पुष्यमित्र
इस देश में वैसे पार्टियां तो कई हैं, बड़ी भी और छोटी भी। मगर कोई अल्पसंख्यकों को मायनस करके चलती है, तो कोई अमीरों को, कोई सवर्णों को तो कोई पिछड़ों को या दलितों को। हर पार्टी किसी न किसी समूह को घटा कर अपना काम चला लेती है। उसे अपना घोषित या अघोषित दुश्मन करार देती है और बदले में सामने वाले पक्ष को अपने साथ पोलराइज़ करती है। एक कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है, जिसने आज तक देश के किसी समूह को पराया नहीं माना है। उसने आजतक तोड़ने वाली, बांटने वाली राजनीति नहीं की है।
आज़ादी के पहले से ही कांग्रेस का यही सिद्धांत था कि देश के हर धड़े को साथ लेकर चलना है। इसलिये उसमें समाजवादी भी होते थे और हिन्दू महासभा वाले भी। कम्युनिष्ट भी और जमींदार भी। सब होते थे और उन सबको मिलकर कांग्रेस एक बड़ा अम्ब्रेला बनता था। हालांकि आज़ादी से पहले मुस्लिम लीग कांग्रेस को हिन्दूवादी दल बताती थी, आजकल भाजपा वाले उसे मुस्लिमपरस्त बताते हैं। मगर सच यही है कि आज भी, अपने अस्तित्व के सबसे बुरे दौर में भी कांग्रेस में हर तरह के हर धड़े के लोग मौजूद हैं। बराबर की हिस्सेदारी के साथ। इसलिये कई बार ऐसा लगता है कि कांग्रेस को जिन्दा रहना चाहिये, उसे मजबूत होना चाहिये। यही देश की सामूहिक सोच के लिए, बहुरंगी विरासत के लिए अच्छा है।
मगर कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक्कत रही कि वह आज़ादी के बाद धीरे धीरे एक परिवार के इर्द-गिर्द सिमटती चली गयी और अपनी सफलता के लिए उस परिवार के करिश्मे पर निर्भर होती चली गयी। ऐसे में जब तक उस परिवार के पास करिश्माई नेतृत्व था, वह जीतती रही। वह करिश्माई नेतृत्व गया वह हारने लगी।
मौजूदा कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या मुझे लगती है कि सोनिया हर हाल में पार्टी पर परिवार का कब्जा बरकरार रखना चाहती है और इस वजह से उसने पार्टी में किसी दूसरे ताकतवर नेता को उभरने नहीं दिया। इस वजह से पार्टी परिवार के गुणगान में जुटे रहने वाले घाघ नेताओं का क्लब बन कर रह गयी। जबकि सम्भवतः राहुल पार्टी को परिवार के दायरे से बाहर निकालना चाहते हैं। वे कांग्रेस को अन्दर से लोकतांत्रिक बनाना चाहते हैं, वे खुद को कभी इस तरह आगे नहीं बढ़ने देना चाहते हैं कि ताकि कोई और इस पार्टी का नेतृत्व सम्भाल न सके। ऐसा लगता है कि वे एक तरह से योग्य हाथों में पार्टी को सौंप कर राजनीति से मुक्त होना चाहते हों, मगर सोनिया चाहती हैं कि राहुल अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढाये।
इसी द्वंद्व और उधेड़बुन में पार्टी कई सालों से न सिर्फ ठहरी है, बल्कि फिसल रही है। कांग्रेस के भविष्य के लिए यही उचित है कि वह वैसी पार्टी बने जैसी आज़ादी के ठीक पहले थी, जब उसमें नेहरू, पटेल, जयप्रकाश, राजगोपालाचारी, आशुतोष मुखर्जी, अबुल कलाम आज़ाद, जगजीवन राम जैसे हर रंग, अलग अलग कलेवर के नेता थे, जो पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करते थे। उसे परिवार के दायरे से निकलना होगा, निकालना होगा। यह काम सिर्फ और सिर्फ राहुल ही कर सकते हैं।