आनंद बक्षी साहब इस देश को गजब समझते थे तभी लिखा था ‘कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना’। लगातार देख रहा हूं कि Chitra Tripathi की एक तस्वीर पर बवाल मचा हुआ है । लोग इस पर गलत टिप्पणी कर रहे और इसे बाढ़ टूरिज्म का नाम दे रहे हैं । वैसे तो चित्रा जवाब देने में सक्षम हैं लेकिन कुछ मैं भी लिखना चाह रहा था ।
मान लीजिए कि चित्रा बिहार में रिपोर्टिंग करते करते ऐसी जगह पर पहुंच गईं जहां से आगे जाने का रास्ता ना हो । जहां सरकार का कोई नुमाइंदा अपनी जिंदगी आफत में डालकर ना पहुंचना चाहता हो । जहां रह रहे लोग कब बह जाएं ये सिर्फ काल को पता हो । ऐसी स्थिति में रिपोर्टर क्या करेगा ? जो चालाक रिपोर्टर होगा वो कैमरामैन का हाथ पकड़कर पतली गली पकड़ लेगा और फिर कभी किसी को पता नहीं चल पाएगा कि ऐसा भी कोई गांव था जहां मौत ने डेरा डाला था और इसकी जानकारी सरकार को भी नहीं थी ।
दूसरी स्थिति चित्रा की है जिसने तय किया कि किसी भी तरह उस स्थान पर जाना है जहां लोग फंसे हैं । अब सवाल था तय तो कर लिया लेकिन वहां तक पहुंचें कैसे ? फेसबुक पर आलोचना कर रहे फैंटम लोग तो शायद बजरंग बली की शक्ति से लैस हैं जो एक छलांग मारते और सीधा बाढ़ को पार कर गांव में जा गिरते फिर स्पाइडर मैन की तरह अपने हाथ से चिपचिपा पदार्थ निकालते और कैमरामैन को भी खींच लाते लेकिन अफसोस चित्रा ठहरी साधारण इंसान तो फंस गई । चित्रा की मदद को गांव वाले सामने आ गए । गांव वालों ने ये भी नहीं सोचा कि सोशल मीडिया पर नैतिकता के जो ठेकेदार बैठे हैं वो क्या सोचेंगे ? गांव को तो मानो कोई मसीहा मिला था जो हर खतरे को इग्नोर करके भी उन तक पहुंचना चाहता था । गांव वालों को लगा कि कोई दिलेर रिपोर्टर आई है जो उनका दुख दर्द पटना और दिल्ली में बैठे नेताओं के आंख और कान तक पहुंचा सकती है । 41041
आलोचना कर रहे लोग तो इस उफनती बाढ़ में नाव पर बैठने से भी मना कर देते लेकिन चित्रा लकड़ी के फट्टे पर बैठ गई । फेसबुक आलोचक होते तो बाहुबली की तरह अपने हाथ से ही फट्टे को खिसका देते लेकिन चित्रा ठहरी साधारण इंसान इसलिए चार लोगों की मदद लेनी पड़ी जो इन आलोचकों को चुभ गई लेकिन इसके बाद चित्रा उस गांव में पहुंची जहां किसी ने कदम नहीं रखा था । उनकी तकलीफों से देश को वाकिफ कराया क्या ये कम साहसिक है ? ये फोटो भी चित्रा ने क्लिक नहीं की है । सामने कैमरामैन रहा होगा जो शूट कर रहा होगा उसे भी सलाम । कैमरामैन ने जो फीड रिकॉर्ड की है ये फोटो वहां से आई लगती है जो रिपोर्टर और कैमरामैन के काम का हिस्सा भर है ।
चित्रा जिनकी मदद के लिए गईं थी अगर उन्होंने चित्रा की मदद कर दी तो सोशल मीडिया के पेट में दर्द क्यों उठ रहा है ? चित्रा और उनके कैमरामैन ने जो हिम्मत दिखाई है उसे कोई दोहरा भी दे तो बड़ी बात होगी । सोशल मीडिया पर बैठकर रिपोर्टर पर उंगली उठाना बहुत आसान होता है । जब भी कोई रिपोर्टर ऐसी किसी त्रासदी से लौटकर आता है तो वो अपने साथ कितना दर्द समेटे होता है इसका अंदाजा सोशल मीडिया के बौद्धिक नहीं लगा सकते । बाढ़ में रिपोर्टिंग करना कितना भयावह है ये समझना कुछ लोगों के लिए मुमकिन नहीं है इसलिए उनसे बहस करने में फायदा नहीं । सिर्फ चित्रा ही नहीं बल्कि बाढ़ में रिपोर्टिंग करने वाला हर रिपोर्टर और कैमरामैन सम्मान का पात्र है क्योंकि ये अपनी जान को हथेली पर रखकर पानी की लहरों में उतरते हैं । अगर ये सच ना दिखाएं तो हमारी सरकारें और अधिकारी सब खत्म होने के बाद पहुंचे ।
रही चित्रा की बात तो मैं इनको पिछले कई सालों से जानता हूं । चित्रा वेटिंग टिकट पर रिपोर्टिंग करने चली जाती थी क्योंकि वो काम को तवज्जो देती हैं संसाधन को नहीं । चित्रा के काम और काम की नीयत पर कोई सवाल नहीं उठा सकता । मैं चित्रा के बहुत सारे शो का प्रोड्यूसर रहा हूं इसलिए देखी हुई बात बोल रहा हूं । काम के लिए जैसा समर्पण चित्रा के पास है वैसा विरले ही मिलते हैं । किसी के काम में प्लस माइनस हो सकता है आलोचना भी की जा सकती है लेकिन ग़लत नीयत से किसी की मेहनत को नकारना नहीं चाहिए । नोट – ये मेरे निजी विचार हैं ।
सुधीर कुमार पाण्डेय/ मूलत: लखनऊ के निवासी, एक दशक से ज्यादा वक्त से मीडिया में सक्रिय, संप्रति टीवी 9 भारतवर्ष में कार्यरत ।
Well, you brought out the other side of this this news coverage, that’s fine,but being a experienced reporter like her who goes on reporting on waiting ticket, could have come in a attire which is most suitable in a reporting on flood.But going by her dress, one could easily see her motive as she is more interested in covering such news with glamour than showing the plight of the flood affected people.Pl.don’t say that I shouldn’t raise her dressing sense.