ब्रह्मानंद ठाकुर
आज हम एक ऐसे समय में नेताजी सुभाषचंद्र बोस को याद कर रहे हैं जब पूरा देश गरीबी, बेरोजगारी, भयंकर आर्थिक मंदी , अशिक्षा, महंगाई, आतंकवाद, क्षेत्रीयता, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और नैतिक पतन के दलदल में कराह रहा है। लूट, हत्या बलात्कार की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। साम्प्रदायिकता का खतरा लगातार गम्भीर होता जा रहा है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारतीय आजादी आंदोलन में गैर समझौतावादी धारा के अप्रतिम योद्धा थे। उनका जीवन संघर्ष और उनकी क्रांतिकारी विचारधारा देश की जनता के लिए प्रेरक और अनुकरणीय है। वे हर तरह के शोषण, जुल्म और अत्याचार से देश की जनता की मुक्ति चाहते थे। तभी तो उन्होंने कहा था कि बचपन में वे अंग्रेजों को देश से भगाना ही अपना कर्तव्य समझते थे लेकिन बाद में गम्भीर चिंतन के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे कि सिर्फ अंग्रेजों को भगाने से ही उनका कर्तव्य पूरा नहीं होगा। भारतवर्ष में एक नई व्यवस्था लागू करने के लिए एक और क्रांति की जरूरत है।
हमें समझौतावादी रास्ते से आजादी तो मिल गई लेकिन देश में शोषणमुक्त वर्ग विहीन समाज की स्थापना के लिए नेताजी के ‘एक और क्रांति’ का सपना आजतक पूरा नहीं हुआ। आजादी के बाद जितनी भी सरकारें बनीं, कमोवेश वे सभी पूंजीपतियों की भलाई के लिए ही काम करती रहीं। सुभाष बाबू ने जहां साम्प्रदायिक सद्भाव और हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया, वहीं आजादी के बाद इस दिशा में सार्थक पहल करने के वजाय इनमें फूट और वैमनस्य बढ़ाने की कोशिशें ही होती रहीं। ऐसा इसलिए कि शासक वर्ग इस बात से पूरी तरह अवगत है कि धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर लोगों को बांटकर ही वह अपने उद्देश्य में सफल हो सकता है। इसलिए वह आम लोगों में साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने के लिए एक के बाद एक फैसले लिये गए ।
ऐसे में देश की जनता को विशेषकर छात्र-युवाओं को नेताजी सुभाषचंद्र बोस के संघर्षों से सीख हासिल करने की जरूरत है। आजादी आंदोलन के दौरान नेताजी ने कहा था ‘जुल्म होते देखकर भी जो व्यक्ति उसके खात्में की कोशिश नहीं करता, वह सिर्फ अपनी इंसानियत ही नहीं बल्कि सताए गये व्यक्ति की इंसानियत का भी अपमान करता है। अन्याय, अत्याचार को खत्म करने की कोशिश में जो व्यक्ति घायल होता है, जेल जाता है अथवा अपमानित होता है, वह उस त्याग और तिरस्कार के जरिए इंसानियत के गौरवशाली आसन को प्राप्त करता है। स्कूल-कालेजों में, सडकों पर, मैदानों में, घर-बाहर जहां भी अन्याय, जुल्म-अत्याचार होते देखो वहां वीरों की भांति आगे बढकर विरोध करो। यदि मैंने अपनी इस छोटी सी जिंदगी में कुछ ताकत हासिल की है, तो बस इसी रास्ते।’
साम्प्रदायिकता पर नेताजी का वह कथन भी हमें याद रखना होगा जो उन्होंने 1928 में कुष्ठिया के जनसमारोह में कहा था। सुभाष बाबू ने कहा था ‘जो यह कहते हैं कि हिंदू और मुसलमानों का स्वार्थ एक दूसरे के विपरीत हैं, वे झूठ बोलते हैं। भारत की मूल समस्या क्या है? खाद्यान्नों का अभाव बेरोजगारी, राष्ट्रीय उद्योगों का क्षय, स्वास्थ्य हीनता, मत्यु दर में वृद्धि, शिक्षा की कमी- यही है मूल समस्याएं। इन समस्याओं का समाधान न होने पर जिंदगी जीने लायक नहीं रहती है। जीवित रहना बेमतलब-सा हो जाता है। इन मुद्दों पर हिंदू और मुसलमान दोनों का एक ही स्वार्थ है।’
फिर अन्यत्र एक जगह उन्होंने कहा है ‘गोष्ठी या साम्प्रदायिक फिरकापरस्त चिंतन नहीं, समूचे जनसमुदाय को शामिल करके ही विचार व महसूस करना सीखना होगा हमें। सामाजिक व आर्थिक रूप में जिस सत्य के बारे में हमें निरक्षर देशवासियों की आंखे खोल देनी है वह है- मजहब, जाति व भाषा में फर्क रहने के बाबजूद हम सब की समस्याएं तथा अभाव की शिकायतें एक ही हैं। गरीबी और बेरोजगारी, अशिक्षा और बीमारी, करों और कर्ज का बोझ हर वक्त हिंदू और मुसलमान सहित दूसरे सभी सम्प्रदायों की जनता को एक ही तरह से चोट पहुंचाती है और उनका समाधान भी सर्वप्रथम राजनीतिक समस्याओं के निदान पर ही निर्भर है। ‘
आज देश के प्राय: सभी राजनीतिट तरह के दल समाजवाद की बात करते नहीं थकते। इसके बारे में नेताजी ने कहा था कि आज किसी महल में ‘समाजवाद ‘ शब्द सस्ता हो गया है, अत: दक्षिणपंथी ताकतें समाजवाद का जामा पहन कर घूमतीं हैं , उनसे हमें सावधान रहने की जरूरत है।
ब्रह्मानंद ठाकुर।बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। मुजफ्फरपुर के पियर गांव में बदलाव पाठशाला का संचालन कर रहे हैं