ब्रह्मानन्द ठाकुर, मुजफ्फरपुरर
साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र वैशाली लोकसभा के अन्तर्गत और मुजफ्फरपुर जिले के पश्चिमी सीमा पर स्थित है। यहां चुनाव मुद्दो पर नहीं जातीय समीकरण पर लड़कर जीते जाते हैं। जातीय गणित को यदि देखा जाए तो यह विधानसभा क्षेत्र राजपूत,यादव और भूमिहार जाति बहुल क्षेत्र है। इस चुनाव मे इसबार दो परिचित लड़ाके,महागठबंधन से राजद प्रत्याशी पूर्व मंत्री, रामविचार राय और वीईपी के राजू कुमार सिंह मैदान में हैं।लोजपा ने भूमिहार जाति के कृष्ण कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है।
रामविचार राय पहली बार 1990 में जनतादल के टिकट पर इस सीट से चुनाव जीते। इसके बाद 1995 मे जनतादल और 2000 के चुनाव मे राजद के टिकट पर उनको यहां से सफलता मिली। 2005 मे दो बार विधानसभा चुनाव हुआ था। पहला चुनाव फरवरी 2000 मे लोजपा से राजु कुमार सिंह ने इस सीट से जीत हासिल की थी। इसके बाद अक्टूबर 2000 का चुनाव वे जदयू उम्मीदवार के रूप में जीते। 2005 के चुनाव मे भी जदयू से राजू कुमार सिंह को ही सफलता मिली थीः। 2010 मे भी राजू कुमार सिंह ने ही जदयू के टिकट पर इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। 2015 का विधानसभा चुनाव इस सीट से राजद के रामविचार राय जीते। तब राजू कुमार सिंह यहां से भाजपा के उम्मीदवार थे। दोनो के बीच कांटे की टक्कर थी। रामविचार राय को 70 हजार 583 वोट मिले थे जबकि राजू कुमार सिंह को 59 हजार 923 मत प्राप्त हुए थे।
इसबार के चुनाव मे ये दोनो लडाके फिर आमने- सामने हैं। फर्क इतना ही है कि जहां रामविचार राय अपनी पुरानी पार्टी राजद से मैदान में हैं ,वहीं राजू कुमार सिंह विकासशील इंसान पार्टी ( वीईपी ) के टिकट पर चुनाव लड रहे हैं।लोकजनशक्ति पार्टी ने कृष्ण कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है ,जो मुकाबले को त्रिकोणात्मक रूप देने की कोशिश मे जुटे हुए हैं। इसमे उन्हें कितनी सफलता मिलेगी यह तो चुनाव बाद ही पता चलेगा लेकिन यहां की एक स्थानीय महिला मतदाता बताती है कि महागठबंधन और एनडीए के बीच मुकाबला फिफ्टी — फिफ्टी का है। माने संघर्ष कांटे का और आमने- सामने है।साहेबगंज विधानसभा सीट से महागठबंधन के रामविचार राय ,एनडीए के राजू कुमार सिंह ,लोजपा के कृष्ण कुमार सिंह और एसयूसीआई(सी )के यादव लाल पटेल के अलावे राष्ट्रीय जन विकास पार्टी के उमेश कुमार , राष्ट्रीय जनजन पार्टी के प्रमोद कुमार , द प्लुरल्स के डाक्टर मीरा कोमुदी , समाजवादी जनतादल डेमोक्रैटिक के देवेशचंद्र ,आल इंडिया फारवार्ड ब्लौक के पंकज कुमार ,आल इंडिया मजलिस -ए इस्तेहादुल मुस्लमिन के मोहम्मद मोकीम, आल इंडिया माइनारिटीज फ्रंट के मोहम्मद नबी हसन, हिंदू समाज पार्टी के राजेश कुमार , अखंड भारत जनप्रिय पार्टी के व्यक्ति णा कुमारी मानववादी जनता पार्टी के मोहम्मद साकिम,राष्ट्र सेवादल के सुधीर ठाकुर और निर्दलीय भरत प्रसाद ,राजुकुमार शिवकुमार राय ,सुनील कुमार सिंह ,सुरेश सहनी सहित 20 उम्मीदवार चुनाव मैदान मे हैं। साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र 1980 तक कांग्रेस का गढ था ।
1952 के विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के ब्रजनन्दन प्रसाद सिंह निर्वाचित हुए थे।। 1962 और 1967 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस के नवलकिशोर सिंह जीते।1969 के चुनाव मे इस सीट पर निर्दलीय यदुनन्दन सिंह का कब्जा हुआ। 1972 मे कांग्रेस के शिवशरण सिंह को इस सीट पर सफलता मिली। 1977 मे सीपीएम के भाग्यनारायण सिंह के कब्जे में यह सीट आयी। फिर 1980 के विधानसभा चुनाव मे साहेबगंज सीट से कांग्रेस के नवल किशोर सिंह जीते और 1985 मे कांग्रेस के ही शिवशरण सिंह को सफलता मिली।इस चुनाव के बाद कांग्रेस के हाथ से यह सीट जो निकली तो फिर दुबारे हाथ नहीं आई। राज्य का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया था। 1990 से 2000 तक और फिर 2015 का चुनाव जनतादल और राजद के टिकट पर रामविचार राय जीतते रहे। 2005 के दो विधानसभा चुनावों ( फरवरी और अक्टूबर) मे तथा 2010 के चुनाव मे राजुकुमार सिंह को यहां से सफलता मिली।
अन्य क्षेत्रों की तरह साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र मे कृषि ,शिक्षा ,स्वास्थ्य और बेरोजगारी की समस्याएं बरकरार हैं। कृषि योग्य जमीन मे जलजमाव के कारण किसान उस जमीन पर खेती नहीं कर पा रहे हैं। बेरोजगारी के मारे युवावर्ग पलायन करने को मजबूर है। सडक और पुल -पुलिया भी बना है लेकिन गंडक नदी मे फतेहाबाद और वाया नदी में ईशाछपरा मे पुल का निर्माण यहां की जनता की मांग अभी पूरी नहीं हुई है।इस विधानसभा क्षेत्र के एट मतदाता श्यामनाथ राय बताते हैं कि पारु प्रखंड का जो इलाका ( 24 पंचायत) साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र में पडता है , उसमे शिक्षा और स्वास्थ्य अब भी एक बडी समस्या है।यहां डिग्री कालेज नहीं होने के कारण उच्च शिक्षा के लिए 40 किमी दूर मुजफ्फरपुर जाना पडता है। जनवितरण प्रणाली मे भ्रष्टाचार है और सरकारी अस्पताल मे स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव। बाबजूद इसके इस चुनाव मे यह कोई मुद्दा नहीं है। जातीय समीकरण ही उम्मीदवारों के भाग्य का फेसला करेगा।