पत्रकार चंद्रशेखर की कोरोना से मौत ने मीडिया जगत में काम करने वालों की संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया है । किसी को यकीन नहीं हो रहा है कि एक जिंदादिल और जीवट इंसान उनके बीच से चला गया । चंद्रशेखर की मौत के लिए कोई भगवान को कोश रहा है तो कोई मालिकान को। चंद्रशेखर की मौत की वजह कोरोना जरूर है लेकिन कहीं ना कहीं इसका जिम्मेदार हमारा मीडिया तंत्र भी है । यही वजह है कि आज चंद्रशेखर को करीब से जानने वाले हों या फिर चंद्रशेखर के बारे में फेसबुक पर पढ़कर टिप्पणी करने वाले । हर कोई मीडिया की मनमर्जी पर सवाल उठाने लगा है । साथ ही चंद्र शेखर के परिवार की मदद की गुहार भी साथियों से लगा रहा है । फेसबुक पर की गई ऐसी ही कुछ टिप्पणी और गुबार बदलाव पर पढ़िए ।
रविकांत ओझा
स्वर्ग में इंद्र या जिन भी देवताओं का शासन है, उनसे मेरा सवाल है, क्या करिएगा आप चंद्रशेखर को अपने पास बुलाकर। वो तो बेहद मेहनती और खुद्दार टाइप का इंसान है। कहा जाता है कि स्वर्ग में सिर्फ ऐशो-आराम होता है। कोई काम नहीं होता। तो हे इंद्र! मैं साफ कर दूं आपके यहां चंद्रशेखर की जरुरत नहीं। ये वो इंसान है जिसके सामने मेहनत शब्द भी बौना पड़ जाता है। मुझसे और मेरे कई वरिष्ठ-कनिष्ठ साथियों से पूछ लीजिए। कैसे चंद्रशेखर मेहनत की पराकाष्ठा कायम करता था। NWI में सुबह की शिफ्ट का दारोमदार मुझपर होता था। जब मुझे पता चलता कि प्रोडक्शन में चंद्रशेखर हैं तो मैं निश्चिंत होता कि कम से कम एक मोर्चे पर कोई दिक्कत नहीं है। सुबह 6 बजे की शिफ्ट में 5.55 पर ही हाजिर होना उनकी आदत थी। वो भी तब जब कई बार वे लक्ष्मीनगर से पैदल नोएडा सेक्टर-4 तक आया करते थे। आर्थिक स्थिति अमूमन खस्ताहाल ही रही। फिर भी कभी कोई शिकायत नहीं। शिफ्ट खत्म होने पर कई बार उन्हें पैदल ही नोएडा से गाजियाबाद के वसुंधरा जाते देखा। मैं लिफ्ट लेने के लिए जोर न डालूं इसलिए वे दूसरे रास्ते से पैदल ही इस 18-19 किलोमीटर की दूरी नाप लेते थे। मैं पूछता इतना कैसे चल लेते हैं तो कहते- सर, मैं ज्यादा तेज नहीं चलता । आराम-आराम से पहुंच जाता हूं। हे इंद्र ! इतने सरल, इतने विनम्र, इतने स्वाभिमानी, इतने मेहनती इंसान का आप क्या करेंगे। उनकी जरूरत यहां हैं। आप उन्हें हमें लौटा दीजिए। साथियों आप अपनी ओर से सहायता इस अकाउंट पर दें।
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आशीष जैन
मीडिया कर्मियों को कोरोना हो रहा है, आपने सुना, वो लॉक डॉउन में , पोस्ट मास्टर की तरह मौत बाटते रहे है और आज शिकार हुए, लेकिन मेरी इसमें असमहती है, पूंजीवादी सिस्टम ने अंग्रेज़ो जैसा व्यवहार कर रहे मालिकों को और अव्यवहारिक बनाया साथ ही पत्रकार मीडियाकर्मियों को मजदूर से भी निम्नस्तरीय बना दिया है। 24 घंटे में दो मौतें हुईं, एक आज तक से और एक खाली बैठे एक पत्रकार की, जिसे कुछ वक्त पहले उसके संस्थान ने बाहर निकाला।
एडिटिंग मशीन होती तो आपको समझा देता। 2 विण्डो के सहारे। आप समझ जाते, मैं क्या लिखना चाहता हूं और मुमकिन है आप समझना ही न चाहते हों क्योंकि मनुष्य स्वार्थी होता है। उसे लगता है वो सेफ है, उसे कुछ नहीं होगा, इसलिए पर्दा आपकी आँखों मे ओढ़ा रहे और रखना भी चाहिए। क्योंकि यह 2 विंडो आपके परिवार से बहुत दूर है। आपके लिए यह 2 मौतें होंगी। मेरे लिये यह क्रिमनल केस है। आपराधिक मामला है। एक व्यक्ति जो पत्रकार है उसे पहले निकाला गया फिर उसे कोरोना हुआ और अब उसकी मौत हुई। यह बैचैन और जागते हुए सवाल हैं । क्या पूंजीवाद ने उसे मारा। घर में उनकी पत्नी है, माँ है एक तड़पता हुआ परिवार है, रुलाइयाँ हैं। कुल मिलाकर उनके परिवार को कुछ नहीं मिलेगा। कोई सरकार उसे कुछ नहीं देगी । यानि कोई मदद नहीं होगी। यह पूंजीवादी व्यवस्था है। दूसरी तर्ज पर आप दूसरी तरफ देखिये। हुमा को समझिये, एक बड़े संस्थान में काम करने वाली हुमा को जानिये। उनकी मौत भी कोरोना से हुई, लिहाज़ा संस्थान मदद जरूर करेगा ऐसा मुझे लगता है। टीवी टुडे के अंदर यह विशेष बात है। वो अपने कर्मचारियों का विशेष ध्यान रखता है।