हां, बह रही है विकास की गंगा
दालों में डबल सेंचुरी के साथ
प्याज में मुनाफाखोरी के साथ
सब्जियों में जनता की जेब काटने के साथ
तीन महीने में हर उत्पाद में महंगाई की एक और परत के साथ
विदेशी निवेश के नाम पर बाबाजी के ठुल्लू के साथ
दफ्तरों में बेकाबू बाबू और अफसरों के घूस के साथ
अपराधों और बढ़ती असहिष्णुता के साथ
मनमाने टैक्स और सेस के साथ
भ्रष्टाचार के तमाम व्यापंम के साथ
कारपोरेट के भयावह हो चुके शोषण के साथ
विकास के ढेरों प्रवचनों और हवाई सपनों के साथ
जनता के पैसे पर बंटरबांट औऱ रेवड़ियों के साथ
मजाक अच्छा है ये विकास-विकास
–संजय श्रीवास्तव। पिछले तीन दशकों से अपनी शर्तों के साथ पत्रकारिता में ठटे और डटे हैं संजय श्रीवास्तव। संवेदनशील मन और संजीदा सोच के साथ शब्दों की बाजीगरी के फन में माहिर। आप उनसे 9868309881 पर संपर्क कर सकते हैं।
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