निखिल कुमार दुबे के फेसबुक वॉल से साभार
अर्थशास्त्र मेरा विषय नहीं है।नोबल प्राप्त एक्सपर्ट पर कॉमेंट करूँ इतना ज्ञान भी नहीं है,पर एक सामाजिक अनुभव है। अपने छोटे से जन्म जनपद,गांव से ले कर देश की राजधानी तक का।
1.सुबह उठने से रात सोने के बीच मेरी ज़िंदगी मे जो भी बाहरी मदद,इस्तेमाल,सेवा,उत्पाद आदि इत्यादि होता है उसमें 98% मामले में जिनकी भूमिका होती है वो गरीब बैकग्राउंड से होता है। (अगर श्रम की कोटि में भेदभाव नहीं करते हैं तो)
2.घर से बाहर सिगरेट वाला,पान वाला,सब्जी,अंडे, मीट,फल-फूल,चाट-गोलगप्पे-कचौरी-आमलेट वाला, चाय,लिट्टी,पकोड़ा वाला। टेलर,मोची,प्रेस वाला,ऑटो वाला,रिक्शावाला, बढ़ई, राजगीर,फॉल, पिको, ac, बिजली,नल,सिविल रिपेयर वाला आदि इत्यादि वाला सेवा क्षेत्र का 99% गरीब बैकग्राउंड से होता है।
3.गांव में किसान से ले के कर्मकार तक और सब्जी उगाने वाले या और भी सेवाप्रदाता जो नौकरी नहीं कर रहे हैं,छोटे कारोबारी,व्यापारी या किसी खास तरह की रेसिपी डेवलप कर उसके उत्पाद बनाने और बेचने वाले।
4.बड़े शहरों,ओद्योगिक क्षेत्रों, कस्बों,हाट बाजार में आम लोग और श्रमिकों की भोजन व्यवस्था,टेलर,हज्जाम, मर्रम्मत,जिनके हाथ मे होती है वो गरीब बैकग्राउंड के होते हैं
तो क्या इनका काम काज, उद्यमी की श्रेणी में नहीं आता? और अगर आता है तो नोबल शास्त्री की राय कितनी उचित है?अपन को तो लगता है कि उद्यमी होना गरीब की मजबूरी है,ताकत है और गुणवत्ता भी।
निखिल दुबे/उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के मूल निवासी हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र ।साहित्य और प्रकृति से गहरा लगाव । फुरसत के पलों में प्रकृति से संवाद स्थापित करने का कोई ना कोई जरिया तलाश ही लेने में माहिर । करीब डेढ़ दशक से मीडिया में सक्रिय । सहारा, एबीपी न्यूज, आजतक, इंडिया टीवी, जी न्यूज, न्यूज 24, इंडिया न्यूज और न्यूज नेशन जैसे मीडिया संस्था से जुड़े रहे । संप्रति एबीपी न्यूज चैनल में संपादकीय टीम का अहम हिस्सा ।