरीर टीबी और पेप्टिक अल्सर से जर्जर था मगर मन राजनीतिक बदलाव में अटका था।
आपरेशन के लिये पीएमसीएच में एडमिट थे मगर जेपी से सिफारिश लगा रहे थे कि ओपरेशन का डेट 23 मार्च तक टलवा दें। चुनाव का रिजल्ट आएगा तब ओपरेशन रूम के अन्दर जायेंगे। अन्दर जा रहे थे तो दोस्तों से कहा कि होश आये तो सबसे पहले बताना पीएम कौन बना। मगर होश नहीं आया।वह जीवन इतना पारदर्शी और पाक साफ था। तभी आज 43 साल बाद भी हमलोग चाहते हैं कि नई पीढ़ी इस पाक जीवन के किस्से को पढ़े। किताब लिखी और क्विज करवा रहे हैं। आज जो लेखक पल पल में स्टैंड बदलते हैं उन्हें कल की पीढ़ी किस बात के लिये याद रखेगी। लेखक का लेखन और जीवन एक जैसा होना चाहिये। अगर नहीं है तो वह छ्ल है। जीवन भी और लेखन भी।